Rajasthan News: राजस्थान की सरकार और कांग्रेस में पिछले दो महीने से एक शब्द खूब गूंज रहा है. 'आलाकमान'. सभी आलाकमान के नाम की दुहाई देते हुए दिखाई दे रहे हैं. लेकिन राजस्थान कांग्रेस के तीन ऐसे नेता हैं जिनपर आलाकमान की पकड़ ढीली दिखाई पड़ रही है. आलाकमान उन तीन नेताओं पर कब कार्रवाई करेंगे जो आलाकमान का अपमान कर चुके हैं और उनकी बात मानने से इनकार भी किया था. कैबिनेट मंत्री महेश जोशी, शांति धारीवाल और धर्मेंद्र राठौड़ पर कार्रवाई न होने से यहां कांग्रेस में 'खलबली' मची है. धीरे-धीरे बगावत की 'चिंगारी' भी अब उठने लगी है. इसी कड़ी में इस्तीफे भी होने शुरू हो गए है. युवा कांग्रेस के प्रदेश उपाध्य्क्ष राकेश मीणा ने इस्तीफा भी दे दिया है. सूत्रों की माने तो इन तीनों नेताओं पर कार्रवाई न होने अभी और इस्तीफे हो सकते हैं. चर्चा है कि एक तरफ इनपर कार्रवाई नहीं हो रही है और दूसरी तरफ गहलोत ने इन्हे प्रमुख जिम्मेदारी भी दे दी है. आइये जानिए इनकी पूरी कहानी.



शांति धारीवाल के यहां से मची है 'अशांति'

शांति धारीवाल उत्तर कोटा विधान सभा (North Kota Legislative Assembly) सीट से विधायक हैं. 11वीं, 13वीं और 15वीं विधान सभा के सदस्य हैं. कोटा लोकसभा सीट से 1984 में कांग्रेस के टिकट पर सासंद भी बने थे. उसके बाद से धारीवाल कोटा (Kota) उत्तर से तीन बार विधायक बन चुके है. रोचक बात यह है कि राजस्थान में जब कांग्रेस सत्ता में आती है तो धारीवाल चुनाव जीतते है और जब हारती है तो हार जाते हैं. 79 साल के धारीवाल को अशोक गहलोत का सबसे ख़ास माना जा रहा है. 25 सितम्बर को धारीवाल के घर बैठक बुलाकर इस बात पर मुहर भी लगा दी गई. उस घटना के बाद धारीवाल को नोटिस मिला लेकिन अभी तक आलाकमान ने कार्रवाई नहीं की है. सवाल खड़े होने लगे है?

जोशी ने भरा था बगावती 'जोश'

कैबिनेट मंत्री महेश जोशी जयपुर से वर्ष 2009 में कांग्रेस के टिकट लोक सभा के सदस्य भी रहे हैं. हवामहल विधान सभा सीट से विधायक हैं. अभी इनके पास  राजस्थान सरकार का जलदाय विभाग है. और वर्ष 2019 में इन्हे विधान सभा में चीफ व्हीप बनाया गया था. महेश जोशी को अशोक गहलोत का खास माना जा है. लेकिन मुख्य सचेतक महेश जोशी को 6 अक्टूबर को कारण बताओ नोटिस मिला था. और उन्हें 15 अक्टूबर तक जवाब देने का समय था, लेकिन महेश जोशी ने अपना जवाब नोटिस मिलने के 5 दिनों में ही 10 अक्टूबर को कांग्रेस अनुशासन समिति को भिजवा दिया है. सूत्र बताते हैं कि 25 सितम्बर को आलाकमान के खिलाफ 'बगावत' का जोश जोशी ने ही भरा था.


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राजनीतिक 'शोले' के धर्मेंद्र बने राठौड़

धर्मेंद्र राठौड़ अलवर जिले में सक्रिय हैं. जानकरी के अनुसार दो बार अलवर की बानसूर सीट से विधानसभा चुनाव का टिकट मांगा लेकिन मिला नहीं था. फिर भी बानसूर से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं. गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल में राजस्थान राज्य बीज निगम के चेयरमैन थे और अब राजस्थान पर्यटन विकास निगम लिमिटेड (आरटीडीसी) के चेयरमैन हैं. अशोक गहलोत के सियासी कार्यक्रमों का मैनेजमेंट इन्हीं के पास होता है. 25 सितंबर के सियासी ड्रामे का मैनेजमेंट भी धर्मेंद्र राठौड़ ने ही संभाला था. इसीलिए एआईसीसी ने इन्हें भी कारण बताओ नोटिस जारी किया. सीएम गहलोत के नजदीकी धर्मेंद्र अलवर जिले के बानसूर क्षेत्र के गांव बिलाली के रहने वाले हैं. यहां के सियासी बवाल में  फिल्म 'शोले' धर्मेंद्र जैसे नजर आ रहे हैं धर्मेंद्र राठौड़.