महाराष्ट्र में धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिलाने की मांग एक बार फिर सुर्खियों में है. जालना में कार्यकर्ता दीपक बोरहाडे पिछले 11 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हैं. शनिवार (27 सितंबर) को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उनसे फोन पर बातचीत कर आश्वासन दिया कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से बात करेगी और एक प्रस्ताव भी भेजेगी.
'एसटी दर्जा देने का अधिकार सिर्फ केंद्र का'
फडणवीस ने कहा कि राज्य सरकार के पास धनगर समुदाय को एसटी दर्जा देने का अधिकार नहीं है. यह पूरी तरह से केंद्र का विषय है और वही इस पर फैसला कर सकता है. उन्होंने बताया कि इसी मांग पर दायर याचिकाओं को मुंबई हाईकोर्ट ने फरवरी 2024 में खारिज कर दिया था.
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि यह मामला मराठा आरक्षण से बिल्कुल अलग है और संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही आगे बढ़ेगा.
नेताओं ने अनशन स्थल पर की मुलाकात
बोरहाडे के समर्थन में शनिवार को जालना पहुंचे राज्य की प्रभारी मंत्री पंकजा मुंडे, कैबिनेट मंत्री गिरीश महाजन और अन्य नेताओं ने उनसे मुलाकात की.
वहीं, फडणवीस ने फोन पर बातचीत के दौरान बोरहाडे से अपील की कि अनशन और विरोध प्रदर्शन की बजाय बातचीत का रास्ता अपनाएं. मुख्यमंत्री ने बोरहाडे को मुंबई आकर विस्तृत चर्चा करने का न्योता भी दिया.
जीआर की मांग पर क्या बोले फडणवीस
जब बोरहाडे ने सरकार से लिखित प्रस्ताव यानी जीआर (Government Resolution) जारी करने की मांग की, तो मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ऐसा कोई जीआर जारी नहीं कर सकती. उन्होंने समझाया कि राज्य के पास यह अधिकार ही नहीं है, लेकिन सरकार केंद्र से इस पर चर्चा जरूर करेगी.
आदिवासी समाज की चिंता भी जताई
फडणवीस ने कहा कि अगर धनगर समुदाय को एसटी दर्जा देने की प्रक्रिया शुरू होती है, तो आदिवासी समुदाय को भरोसे में लेना जरूरी होगा. उन्हें डर है कि कहीं उनका मौजूदा आरक्षण प्रभावित न हो जाए. सरकार इस पहलू पर भी गंभीरता से विचार करेगी.
दीपक बोरहाडे ने बातचीत के दौरान चिंता जताई कि इस पूरी प्रक्रिया में लंबा वक्त लग सकता है. उन्होंने सुझाव दिया कि धनगरों को एसटी श्रेणी में शामिल करने का एक रास्ता यह हो सकता है कि उनका मौजूदा एनटी-सी आरक्षण सीधे एसटी कोटे में स्थानांतरित कर दिया जाए, ताकि आदिवासी समुदाय का हक प्रभावित न हो.
बोरहाडे ने कहा कि सरकार से लिखित आश्वासन मिलने के बाद ही वह आज रविवार (28 सितंबर) को अपने अनशन को जारी रखने या खत्म करने पर फैसला लेंगे. फिलहाल आंदोलनकारी समुदाय और सरकार दोनों की नजरें केंद्र सरकार की ओर टिकी हैं.