Prayagraj News: यूपी के बांदा जिले से शिक्षा विभाग का लापरवाही का मामला सामने आया है, जहां बेसिक शिक्षा के स्कूल में महिला कर्मचारी ने पैंतीस सालों तक सिर्फ 15 रुपये प्रति माह के वेतन पर काम किया है. इस पंद्रह रुपए की तनख्वाह पर भी बीच में रोक लगा दी गई. बहरहाल महिला कर्मचारी के हक में अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने पूर्णकालिक कर्मचारी के तौर पर काम लेने के बावजूद उसे दस फीसदी के करीब ही वेतन देने पर नाराजगी जताई हैं.


मामले के मुताबिक भगोनिया देवी नाम की महिला बांदा जिले के कन्या जूनियर हाईस्कूल में अंशकालिक यानी पार्ट टाइम सेविका के तौर पर पंद्रह रुपए प्रतिमाह वेतन पर एक जुलाई 1971 को नियुक्त हुई थी.14 मई 1981 को सहायक इंस्पेक्टर आफ स्कूल ने उसे पूर्णकालिक करते हुए वेतन बढ़ाकर 165 रुपये कर दिया.हालांकि वित्तीय अनुमोदन न मिल पाने के कारण वह 15 रुपये वेतन पर काम करती रही.मई 1996 में पंद्रह रुपए का वेतन भी रोक दिया गया. हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई तो कोर्ट ने निर्णय लेने का निर्देश दिया. 


शिक्षा विभाग पर 1 लाख का हर्जाना
यूपी के बेसिक शिक्षा विभाग पर एक लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. कोर्ट ने हर्जाने की रकम पीड़ित महिला कर्मचारी को देने का आदेश जारी किया है. हालांकि हाईकोर्ट के दखल के बावजूद महिला कर्मचारी को पंद्रह के बजाय सिर्फ 165 रुपये प्रति माह की दर से ही भुगतान होगा. वह भी उसके रिटायरमेंट के आठ साल बाद. एक कप चाय की कीमत पर महीने भर पूरे स्कूल में सुबह से शाम तक सेवा करने वाली महिला कर्मचारी संघर्ष करते थक हारकर साल 2016 में रिटायर भी हो चुकी है.


'कोर्ट ने फैसले में किया श्लोक का उल्लेख'
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले के जरिए न सिर्फ नाकारा सिस्टम को आईना दिखाने का काम किया है, बल्कि उसकी कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े करते हुए अपने आदेश में चाणक्य के अर्थशास्त्र के श्लोक का भी उल्लेख किया है.अदालत ने अपने फैसले में लिखा हैं.
प्रजासुखे सुखं राज्ञ:,प्रजानां तु हिते हितम्,
नात्मप्रियं हितं राज्ञ: प्रजानां तु प्रियं हितम्,
अदालत ने इस श्लोक के साथ ही इसके अर्थ यानी मायने को भी बताते हुए कहा है कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख निहित है. प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए. कोर्ट ने आगे कहा है - जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है. उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें होता है.


14 साल बाद आया कोर्ट का फैसला
मामले की अंतिम सुनवाई जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की सिंगल बेंच में हुई. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी चौदह सालों के लंबे इंतजार के बाद महिला कर्मचारी के हक में फैसला जरूर सुनाया, लेकिन कोर्ट का आदेश भी महिला चपरासी के साथ इंसाफ के लिए ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होगा. क्योंकि एक लाख रुपए के मुआवजे के बावजूद उसे पूरे जीवन की कमाई के तौर इसके अलावा सत्तर हजार रूपये भी नहीं मिलेंगे.


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