Lalit Upadhyay: ओलंपिक में प्रदर्शन के बाद ललित उपाध्याय आज अपने घर पर वाराणसी आने वाले हैं. ललित के मित्र और परिवारजन सब उत्साहित हैं. एयरपोर्ट से लेकर घर तक स्वागत की तैयारी है.


मार्मिक है ललित की स्टोरी


ललित उपाध्याय आज पूर्वांचल के लिए हॉकी खिलाड़ी का चेहरा बन चुके हैं. कभी बचपन के वो दिन थे कि ललित के पास हाॉकी खरीदने के पैसे नहीं होते थे. पिता सतीश उपाध्याय प्राइवेट नौकरी करते हैं और परिवार की स्थिति ठीक न होने से पिता अक्सर निराश रहते थे. ललित दो भाई हैं. बड़े भाई अमित उपाध्याय भी हॉकी खेलते थे और बड़े भाई को देखकर हॉकी को जीवन का लक्ष्य बनाया. आज ललित इंडियन ऑयल में ग्रेड ए आफिसर पर काम करते हैं और ओलंपिक में देश का मान बढ़ाकर अपने घर आ रहे हैं.


भर आईं पिता की आंख


बदहाली को याद कर पिता सतीश उपाध्याय की आंखे भर आईं. आंसू खुशी के भी थे, लिहाजा तैयारियों को भी बताया. पिता की माने तो ललित के दो दोस्त अपनी गाड़ियां लेकर आएंगे. एक की गाड़ी में बैठकर ललित एयरपोर्ट से बाबा दर्शन को जाएंगे और वापसी के समय दूसरे दोस्त की गाड़ी होगी. घर में पकवान बन रहे हैं और उत्साह का माहौल है.


बनारस का हॉकी का इतिहास


बनारस का हॉकी को लेकर बड़ा इतिहास रहा है. विवेक सिंह ,मोहम्मद शाहिद और अब ललित उपाध्याय. यूपी कालेज के मैदान में सबने हाॉकी का हुनर सीखा. ललित उपाध्याय ने अपनी प्रैक्टिस केडी सिंह से शुरू की. ललित बनारस के एक छोटे से गांव भगवानपुर से हैं. वह लखनऊ साई की ओर से सीनियर ऑल इंडिया केडी सिंह बाबू प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले चुके हैं. युवा खिलाड़ी सफलता को लेकर कहते नजर आते हैं कि, सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता, अपनी मेहनत से देश का नाम रौशन करने वाले खिलाड़ी की सफलता का गुणगान आज हर कोई कर रहा है. ऐसे मेहनतकश के जज्बे को हम सबका सलाम.


41 साल का सूखा खत्म हुआ


आपको बता दें कि, ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जर्मनी को 5-4 के अंतर से हराकर ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम कर इतिहास रच दिया. भारत ने 41 साल बाद ओलंपिक में हॉकी का मेडल जीता है. इस से पहले भारत ने वासुदेवन भास्करन की कप्तानी में 1980 के मॉस्को ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था. भारत के लिए सिमरनजीत सिंह ने दो, हरमनप्रीत सिंह, रुपिंदर पाल सिंह और हार्दिक सिंह ने एक-एक गोल कर इस मैच में टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई.


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