Makar Sankranti 2022: मऊ जिले के ब्रह्मस्थान सहादतपुरा क्षेत्र के मंदिर पर पुराना मकर संक्रांति का मेला लगता चला आ रहा है. यहां पर इस स्थान पर बरम बाबा के मंदिर क्षेत्र के प्रांगण में यह ऐतिहासिक मेला लगता है. यहां पर दूर-दूर से लोग आते हैं. माना जाता है कि यह गोरखनाथ मंदिर के मेले के बाद ऐसा जगह है. जहां पर मकर संक्रांति के दिन मेले का आयोजन किया जाता है.


जिले के रहने वाले राजेश ने बताया कि ब्रह्मा बाबा मंदिर के प्रांगण पवित्र स्थान पर लगने वाला यह मेला बहुत ही पुराना है. हम लोग अपने बाबा के साथ इस मेले में आते थे और यहां पर अपने व्यवसाय खेती बाड़ी संबंधित अन्य जरूरी चीज है. खरीद कर ले जाते थे यह मेला पहले की अपेक्षा अब बहुत आधुनिक हो गया है यहां पर जरूरत के सामान के साथ बच्चों के मनोरंजन के लिए बड़े-बड़े झूले आदि लगाए गए हैं. इसका बहुत ही पौराणिक महत्व है. मेरे बाबा के द्वारा बताया जाता है कि इस पवित्र स्थान पर लगने वाला लगभग 500 वर्ष पुराना मेला है. यह मेला 3 दिन चलता है. साथ ही यहां पर कीर्तन का वृहद आयोजन शाम के समय किया जाता है.


हर दिन होती है ब्रह्मा बाबा की पूजा


इस मंदिर के प्रांगण के बगल में एक भूधरिया बाबा का स्थान है जहां पर मेला लगता है. बताया जाता है कि कोई भी कार्यक्रम शुरू करने से पहले भूधरिया बाबा का पूजा बहुत ही आवश्यक और परंपरागत है, कोई भी काम या पूजा शुरु होने से पहले यहां की पूजा की जाती है. यह बाबा ब्रह्म बाबा के रक्षक होने के साथ उनके हमेशा से निकट अस्त माने जाते हैं. इनके मरने के बाद मां मंदिर प्रांगण में ही इन्हें समाधि दे दी गई थी. तब से ब्रह्मा बाबा की पूजा करने के पश्चात भूरिया बाबा का पूजा आवश्यक माना जाने लगा है. माना जाता है कि अगर ब्रम्ह बाबा की पूजा करने के बाद उनकी पूजा न की जाए तो फलित इच्छा पूर्ण नहीं होती है.





जानिए- स्थानीय लोगों ने क्या कहा?


आलोक ने बताया कि इस मेले में वह भी अपने बाबा के साथ ही आना शुरू किए थे और उन्हें उनके बाबा ने ही बताया था कि यह मेला लगभग 500 वर्ष से 600 वर्ष पुराना इस स्थान पर लगने वाला मेला यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के मठ पर लगने वाले मेले के ही समान पूर्वांचल में लगने वाला यह दूसरा मेला है. जहां पर की मकर संक्रांति के दिन यह मेला लगता है और यहां पर खिचड़ी की प्रसाद चढ़ाई जाती है. इस मेले में बहुत दूर-दूर से लोग अपनी जरूरत की चीज है खरीदने आते हैं और कृषि से लेकर घर की जो भी आवश्यक वस्तुएं होती हैं इस मेले में प्राप्त हो जाती है हमारे बाबा ने बताया कि यह मेला पहले 7 दिनों तक चलता था जो आज 3 दिन का हो गया है बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं लेकिन फिर भी इस मेले की महत्व और इस स्थान का पवित्रता आज ही लोगों में आस्था के रूप में देखा और सुना जाता है.


मंदिर के पुजारी ने कही ये बात


इस मंदिर के पुजारी गूंगई ने बताया कि मेरे याद में यह हमारी तीसरी पीढ़ी इस मंदिर में है, जो श्री ब्रह्मबाबा फाउंडेशन के तहत देखरेख और सेवा भाव करती है, उसके बारे में हमें बहुत ज्यादा याद नहीं है बस हमें इतना पता है कि हमारे दादा परदादा इस मंदिर की पूजा किया करते थे. उन्हीं लोगों के द्वारा बताया गया कि पहले यह एक घनघोर जंगल हुआ करता था और यह मुख्य शहर के बाहर का क्षेत्र था. यहां हमारे वंश के एक बड़े विद्वान और पुजारी थे. जिन्होंने शादी नहीं की थी और उनकी काफी सिद्धि थी. जिसके वजह से दूर-दूर के लोग यहां उनके आश्रम में आशीर्वाद लेने आते थे. उनके गोलोक वासी होने के पश्चात उन्हें यहां समाधि दे दी गई और तब से यहां पर हमारे परिवार की पूरी पीढ़ी ही अपनी सेवा देती चली आ रही है जो हमने सुना है कि यह स्थान और मकर संक्रांति उत्सव का मेला 500 वर्ष से ज्यादा पुराना है.


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