Lok Sabha Election 2024: यूपी की सियासत में अपनी अलग पहचान बनाने की जद्दोजहद में जुटी अपना दल कमेरावादी पार्टी की नेता पल्लवी पटेल की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं. पहले अखिलेश यादव ने इस चुनाव में पल्लवी की पार्टी से किसी तरह के समझौते से साफ़ इंकार कर दिया. अखिलेश के इंकार के बाद कांग्रेस पार्टी ने भी उनसे दूरी बना ली. इसके बाद मायावती की पार्टी बीएसपी से दोस्ती की बात चली, लेकिन किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले ही वहां भी अब बात बिगड़ गई है. 


विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ मायावती और पल्लवी पटेल की पार्टियों के बीच बातचीत का सिलसिला अब न सिर्फ बंद हो चुका है, बल्कि बीएसपी सुप्रीमो ने किसी तरह के तालमेल और मदद से साफ़ इंकार भी कर दिया है. यानी पल्लवी पटेल के लिए अब मायावती की पार्टी के दरवाजे भी फिलहाल पूरी तरह बंद हो चुके हैं.   


बैठकों में नहीं बनी बात
वैसे अखिलेश यादव के इंकार के बाद पल्लवी पटेल की पार्टी अपना दल कमेरावादी से हमदर्दी जताते हुए उनके साथ अघोषित समझौता करने की पहल खुद मायावती की पार्टी ने ही की थी. लखनऊ में दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच कई बैठकें भी हुईं. पल्लवी पटेल की तरफ से मायावती की पार्टी को संभावित सीटों की एक सूची भी सौंप दी गई. लेकिन बातचीत का सिलसिला अचानक मायावती की पार्टी की तरफ से ही बंद कर दिया गया और पल्लवी को यह संदेश दिया गया कि अब आगे कोई बातचीत नहीं होगी. 


मायावती की पार्टी के अचानक बदले हुए रुख से न सिर्फ पल्लवी पटेल और उनकी पार्टी हैरान हैं, बल्कि इसकी वजह को लेकर सियासी गलियारों में भी खूब चर्चाएं और कयासबाजियां हो रही हैं. सवाल यह उठ रहा है कि अघोषित समझौते की पहल करने के बावजूद मायावती की पार्टी ने आखिर अचानक पल्लवी पटेल से दूर रहने का फैसला क्यों लिया. बीएसपी ने अपने कदम बिना किसी ठोस वजह के अचानक पीछे क्यों खींच लिए. हकीकत भले ही कुछ हो, लेकिन सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि पल्लवी पटेल को अपने पाले में खड़ा कर मायावती अखिलेश यादव को नाराज़ नहीं करना चाहतीं. 


भविष्य पर ध्यान
अखिलेश यादव की वजह से ही उन्होंने पल्लवी पटेल से दूरी बनाकर रखने का फैसला किया है. अंदरखाने ख़बर यह है कि अखिलेश और मायावती का समझौता पिछले लोकसभा की तरह इस बार के चुनाव में भले ही न हो, लेकिन दोनों भविष्य की राजनीति के मद्देनजर एक दूसरे पर कतई सियासी हमले नहीं कर रहे हैं और न ही नाराज़ होने का कोई मौका दे रहे हैं.   


इसका अंदाजा तभी लगना शुरू हो गया था, जब अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी में दलितों के उभरते हुए नेता चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ़ रावण को न तो उम्मीदवार बनाया और न ही उनके लिए समझौते में नगीना की सीट छोड़ी. अखिलेश ने इस सीट से मनोज कुमार को सपा का उम्मीदवार घोषित किया है. अखिलेश यादव के इस कदम के बाद मायावती ने अपनी दूसरी लिस्ट में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा. माना जा रहा है कि वह इन सीटों पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं कराना चाहती थीं. अब अचानक पल्लवी पटेल की पार्टी से बातचीत ख़त्म कर उनके लिए किसी तरह की गुंजाइश के रास्ते बंद करने के फैसले को भी इसी की अगली कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है.   


कुछ घंटों में बदला फैसला
दरअसल अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने पिछले हफ्ते इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने का दावा करते हुए अपने लिए तीन सीटों का एलान भी कर दिया था. हालांकि इसके कुछ घंटे बाद ही अखिलेश यादव इन तीन में से मिर्ज़ापुर की सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया और अगले दिन पल्लवी की पार्टी से इस चुनाव में कोई भी समझौता नहीं होने का बयान दे दिया. अखिलेश के पल्ला झाड़ने के बाद मायावती की पार्टी बीएसपी ने पल्लवी से बातचीत शुरू की. पल्लवी को यह ऑफर दिया गया कि उनके दो प्रत्याशी हाथी सिम्बल पर चुनाव लड़ सकते हैं और एक सीट पर कमेरावादी के सिंबल पर. 


इस सीट पर बीएसपी अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी. यह तालमेल अनौपचारिक तौर पर ही होना था. कई राउंड बातचीत हुई. पल्लवी की पार्टी ने अम्बेडकर नगर, सुलतानपुर और फूलपुर समेत पांच संभावित सीटों की लिस्ट भी सौंप दी, लेकिन अचानक बातचीत बंद कर दी गई. 


पल्लवी की पार्टी का कहना है कि बिना किसी वजह के अचानक बातचीत बंद करने का फैसला हैरान करने वाला है. वैसे यह हैरानी अकेले पल्लवी पटेल की पार्टी को ही नहीं, बल्कि सियासत में दिलचस्पी रखने वाले तमाम लोगों को है. हर कोई अपने तरीके से अनुमान लगा रहा है, लेकिन ज़्यादातर लोगों का यही मानना है कि अखिलेश और मायावती दोनों ही फिलहाल अलग रहते हुए भी एक दूसरे के खिलाफ नरम रुख अपनाए हुए हैं.


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