Lok sabha Election News: पूर्वांचल की सबसे चर्चित सीटों में से एक गाजीपुर पर न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देश की नजर टिकी हुई है. बीते विधानसभा और लोकसभा चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो गाजीपुर के चुनावी परिणाम पूरे नतीजों से अलग देखा जा रहा है. जो साफ तौर पर बताता है कि गाजीपुर के वोटरों का दिल जीतना इतना आसान भी नहीं. वर्तमान समय में गाजीपुर की सीट पर त्रिकोणीय  मुकाबला देखा जा रहा है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पारसनाथ राय, बसपा की तरफ से डॉ. उमेश सिंह और समाजवादी पार्टी की तरफ से अफजाल अंसारी चुनावी मैदान में है.


हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में सपा बसपा एक साथ चुनाव लड़े थे और 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के सहयोगी के तौर पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी चुनावी मैदान में थे. जो इस समय भाजपा के सहयोगी हैं. खासतौर पर पिछलें 10 वर्षों के चुनावी परिणाम के आधार पर लोगों का मानना है कि गाजीपुर की सीट पर जातीय, मुख्तार अंसारी की मौत, पिछले चुनावी परिणाम जैसे कई फैक्टर प्रभावी रह सकते हैं.


 मुख्तार मौत के बाद परिवार के लिए सहानुभूति की लहर
 पूर्वांचल की सियासत के जानकार लोगों की माने तो मुख्तार अंसारी की मौत के बाद अंसारी परिवार के लिए एक सहानुभूति लहर है. इससे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड लहर में भी विकास पुरुष के रूप में पहचाने जाने वाले कद्दावर नेता डॉ. मनोज सिन्हा को अफजाल अंसारी ने 1,19,392 वोटो से करारी शिकस्त दी थी. इसके अलावा 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को विधानसभा सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा था. 


अफजाल के सामने पारस - उमेश 
इसी बीच भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी के अफजाल अंसारी जैसे रूआबदार और बाहुबली छवि के आगे एक शिक्षक और सामान्य कार्यकर्ता पारस नाथ राय को चुनावी मैदान में उतारा है. इससे पहले पारस राय ने कभी चुनाव नहीं लड़ा. संघ के बेहद सक्रिय  कार्यकर्ता और शिक्षक के तौर पर उनकी सामान्य छवि है. तो दूसरी तरफ राजपूत कैंडिडेट के तौर पर बीएसपी की तरफ से डॉ. उमेश सिंह गाजीपुर से चुनाव लड़ रहे हैं. जो BHU की छात्र संघ राजनीतिक से लेकर छात्र संघर्षों के अलग-अलग अनुभव का प्रयोग इस लोकसभा चुनाव में करने जा रहे हैं. 


अफजाल को हराना आसान नहीं होगा
वैसे राजनीतिक जानकारों की माने तो अफजाल अंसारी और भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले के बीच बीएसपी का वोट भी महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकता है. लेकिन इन सब के बीच चर्चित चेहरा मुख्तार अंसारी की मौत के बाद अंसारी परिवार के लिए गाजीपुर में उठा सहानुभूति लहर का तोड़ निकाल पाना इतना आसान नहीं होगा. ऐसे में देखना होगा कि पारसनाथ राय या डॉ. उमेश सिंह फाटक के तिलिस्म को तोड़ पाते हैं या नहीं.


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