UP Politics: भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर एक डिटेल रिपोर्ट तैयार की है. जिसमें कई अहम बातों का जिक्र किया गया है. जैसे बीजेपी की पकड़ कहां पर मजबूत रही, कहां कमजोर रहे. कौन सी सीट पर कितने वोटों के अंतर से हराया या हारे. इस रिपोर्ट को बीजेपी प्रदेश नेतृत्व ने केन्द्रीय नेतृत्व को सौंपा है. इस रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो ये साफ हो जाता है कि बीजेपी को इन चुनावों में सहयोगी दलों से ज्यादा बसपा से फायदा मिला है. इस रिपोर्ट में ऐसा क्या है. आईए आपको कुछ तथ्यों के आधार पर समझाते हैं. 


बीजेपी की इंटरनल रिपोर्ट 
बीजेपी की इस रिपोर्ट के अनुसार चुनाव में बसपा ने 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारे जो सपा उम्मीदवार की जाति के ही थे. इनमें 91 मुस्लिम और 15 यादव उम्मीदवार थे. ये सभी ऐसी सीटें थी जहां मुस्लिम-यादव फैक्टर के अनुसार सपा की जीत की प्रबल संभावना थी. लेकिन बसपा की ओर से सजातीय उम्मीदवार उतारने से वोट का बिखराव हुआ जिसका फायदा बीजेपी को मिला और पार्टी ने इन 122 में से 68 सीटों पर कमल खिलाया.


बीजेपी को नहीं मिला अपना दल का कुर्मी वोट
NDA के गठबंधन मे कुर्मी वोट बैंक की राजनीति करने वाला अपना दल (एस) भी शामिल था. लेकिन पार्टी के अनुसार फरेंदा, सिराथू समेत करीब 1 दर्जन से अधिक ऐसी सीटें हैं जहाँ कुर्मी वोट भाजपा को नहीं मिला. अपना दल (एस) 17 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से 12 सीटों पर जीत दर्ज की. इनमें 2 सीटों पर 2 हज़ार से कम और एक सीट पर 5 हज़ार से कम अंतर से जीत मिली. तो वहीं 4 सीटें 5 हज़ार से अधिक और एक सीट 2 से 5 हज़ार के अंतर पर हारी.


निषाद वोटर भी बंटे हुए आए नजर
अब बात करते है NDA के दूसरे सहयोगी दल यानी निषाद पार्टी की. बीजेपी की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वांचल की कुछ सीटों पर निषाद समाज का वोट भी पूरी तरह नहीं मिला. निषाद पार्टी ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से छह पर जीत मिली. इसमें शाहगंज सीट तो हाथ से जाते जाते बची. यहाँ से निषाद पार्टी के रमेश सिंह सिर्फ 719 वोट से जीते. तीन सीटें 2 से 5 हज़ार और एक सीट 5 हज़ार से अधिक मतों से जीती.


शहरी जाट मतदाता बीजेपी के साथ
इस रिपोर्ट में पश्चिमी यूपी और जाट वोट को लेकर भी विस्तृत जानकारी दी गयी है. बीजेपी की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी यूपी में जाट मतदाता दो हिस्सों मे बंट गए. शहरी और ग्रामीण. इसमें शहरी जाट मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया जबकि ग्रामीण क्षेत्र में कुछ सीटों पर सपा रालोद गठबंधन की तरफ रुझान रहा. आंकड़ों को देखें तो भाजपा ने 17 जाट उम्मीदवार मैदान में उतारे थे जिसमें से 10 चुनाव जीते. वहीँ सपा रालोद गठबंधन ने भी 17 जाट उम्मीदवार उतारे थे लेकिन उनके सात ही जीते. इनमें सपा के तीन और रालोद के चार जाट विधायक शामिल है.


किसान आंदोलन के गढ़ में भी अच्छा प्रदर्शन


रिपोर्ट में पश्चिमी यूपी की उन 30 सीटों का भी ज़िक्र है जो किसान आंदोलन के गढ़ से जुड़ी थी. इन 30 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी रालोद सिर्फ 8 सीटें ही जीत सकी. हालांकि सूत्रों के अनुसार भाजपा ने रिपोर्ट में माना है कि सपा की ओर सवर्ण वोट ट्रांसफर हुआ है. सपा ने जहां सवर्ण उम्मीदवार को टिकट दिया था वहां उसकी जाति का वोट सपा को मिला. पहले चरण की 58 में से 46 सीटों पर भाजपा ने कमल खिलाया. जबकि इसमें तमाम वो जिले थे जहाँ किसान आंदोलन का सबसे अधिक असर रहा. लेकिन इसके बाद भी परिणाम बीजेपी के लिए उम्मीद से अच्छा रहा. लखीमपुर कांड के बावजूद भाजपा ने वहां सभी सीटें जीती.


मुरादाबाद मंडल का रहा ऐसा परिणाम
मुरादाबाद मंडल में सपा के एमवाई फैक्टर और रालोद के जाट वोट बैंक के कारण भाजपा को अच्छे परिणाम नहीं मिले. सातवें चरण में आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर में बीजेपी को राजभर और अन्य समाज का वोट नहीं मिला. इन जिलों में मुस्लिम और यादव के बाद निषाद व कुर्मी मतदाता सबसे अधिक हैं. बहरहाल ये रिपोर्ट आगामी सभी चुनाव को लेकर पार्टी के लिए रणनीति बनाने में काफी मददगार होगी. 


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