Jagannath Pahadia: राजस्थान में आलाकमान को नाराज करके कोई भी सीएम लम्बे समय तक टिक नहीं पाया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री जगन्ननाथ पहाड़िया (Jagannath Pahadia) हैं. उनकी एक छोटी सी गलती ने उन्हें सीएम की कुर्सी से हमेशा के लिए दूर कर दिया था. जानकार बताते हैं कि महादेवी वर्मा के बारे में पहाड़िया का एक बयान उनपर बड़ा भारी पड़ गया था, जबकि उन दिनों उनके राजनीतिक कॅरियर का ग्राफ काफी उफान पर था. लेकिन इस घटना के बाद चार बार लोकसभा सदस्य और चार बार के विधायक रहे जगन्ननाथ पहाड़िया राजस्थान की राजनीति से दूर ही हो गए. 


दरअसल, उनकी इस गलती पर आलाकमान ने उनके खिलाफ तुरंत एक्शन लेते हुए उन्हें राजस्थान से बाहर की राजनीति में भेज दिया था. जगन्ननाथ पहाड़िया का जन्म 15 जनवरी 1932 को राजस्थान में भरतपुर के भूसावर में  हुआ था. वहीं, 19 मई 2021 को उम्र 89 साल की उम्र में हरियाणा के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया था. मरते दम तक भरतपुर ही उनकी कर्मभूमि रही. चूंकि, जगन्ननाथ पहाड़िया दलित समुदाय से आते थे, इसलिए यहां की राजनीति में उनका नाम समय-समय पर आ ही जाता है.


पहले दलित और अब तक के आखिरी दलित सीएम


पूर्व मुख्यमंत्री जगन्ननाथ पहाड़िया (Jagannath Pahadia) राजस्थान के पहले और अबतक के आखिरी दलित मुख्यमंत्री रहे. उनके बाद से कांग्रेस ने राजस्थान में किसी दलित को मुख्यमंत्री नहीं बनाया. 26 वर्ष की उम्र में ही जगन्ननाथ पहाड़िया (Jagannath Pahadia) लोकसभा में पहुंच गए थे. चार बार सांसद रहे और चार बार विधायक भी. केंद्र में मंत्री उसके बाद बिहार-हरियाणा के राज्यपाल भी रहे.


दरअसल, उन्हें मुख्यमंत्री बनकर कांग्रेस उत्तर भारत में दलितों को साधना चाह रही थी, लेकिन जगन्ननाथ पहाड़िया कुछ ऐसा नहीं कर पाए, जिसे कांग्रेस आगे बढ़ा सकती. जानकार बताते हैं कि पहाड़िया दलितों के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठा पाए थे.


इसलिए गई थी कुर्सी


राजनीतिक जानकार बताते हैं कि पहाड़िया को कुर्सी पर लाने वाले खुद संजय गांधी थे. जगन्ननाथ पहाड़िया (Jagannath Pahadia) संजय गांधी के करीबी माने जाते थे. जानकारी के अनुसार 10 जनवरी 1981 को जयपुर में रविन्द्र मंच पर एक कार्यक्रम में महादेवी वर्मा मुख्य अतिथि और पहाड़िया अध्यक्ष थे. पहाड़िया ने मंच पर बोलते हुए कहा था कि महादेवी वर्मा की कविताएं मेरे कभी समझ नहीं आईं कि वे क्या कहना चाहती हैं.


इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कह दिया था कि साहित्य ऐसा हो कि जो सबके समझ में आना चाहिए. इसके बाद लेखकों की मंडली ने इंदिरा गांधी से जमकर शिकायत की. इसके बाद आलाकमान ने पहाड़ियां को हटा दिया था. हालांकि, जानकारों का कहना है कि इसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी, इसके पीछे कई और भी कारण थे.


ज्यादा मिला लेकिन कद बना नहीं पाए


राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ बताते हैं कि जगन्ननाथ पहाड़िया को उस दौर में मुख्यमंत्री बनाया गया था, जब उत्तर भारत में कोई मजबूत दलित नेता नहीं था. लेकिन, उस अवसर का लाभ जगन्ननाथ पहाड़िया नहीं उठा पाए. हालांकि, दलित समाज को भी उनसे बहुत उम्मीदें थी. पहाड़िया उनके लिए भी कुछ ख़ास नहीं कर पाए.


कांग्रेस ने उनपर बड़ा भरोषा दिखाया था. वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द चोटिया का मानना है कि जगन्ननाथ पहाड़िया एक ऐसे दौर में  मुख्यमंत्री बने थे, जब कांग्रेस आलाकमान बहुत मजबूत हुआ करता था. चोटिया का मानना है कि अगर जगन्ननाथ पहाड़िया को थोड़ा और समय मिलता तो कुछ और बेहतर करने का समय मिलता. भरतपुर के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कल्याण का कहना है कि जगन्ननाथ पहाड़िया भरतपुर के लिए भी कुछ ख़ास नहीं कर पाए. बस यह कहने के लिए होता है कि भरतपुर से कोई व्यक्ति सीएम रहा है.


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