अयोध्या, एबीपी गंगा। अयोध्या में सरयू की तट पर झोपड़ी में रहने वाले 80 वर्षीय वृद्ध साधु की मौत के कारणों को लेकर अटकलों और अफवाहों का बाजार गर्म है। यह साधु कहां से अयोध्या आया, किसी को कुछ भी नहीं पता। यहां तक कि उसका अंतिम संस्कार करने वाले और आसपास सरयू के किनारे ही रहने वाले साधुओं को भी उसका नाम-पता कुछ भी नहीं मालूम है। हालांकि, पुलिस उसका नाम विष्णु दास बता रही है।


बताया जा रहा है कि मंगलवार की रात्रि सरयू के किनारे इस साधु की मौत हो गई। एक गुमटी के नीचे बालू में लिपटे पड़े शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया और उसके लिए लावारिस शव का अंतिम संस्कार करने वाले कालीचरण माझी नाम के एक शख्स ने कफन का इंतजाम किया और उसी ने 3 साधुओं के साथ सरयू में उसका जल प्रवाह किया। इस मामले में नया मोड़ तब आया जब एक समाचार पत्र और सोशल मीडिया पर यह बताया जाने लगा कि साधु की मौत भूख से हुई है। इसी के बाद पुलिस ने उन्हीं साधु की तहरीर पर दो स्थानीय पत्रकारों पर अफवाह फैलाने के मामले में अयोध्या कोतवाली में एक एफआईआर पंजीकृत की है।


 

पुलिस और उसके शव का अंतिम संस्कार करने वाले साधुओं की मानें, तो साधु की बीमारी के चलते स्वाभाविक मौत हुई है, लेकिन जिस कालीचरण माझी ने साधु के लिए कफन का इंतजाम किया और सरयू में जल प्रवाह किया, उसने यह कहकर नए सवाल उठे कर दिए हैं कि पंचनामें पर उसका अंगूठा नहीं लगवाया गया और अंतिम क्रिया के बाद रात में नया घाट चौकी इंचार्ज ने उसको बुला कर कहा कि कोई पूछे तो यह मत कहना की मौत भूख से हुई है। कहना वैसे ही मर गए। अब अगर कालीचरण की बात सही है, तो इस पूरे मामले में नए सवाल खड़े हो गए हैं, लेकिन एक बात साफ है कि साधु की मौत के पीछे असली वजह उसका गंभीर रूप से बीमार होना है, जिसके कारण वह काफी समय से उसी गुमटी के नीचे पड़ा रहा, जहां उसका मृत शरीर मिला है। साधु की मौत की एक वजह यह भी हो सकती है  कि वो मंगलवार की रात्रि जब आंधी के साथ पानी बरसा तो भी भीगे, जिससे स्वाभाविक है उसको ठंड लगी और वो पहले से भी गंभीर रूप से बीमार बताए जा रहे हैं।

 

मामले में जब एबीपी गंगा ने अयोध्या की चौधरी चरण सिंह घाट पर रह रही एक महिला और मृत साधु विष्णु दास का अंतिम संस्कार करने में शामिल रहे साधुओं से बात की और इस पूरी गुत्थी को समझने की कोशिश की। तब इन सब से बात करने पर एक बात तो साफ हो गई कि साधु विष्णु दास काफी दिनों से बीमार थे और इस बीच वह उसी गुमटी के नीचे ही पड़े रहते थे, जहां उनका शव मिला है। उसी के पास बांस से टिकी हुई माता दुर्गा की एक मूर्ति भी रखी थी, जहां यह पूजा किया करते थे। यह बात भी पता चली है कि कुछ दिन पहले एक एंबुलेंस भी पीएसी के लोगों ने या किसी व्यक्ति ने बुलाई थी, लेकिन इस वृद्ध साधु का कोई वारिस ना होने के चलते इसको एंबुलेंस चालक अपने साथ लेकर अस्पताल नहीं गया। ऊपर से उक्त साधु दवा ना खाने की बात कर रहा था। हालांकि इसी के साथ एक सवाल भी खड़ा होता है कि अस्पताल में वारिस बनने को जो लोग तैयार नहीं हुए, उनको मौत के बाद कैसे पुलिस ने वारिस मान लिया और पोस्टमार्टम नहीं कराया, लेकिन सभी ने इस बात को नकारा कि साधु की मौत भूख से नहीं हुई है ।


 

स्थानीय निवासी राधा नाम की महिला ने बताया कि ये बाबा बहुत दिनों से बीमार थे। दो-चार दिनों से पेट खराब था, लेकिन वो दवा नहीं खाते थे। उसी रात आंधी-पानी भी आया, तभी उनकी मौत हो गई। सुबह इसकी खबर चौकी गई।

 

