मराठवाडा की बाढ़ को लेकर राज ठाकरे ने लिखी सीएम देवेंद्र फडणवीस को चिट्ठी लिखी है. राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में अतिवृष्टि ने जो कहर बरपाया है, उससे आप भलीभांति अवगत ही होंगे. महाराष्ट्र का शायद ही कोई हिस्सा बचा होगा जहां अतिवृष्टि ने नुकसान नहीं किया हो. हमारे पक्ष के पदाधिकारियों से चर्चा करने पर यह सामने आया है कि कई जगहों पर जमीन पूरी तरह से बहकर चली गई है. मई के मध्य से जो बारिश शुरू हुई है, उसने लगभग कभी विराम ही नहीं लिया, जिसके चलते खेती का जबरदस्त नुकसान हुआ है. ग्रामीण महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हो गई है.

राज ठाकरे ने सरकार को दिए सुझाव

  • किसी भी निकष की चौखट में न बांधते हुए, सार्वत्रिक ओला सूखा घोषित करें. एकड़ के हिसाब से 7 और 8 हजार रुपये जैसी तुच्छ नुकसान भरपाई से कुछ नहीं होगा. इसके बजाय प्रति एकड़ न्यूनतम 30 हजार रुपये मुआवजा घोषित करें. क्योंकि अब किसान को दोबारा संभलने में कम से कम 1 वर्ष लगेगा.
  • पिछले कुछ वर्षों की बेहिसाब फिजूलखर्ची से राज्य की आर्थिक स्थिति भले ही नाजुक हो गई हो, लेकिन सरकार को पीछे नहीं हटना चाहिए. समय पर केंद्र से मदद का पैकेज मांगना चाहिए. केंद्र सरकार ने पहले भी बिहार को ऐसा पैकेज दिया है, तो महाराष्ट्र को देने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. इसके लिए दिल्ली में जो भी प्रयास करने पड़ें, वे करने चाहिए. यह चित्र न बने कि केवल व्यक्तिगत शिकायतों या घटक दलों के संघर्ष के लिए ही हम दिल्ली जाते हैं, बल्कि यह भी दिखाई दे कि सरकार के सभी दल राज्य के लिए भी दिल्ली दौड़ते हैं.
  • ऐसी आपदा का पहला असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है. किसी भी बच्चे की पढ़ाई बंद नहीं होनी चाहिए. उसे आवश्यक किताबें-कॉपी उपलब्ध हों. और इस परिस्थिति में जब बच्चे अर्धवार्षिक परीक्षा देंगे, तो उनकी मानसिक स्थिति कैसी होगी, इसका सरकार ने विचार करना चाहिए और तत्काल कुछ कदम उठाने चाहिए. हिंदी भाषा थोपने में दिखाई गई तत्परता और आक्रामकता यहां भी दिखाई दे, ऐसी अपेक्षा है.
  • ऐसी आपदा के बाद बीमारियां तेजी से फैलती हैं. इसके लिए राज्य का स्वास्थ्य विभाग सतर्क रहे, यह सरकार ने देखना चाहिए. जिला अस्पतालों से लेकर स्वास्थ्य केंद्रों तक, कहीं भी दवाओं की कमी न हो, यह सुनिश्चित करना चाहिए.
  • ऐसे संकट के बाद कर्ज की किस्तों के लिए शुरू होने वाला बैंकों का दबाव बेहद तकलीफदेह विषय होता है. इसलिए बैंकों को उचित समझाइश अभी से सरकार ने देनी चाहिए, अन्यथा हमारे महाराष्ट्र सैनिक वह देना जानते ही हैं.
  • सरकार ने खेत पर जाकर किसानों के आंसू पोंछना, यह उसका कर्तव्य है. लेकिन उसकी प्रचारबाजी करना, यह महाराष्ट्र की संस्कृति नहीं है. इसलिए इन सब मोह से दूर रहकर सरकार और प्रशासन ने प्रति एकड़ न्यूनतम 30 से 40 हजार रुपये की मदद घोषित करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसान और उसका परिवार फिर से खड़ा हो सके.