Rajasthan News: राजस्थान में भारी बिजली संकट (Power Crisis) देखने का मिल रहा है, जिला मुख्यालयों पर सरकार घोषित-अषोषित कटौती कर रही है. ऐसे में कोटा थर्मल के लिए सुखद खबर है, सरकार इसे पेनल्टी देकर भी चलाने को तैयार है. नया साल कोटा के लोगों के लिए दोहरी खुशियां लेकर आ रहा है. राजस्थान में बिजली उत्पादन का सूत्रपात करने वाली कोटा थर्मल की 110-110 मेगावाट की पहली व दूसरी इकाई को फिर जीवनदान मिल गया है.


करीब चार दशक पुरानी इन दोनों इकाइयों को चलाने की केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति 31 दिसम्बर 2022 तक की ही है, ऐसे में नए साल की पहली सुबह ही यह दोनों इकाइयां हमेशा-हमेशा के लिए धुआं उगलना छोड़ देतीं, लेकिन राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम (आरवीयूएनएल) प्रशासन ने इन्हें नियमित चलाने का फैसला किया है. 


केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति नहीं होने के बावजूद इनसे बिजली उत्पादन जारी रखने के लिए आरवीयूएनएल प्रशासन को भारी पेनल्टी चुकानी होगी, लेकिन वर्तमान में राज्य में मंडरा रहे बिजली संकट और आगे भी जब तक आरवीयूएनएल के निर्माणाधीन नए बिजलीघरों की नई इकाइयां बिजली उत्पादन शुरू नहीं करती, तब तक आरवीयूएनएल प्रशासन कोटा थर्मल की पहली व दूसरी इकाई से बिजली उत्पादन जारी रहेगा.


कई रिकॉर्ड कर चुकीं अपने नाम
कोटा थर्मल की पहली व दूसरी यूनिट को 39 साल बाद भी चलते हुए देखकर विशेषज्ञ इंजीनियर भी दंग हैं. ये इकाइयां लगातार रिकॉर्ड बना रही हैं. दूसरी यूनिट ने तो 134 दिन तक लगातार 3205 घंटे तक चलने का रिकॉर्ड अपने नाम किया हुआ है. इन इकाइयों की तकनीक पर आधारित देश व विदेशों के बिजलीघरों की ज्यादातर इकाइयां बंद हो गई हैं या उन्हें कभी कभार चलाया जाता है, लेकिन कोटा थर्मल की दोनों इकाइयां आज भी उतनी ही क्षमता से बिजली उत्पादन में सक्षम हैं.


अपनी इसी अदभुत विद्युत उत्पादन क्षमता के चलते इन दोनों इकाइयों के मैकनिज्म को देखने के लिए विदेशी विशेषज्ञों के दल कोटा आते रहते हैं और इन इकाइयों को आज भी उतनी ही क्षमता से बिजली उत्पादन करता देख विदेशों के बिजली इंजीनियर व एक्सपर्ट चकित रह जाते थे.


सरकार कोई भी रही हो बचाया गया
कोटा थर्मल की इन दोनों इकाइयों से कोटा की जनता व राज्य के सभी बिजलीघरों में कार्य कर रहे अभियंताओं व कर्मचारियों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं. कोटा थर्मल की यह दोनों इकाइयां कोटा की पावर हैं. इसी का नतीजा है कि जब-जब भी राज्य सरकार व आरवीयूएनएल प्रशासन ने इन इकाइयों को स्थाई रूप से बंद करने का फैसला किया है, कोटा में इसका मुखर विरोध हुआ. राज्य सरकार भले ही किसी भी पार्टी की रही हो, लेकिन उसे जनता के सामने झुकना ही पड़ा और 25 साल के बाद 39 साल तक इन दोनों इकाइयों में बिजली उत्पादन जारी रखा गया.


जनता की मांग है कि राज्य सरकार व आरवीयूएनएल प्रशासन इन दोनों इकाईयों के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से आगे भी बिजली उत्पादन जारी रखने की अनुमति मांगे ताकि आरवीयूएनएल को इन्हें नियमित चलाने के एवज में पेनल्टी भी नहीं चुकानी पड़े और इन दोनों इकाइयों के माथे पर मंडरा रहा स्थाई रूप से बंद होने का खतरा भी दूर हो जाए.


बंद करने की लंबे समय से कवायद
वर्ष 2015 में राज्य की पूर्व भाजपा सरकार तथा वर्तमान कांग्रेस सरकार ने करीब डेढ़ वर्ष पूर्व 30 जून 2021 को इन दोनों इकाइयों को स्थाई रूप से बंद करने का निर्णय ले लिया था, लेकिन कोटा की जनता के विरोध को देखते हुए दोनों बार राज्य सरकार को इन दोनों इकाइयों को आगे भी चलाए रखने का निर्णय करना पड़ा.


