Rajasthan: लंदन, जर्मनी, रूस और न्यूयार्क जैसे कई देशों में बहरूपिया (भांड) कला का लोहा मनवाने वाले मंकी मैन के नाम से प्रसिद्ध जानकी लाल भांड (बहरूपिया) को 83 वर्ष की उम्र में अब भारत के सर्वोत्तम पुरुस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया जा रहा है. पद्म श्री पुरुस्कार मिलने की सूचना मिलने के साथ ही उनके परिवार और परिचित लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई. इसके बाद उन्हें बधाईयां देने वालों का तांता लग गया. जानकी लाल बहरूपिया कला को तीन पीढ़ियों से जी रहे थे, लेकिन उनके पुत्र इस कला से कोसो दूर हैं.


जानकी लाल अनपढ़ हैं और इस कला को सरकार द्वारा संरक्षण नहीं मिलने से दुखी भी हैं. वैसे इस कला ने जानकी लाल को देश-विदेश के साथ भीलवाड़ा शहर में अच्छी पहचान दिलाई. ये कला राजा महाराजाओं के समय से उनका मनोरंजन करती. ये कला शादी विवाह में भी लोगों का मनोरंजन करती थी, लेकिन वर्तमान समय में आधुनिकता की चकाचौंध में ये कला लुप्त सी होती जा रही है.


बहरूपिया कलाकार जानकी लाल भांड ने क्या कहा?


भीलवाड़ा के अंतरराष्ट्रीय बहरूपिया कलाकार जानकी लाल भांड की पीड़ा है कि इस कला को सरकारी संरक्षण नहीं मिलने से अगली पीढ़ी इससे दूर भाग रही है. भांड कला से परिवार पालना अब मुश्किल हो गया है. राजा महाराजाओं और सियासत काल में मनोरंजन करने के लिए बहरूपिया कला को एक विशेष मान्यता प्राप्त थी. उस समय कई परिवार बहरूपिया बनकर मनोरंजन करते थे. इसमें कलाकार कई स्वांग रच कर अलग अलग तरीके से हर बार नया करने की कोशिश करते थे. इसके बाद राजा महाराजा खुश होकर कलाकारों पर इनाम की बारिश करते थे.



होली, दीवाली, ईद और शुभ अवसरों पर विशेष रूप से भांड अपनी कला का प्रदर्शन करते थे, लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया. कई सालों तक देश और दुनिया में बहरूपिया कला की धाक जमाने वाले कलाकार जानकी लाल कहते हैं कि उनकी कला की कद्र करने वाले अब नहीं रहे. फिर इस कला को जीवित कैसे रखा जाए. राजस्थान संगीत कला केंद्र भीलवाड़ा राजस्थान दिवस और विश्व रंगमंच दिवस पर जानकी लाल भांड को लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड दे चुका है.  जानकी लाल अपने स्वांग से प्रदेश भर में खासी लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं.


विरासत में मिली बहरूपिया कला


जानकी लाल बताते हैं कि वह 83 वर्ष के हो चुके हैं. बहरूपिया कला उन्हें विरासत में मिली. पहले दादा कालूलाल  और उनके पिता हजारी लाल इस कला को जीवंत रखे हुए थे. इसी से पारिवार का पालन पोषण हो रहा था.  जानकी लाल बताते हैं कि वो बीते 65 साल से अनेक प्रकार की वेशभूषा पहन कर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं. वह गाडोलिया लुहार, कालबेलिया, काबुली पठान, ईरानी, फकीर, राजा, नारद,भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती, साधु, दूल्हा, दुल्हन सहित विभिन्न स्वांग रचकर और उसके स्वरूप वेशभूषा पहनकर लोगों का मनोरंजन करते हैं.


जानकी लाल का कहना है कि वह मेवाड़ी, राजस्थानी, पंजाबी और पठानी भाषा बखूबी बोल लेते हैं. दो दशक पहले जिले में कई परिवार इस कला से जुड़े थे, लेकिन अब वह ही इस कला को संभाले हुए हैं. जानकी लाल बताते हैं कि उदयपुर लोक कला मंडल, मुंबई, जोधपुर और विदेशों में उन्हें कई खिताब मिले. उन्होंने दिल्ली में एक माह तक कार्यक्रम किया. वर्ष 1986 में वो लंदन, न्यूयॉर्क और वर्ष 1988 में जर्मन, रोम, बर्मिंघम और फिर लंदन गए थे. न्यूयॉर्क, दुबई, मेलबोर्न में भी उनकी कला को खास दाद मिली. वहां उन्हें लोग मंकी मैन के नाम से जानने लगे.


'कला अब समाप्ति की ओर'


विदेश में जानकी लाल ने फकीर, बंदर और गाडोलिया लुहारन का स्वांग रचा था, जो यादगार बन गया. उन्होंने इन स्वांगों से लोगों को खूब हंसाने का काम किया. अभी उम्र के ढलाने पर होने के बावजूद वह होली, दीपावली, ईद और अन्य त्योहार पर शहर में अपनी कला से लोगों का लोकानुरंजन करते हैं. जानकी लाल बहरूपिया इस कला को लेकर कहते हैं कि ये है. इसे सरकार द्वारा संरक्षण मिलना चाहिए, जिससे की इस कला के साथ जीने वाले परिवार जिंदा रह सके. वो कहते  हैं कि ये कला इनके साथ ही समाप्ति की ओर बढ़ रही हैं, क्योंकि उनके पुत्र इस कला को अपनाना नहीं चाहते हैं. जिसके चलते ये कला उनके परिवार से कोसों दूर होती दिखाई दे रही है.


ये भी पढ़ें-Rajasthan: कोटा में ओम बिरला ने 'स्वनिधि योजना' के लाभार्थियों का किया सम्मान, PM मोदी को लेकर कही बड़ी बात