UP News: तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम टिप्पणी आई है. हाईकोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता देने में देरी मानवाधिकार का हनन है. शौहर अपनी तलाक शुदा बीबी को गरिमामय जीवन जीने से वंचित नहीं कर सकता. न्यायिक प्रक्रिया के बहाने पति को पत्नी का शोषण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. यह टिप्पणी  जस्टिस संजय कुमार सिंह की सिंगल बेंच की है.


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कानूनी प्रक्रिया न्याय देने में बाधक नहीं बन सकती. प्रक्रियात्मक उलझाव के कारण न्याय रथ का पहिया रुक नहीं सकता. कोर्ट ने कहा पिछले 21 साल से गुजारा भत्ते के एक पैसे का भुगतान न हो पाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग है. कोर्ट ने कहा परिवार अदालत बलिया ने चार बार अंतरिम गुजारा देने का एकपक्षीय आदेश दिया. जिसे शौहर ने अर्जी देकर चार बार वापस कराया. आदेश का पालन न कर शौहर ने न्याय प्रशासन में न केवल अवरोध उत्पन्न किया, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया है.


हाईकोर्ट ने कहा है कि इससे कड़ाई से निपटना चाहिए. कोर्ट ने बाद में 5 जून 23 को दिये गए प्रधान न्यायाधीश परिवार अदालत के आदेश को रद्द कर दिया. कोर्ट ने 18 दिसंबर 21 को जारी आदेश को बहाल करते हुए शौहर को आदेश दिया. कोर्ट ने एक माह में पूरी बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने याची को 5 हजार रुपये प्रतिमाह की दर से 20 दिसंबर 2002 को अर्जी दायर करने की तारीख से भुगतान करने का आदेश है.


इसके साथ ही कोर्ट ने आगे भी लगातार 5 हजार रुपए महीने की 10 तारीख को जमा करते रहने का शौहर को निर्देश दिया. आदेश का पालन न करने पर परिवार अदालत को वसूली कार्रवाई करने की छूट दी है और परिवार अदालत को पूरे बकाये का भुगतान सुनिश्चित कराने का आदेश दिया.


बता दें कि याची सहाबी खातून की ओर से दाखिल याचिका में बताया कि जमाल खान की 12 जून 1986 को शादी हुई और तीन बच्चे भी पैदा हुए. शादी के 13 साल बाद मनमुटाव हो गया और शौहर ने तलाक देकर याची को घर से बाहर कर दिया. वह अपने पिता के घर रहने लगी और शौहर ने बच्चों को अपने पास ही रखा. याची ने दो हजार रुपए  गुजारे भत्ते के लिए धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अर्जी दी. चार बार एकपक्षीय अंतरिम आदेश हुआ, जिसे शौहर की अर्जी पर बार-बार आदेश वापस ले लिया गया. फिर याची को कोई भुगतान नहीं किया गया.


शौहर कोल फील्ड कंपनी वर्धमान में सर्वेयर है और प्रतिमाह 96616 रुपये वेतन पाता है. वह सहयोग से कतरा रहा है, जबकि परिवार अदालत ने 5 हजार प्रतिमाह की दर से 18 दिसंबर 21 को 12 लाख रुपये बकाया के भुगतान का आदेश दिया. जिसका पालन नहीं किया गया तो वसूली वारंट जारी हुआ, परिवार अदालत ने 5 जून 2023 को बतौर हर्जाना 80 हजार रुपए देने का आदेश दिया. जिसे बाद में जमा किया, लेकिन याची को एक पैसा नहीं मिला.


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