इन दोनों इकाइयों को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से 31 दिसम्बर 2022 तक ही चलाने की पर्यावरणीय स्वीकृति मिली हुई है. ऐसे में उस समय जनता के विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने इन दोनों इकाइयों को 30 जून 2021 को बंद करने की जगह 31 दिसम्बर 2022 तक चलाने का निर्णय ले लिया.


बंद करने का निर्णय पड़ सकता है भारी 
इस अवधि तक इन दोनों इकाइयों को चलाने की केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति भी थी. इसके बाद राज्य सरकार की मंशा इन दोनों इकाइयों को 31 दिसम्बर 2022 को ही स्थाई रूप से बंद करने की थी, इसे देखते हुए आरवीयूएनएल प्रशासन की ओर से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से इन दोनों इकाइयों को आगे भी चलाने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति लेने के ठोस प्रयास नहीं किए गए.


लेकिन वर्तमान में पैदा हुए बिजली संकट ने राज्य सरकार की नींद उड़ा दी है तथा आगे भी जब तक इस राज्य में निर्माणाधीन अन्य बिजलीघरों की नई इकाइयों में बिजली उत्पादन शुरू नहीं हो तब तक चुनावी साल में इस तरह के बिजली संकट के हालात पैदा हो सकते हैं. इसको देखते हुए राज्य सरकार के निर्देश पर आरवीयूएनएल अब इन दोनों इकाइयों से पेनल्टी के साथ ही सही आगे भी बिजली उत्पादन जारी रखेगा.


पहले अवधि पार बताकर कर रहे थे बंद
राज्य सरकार व आरवीयूएनएल प्रशासन के अनुसार कोटा थर्मल की इन दोनों इकाइयों से बिजली उत्पादन महंगा पड़ रहा है. इसकी बजाए सामान्य समय में निजी क्षेत्र से बिजली सस्ती पड़ रही है. आरवीयूनएल के अनुसार थर्मल की कई इकाइयों की तकनीक पुरानी हो गई है. इस वजह से बिजली उत्पादन महंगा पड़ता है. यहां एक यूनिट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 3.40 रुपए आती है, जबकि छबड़ा में ये लागत 2.40 और कवाई के प्लांट में 2.20 रुपए आती है.


सरकार जहां से सस्ती बिजली मिल रही है, वहीं से खरीद रही है, फिर चाहे वो निजी सेक्टर ही क्यों ना हो, ऐसे में कोटा थर्मल की प्रथम चार इकाइयों को जब बिजली संकट नहीं हो उस समय अक्सर बंद ही रखा जाता है. किसी भी ताप आधारित बिजलीघर की इकाई की आयु 25 साल निर्धारित की गई है, ऐसे में कोटा थर्मल की पहली, दूसरी, तीसरी व चौथी यूनिट अवधि पार हो चुकी है. दोनों इकाइयां भले ही चार दशक पुरानी हो चुकी हैं, लेकिन इसके बाद भी पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन कर रही हैं.


बिजली उत्पादन का सूत्रपात इन्हीं इकाइयों से
कोटा सुपर थर्मल पावर स्टेशन की पहली व दूसरी यूनिट की स्थापना जनवरी 1983 में हुई थी. पहली व दूसरी यूनिट की स्थापना के छह माह के भीतर इनमें विद्युत उत्पादन शुरू हो गया था. राजस्थान में बिजली उत्पादन का सूत्रपात इन्हीं इकाइयों से हुआ, इससे पहले राजस्थान में बिजली का उत्पादन नहीं होता था.


एक बार बिजली उत्पादन शुरू करने के बाद इन इकाइयों ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा, चाहे कितना भी बिजली संकट आया, यह दोनों इकाइयां अपने ऊपर किए गए भरोसे पर खरी उतरीं. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब किसी भी ताप आधारित बिजलीघरों की इकाई की आयु 25 वर्ष ही मानी जाती है, इसके बाद भी ये दोनों इकाइयां 39 साल पुरानी होने के बाद भी पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन कर रही हैं.  


आरवीयूएनएल के सीएमडी आरके शर्मा ने बताया कोटा थर्मल की 110-110 मेगावाट की पहली व दूसरी इकाई को चलाने के लिए 31 दिसम्बर 2022 तक ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति प्राप्त है. इसके बाद इन्हें चलाने की अनुमति नहीं है, लेकिन वर्तमान में बिजली संकट को देखते हुए हमने इन इकाइयों से बिजली उत्पादन जारी रखने का निर्णय लिया है, इसके लिए हमें पेनल्टी चुकानी होगी.


वर्तमान में पैदा हुए बिजली संकट के दूर होने तक ही नहीं, हमारा प्रयास होगा कि जब तक अन्य बिजलीघरों की नई इकाइयों में बिजली उत्पादन शुरू नहीं हो जाता तब तक इन दोनों इकाइयों से पैनल्टी के बावजूद बिजली उत्पादन जारी रखा जाए.


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