Jaipur News: बात दिसंबर 2008 की है. राजस्थान से वसुंधरा राजे की सत्ता जा रही थी. राजे सरकार पर कई संगीन आरोप लग रहे थे. प्रदेश में कांग्रेस की वापसी हो रही थी. तब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी थे. सियासी गलियारों में चर्चा थी कि इस बार कांग्रेस राज आया तो सीपी जोशी ही सीएम बनेंगे, लेकिन जिस दिन चुनाव नतीजे आ रहे थे, उस दिन मेवाड़ से खबर आई कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एक वोट से अपनी सीट हार गए हैं. बाजी यहीं से पलट गई.


कांग्रेस के सामने अशोक गहलोत को सीएम बनाने के अलावा कोई दूसरा बेहतर विकल्प नहीं था. उसके बाद से ही जोशी का नाम सीएम पद की रेस से हमेशा के लिए बाहर हो गया. सीएम बनने से चूकने के बाद वे क्या बने? किन पदों पर रहे और अभी किस पद पर हैं. आप भी इस पूरी सियासी कहानी को सिलसिलेवार तरीके से पढ़िए. 


राजनीतिक करियर की शुरुआत


राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में डॉक्टर सीपी जोशी  प्रभावशाली रहे हैं. पहली बार यह अशोक गहलोत सरकार में 1998 में कैबिनेट मंत्री बने थे. डॉ.सीपी जोशी का पूरा नाम चंद्र प्रकाश जोशी है. जोशी का सियासी ग्राफ काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है. साल 2008 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद सीपी जोशी सीएम की रेस से बाहर ही हो गए. संन्यास लेने की तैयारी में थे लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में भीलवाड़ा सीट से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे. मई 2009 में उन्हें यूपीए सरकार में मंत्री के तौर पर शामिल किया गया.


स्वतंत्र प्रभार के तौर पर ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्रालय दिया गया. उन्हें 2011 में प्रमोट करके कैबिनेट मंत्री बनाया गया. सड़क परिवहन, रेलवे जैसे मंत्रालय दिए गए. धीरे-धीरे राहुल गांधी के बेहद करीब आते गए. यूपीए की सरकार जाने के बाद जोशी को पूर्वोत्तर के कई राज्यों का प्रभारी बनाया गया, लेकिन जोशी किसी भी राज्य में कांग्रेस को जीत नहीं दिला सके. हर राज्य में कांग्रेस को करारी हार मिली. इससे कांग्रेस आलाकमान जोशी से नाराज हो गया. उन्हें संगठन से बाहर का रास्ता दिखा गया गया. जोशी 2017-2018 में बेहद कमजोर पड़ गए थे.


सीएम अशोक गहलोत के करीबी


राजस्थान की राजनीति में गहलोत पायलट के बीच सियासी टकराव जारी था. मौके को भांपते हुए जोशी गहलोत के करीब आ गए. इसके कारण एक बार फिर से उनके सियासी दिन वापस लौट गए. गहलोत से नजदीकी बढ़ते ही उन्हें स्पीकर बनने का मौका मिल गया. तब से आज तक वह राजस्थान विधानसभा में स्पीकर की भूमिका निभा रहे हैं. विधानसभा में अक्सर उनकी छवि प्रोफेसर वाली दिख जाती है. 


राजसमंद जिले की नाथद्वारा विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक हैं. कभी जोशी गहलोत के धुर विरोधी थे, लेकिन गहलोत के करीब आने से प्रदेश कांग्रेस की राजनीति की बाजी पूरी तरह पलट गई. जहां जोशी स्पीकर बन गए, वहीं गहलोत का कांग्रेस में पूरी तरह दबदबा बन गया. सचिन पायलट कांग्रेस में एक तरह से अलग थलग पड़ गए. पायलट की बगावत के वक्त सीपी जोशी ने अशोक गहलोत की सरकार बचाने में अहम भूमिका निभाई थी.


एक शिक्षक का सियासी सफर 


सीपी जोशी का जन्म राजसमंद के कुंवरिया में हुआ था. उनकी सियासत में एंट्री छात्र राजनीति से हुई. जोशी उदयपुर के मोहन लाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए थे. साल 1975 में जोशी यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के शिक्षक बन गए. साल 1980 में जोशी को पहली बार चुनाव लड़ने का मौका मिला. सिर्फ 29 साल की उम्र में वो विधायक बन गए. इसके बाद साल 1985 में भी विधायक बने. उसके बाद से ही उनका सियासी सफर जारी है. 


वर्ष 2008 में सीपी जोशी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे. नाथद्वारा सीट से कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया. वोटिंग हुई और जब काउंटिंग हुई तो सीपी जोशी सिर्फ एक वोट से चुनाव हार गए. इस बारे में सीपी जोशी ने एक बार कहा था कि उनकी पत्नी और बेटी मंदिर जाने की वजह से वोट नहीं डाल पाई थीं. इस हार से सीपी जोशी इतने आहत हुए कि उन्होंने हार के ऐलान के एक घंटे बाद ही राजनीति से संन्यास लेने का फैसला कर लिया. हालांकि बाद में वो एक बार फिर सियासत में लौटे और केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री बनाए गए. 


कैसे उतारा गहलोत का कर्ज 


अशोक गहलोत की मदद से सीपी जोशी विधानसभा के स्पीकर बने. जोशी ने इस कर्ज को गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनवाकर उतारा. अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत 2019 में जोधपुर लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे. उसके बाद ही जोशी ने वैभव आरसीए का अध्यक्ष बनाने की जमीन तैयार की. 


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