अंतिम क्रिया में शामिल साधु सोमनाथ ने भी यही बताया कि वो काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और दवा भी नहीं खा रहे थे। उनका कहना है कि वो भूख से नहीं मरे हैं, अपने रोगों की वजह से मरे हैं। एंबुलेंस भी आई, पर वो उसपर भी जाने को राजी नहीं हुए। मंगलवार के दिन बारिश हुई, जिसमें वो भीग गए, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

 

सवाल : अंतिम क्रिया के लिए आप लेकर गए थे, तो उनका पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया

जबाब: साधु शाही में पोस्टमार्टम क्या करें, जब कोई उनका है ही नहीं। इसलिए हम लोगों ने पोस्टमार्टम के लिए उनको रोका कि क्यों चिरफाड़ करिएगा। इनके शव का जल प्रवाह कर दिया जाए। खाना मिलता था उनको,  हम लोग लाकर अपने हाथों से पहुंचाते थे। उनको पानी खाना सब देते थे ।

 

बिश्वनाथ नाम के स्थानीय निवासी ने भी उनके बीमार होने की बात दोहराई और कहा कि वो दवा नहीं खाते थे। उसने बताया कि  इनको दस्त हो रही थी। हमन दवाई के लिए बोला तो ये कहते थे कि हम दवाई नहीं खाएंगे, हम ऐसे ही ठीक होंगे। दवा के लिए नहीं गए। उसके बाद या काफी दिन तक इसी तरह गुमटी के नीचे पड़े रहे। एक दिन पीएससी वालों ने इनको हॉस्पिटल ले जाने के लिए एंबुलेंस बुलाई,  साधु ने जाने से इंकार कर दिया। इनके दवा ना खाने की वजह से एंबुलेंस वाला भी बोला कि हम इनको लेकर चले तो जाएंगे, लेकिन वहां वारिश चाहिए। लॉकडाउन में कौन जाएगा वारिश बनने, अगर एंबुलेंस वाला ले जाकर हॉस्पिटल में छोड़ देता तो वारिस कैसे टांग कर लाएगा।


 

इसके बाद हमने लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले शख्स कालीचरण से मुलाकात की, जिसने बताया कि मंगलवार की रात्रि उसने ही साधु विष्णु दास के पानी मांगने पर पानी पिलाया था और उसके बाद वह चला गया। सवेरे पता लगा कि साधु की मृत्यु हो गई है। जिसके बाद उसने पुलिस को सूचना दी, लेकिन नया घाट चौकी इंचार्ज नहीं आए। इसके बाद एक साधु के बुलाने पर चौकी इंचार्ज आए और अंतिम क्रिया करने को कहा, जब उसने पोस्टमार्टम के बारे में पूछा तो बताया गया कि मृत साधु के तीन वारिस मिल गए हैं, इसलिए पंचनामा के बाद अंतिम संस्कार कर दिया जाए। जिसके बाद उसने मित्र साधु के लिए 5 मीटर कफन का इंतजाम किया, जिसका पैसा भी उसे नहीं मिला है और इसके बाद वह तीन अन्य साधुओं के साथ मृत साधु के शरीर को लेकर नदी में गया और जल प्रवाह कर दिया।

 

वहीं, अब बारी थी अखबार के उस स्थानीय पत्रकार से मिलने की जिसने भूख से मरने की रिपोर्टिंग की थी और जिसके ऊपर अफवाह फैलाने का मुकदमा दर्ज किया गया है। उसने बताया कि उक्त साधु का कोई वारिस नहीं था और साधु इतना बीमार था कि चल फिर भी नहीं पाता था, इसीलिए वह घाट के प्लेटफार्म तक नहीं आ पाता था। जहां लोग खाना बांटते हैं, इसलिए भूख भी मौत का एक कारण हो सकती है। यह जांच का विषय है और जांच होनी चाहिए। हमने उससे यह भी पूछा कि पुलिस ने आप के खिलाफ अफवाह फैलाने का मुकदमा दर्ज किया है, जिसके जवाब में उसका कहना है कि पुलिस और प्रशासन कुछ भी कर सकता है और यह सब उसकी आवाज दबाने के लिए किया गया है, जिससे भविष्य में पुलिस और प्रशासन के खिलाफ कोई इस तरह की आवाज न उठा सके ।


 

मामले में अयोध्या के पुलिस क्षेत्राधिकारी अमर सिंह कहते हैं कि पुलिस को तो साधुओं ने 80 वर्षीय वृद्ध साधु विष्णु दास के स्वाभाविक मौत की सूचना दी, इसलिए साधु का रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर दिया गया। इसके बाद गलत खबर चलाने की सूचना प्राप्त हुई और साधुओं की तहरीर पर ही उचित धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया अब आवश्यक कार्रवाई की जा रही है।

 

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