Rajasthan News: शब-ए-बारात यह वो रात है जब मालिक की रहमत बरसती है. इस रात में जो भी मालिक की इबादत करता है या अपने गुनाहों की माफी मांगता है तो उसे गुनाहों से माफी मिल जाती है. मुस्लिम समुदाय के लिए शब-ए-बारात (Shab-e-barat) एक प्रमुख त्योहार है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार शब-ए-बारात का त्योहार शाबान महीने की 14वीं तारीख और 15वीं तारीख के मध्य रात को मनाया जाता है. जबकि अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 18 मार्च को सूर्यास्त से शुरू होकर 19 मार्च सुबह अजान के समय तक शब-ए-बारात मनाया जाएगा.


लोग अल्लाह की करते हैं इबादत


इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार शब-ए-बारात में लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और उनसे अपने गुनाहों को माफ करने की दुआ मांगते हैं. राजस्थान के मुफ्ती शेर मोहम्मद खान ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में बताया कि शब-ए-बारात पवित्र दिन है. इस दिन सभी मुस्लिम भाई कब्रिस्तान में जाकर अपने पूर्वजों के लिए रात में कुरान पढ़े या इबादत करें जिससे मालिक की रहमत बरसेगी और  गुनाहों से माफी मिलेगी. रात को अपनी कमाई का हिस्सा गरीबों को दें. इस रात को हो सके तो पैदल चलें, मोटरसाइकिल और गाड़ी नहीं चलाएं.


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शब-ए-बारात का क्या है अर्थ


हिजरी कैलेंडर के अनुसार शब-ए-बारात की रात हर साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है. शब-ए-बारात का अर्थ है शब यानी रात और बारात यानी बरी होना. शब-ए-बारात का रात को इस दुनिया को छोड़कर जाने वाले अपने पूर्वजों की कब्रों में रोशनी और उनके लिए दुआ मांगी जाती है. इस दिन जो भी सच्चे मन से अल्लाह से अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं अल्लाह उनके लिए जन्नत के दरवाजे खोल देता है.


घरों को सजाते हैं मुस्लिम लोग


शब-ए-बारात पर मुस्लिम समाज के लोग मस्जिदों और कब्रिस्तानों में जाकर अपने और पूर्वजों के लिए खुदा से इबादत करते हैं. घरों को विशेष रुप से सजाया और संवारा जाता है. मस्जिद में नमाज पढ़कर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है. घरों में पकवान जैसे हलवा, बिरयानी, कोरमा आदि बनाया जाता है. इबादत के बाद इसे गरीबों में बांटा जाता है. शब-ए-बारात में मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास तरह की सजावट की जाती है. कब्रों पर चिराग जलाकर उनके लिए मगफिरत की दुआंए मांगी जाती हैं. इस्लाम में इसे चार मुकद्दस रातों में से एक माना जाता है. जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र होती है.


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