Maharashtra News: औरंगाबाद (Aurangabad) लोकसभा सीट पर 2019 लोकसभा चुनाव जैसी स्थिति इस बार भी पैदा हुई जहां पिछले चुनाव में AIMIM ने अविभाजित शिवसेना (Shivsena) को हराकर उससे उसका गढ़ छीन लिया था. हालांकि औरंगाबाद जिले का नाम बदलकर छत्रपति सांभाजीनगर कर दिया गया है लेकिन निर्वाचन आयोग के रिकॉर्ड में लोकसभा सीट का नाम औरंगाबाद ही है. यह मराठवाड़ा क्षेत्र में आता है. औरंगाबाद सीट को अविभाजित शिवसेना ने 1989 से के बाद छह बार जीता है. लेकिन पांच साल पहले बाल ठाकरे द्वारा स्थापित पार्टी को तब झटका लगा जब इसके अनुभवी नेता चंद्रकांत खैरे को AIMIM के इम्तियाज जलील ने 4,500 से भी कम वोटों के अंतर से हरा दिया था. 


इस सीट पर 13 मई को मतदान कराया जाएगा. इस सीट पर एकबार फिर एआईएमआईएम और विभाजित शिवसेना के गुट शिवसेना-यूबीटी के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा. एआईएमआईएम ने जलील को दोबारा टिकट दिया है. हालांकि 2019 और 2024 के बीच महाराष्ट्र की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है. जून 2022 में शिवसेना को विभाजन का सामना करना पड़ा और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को नई पहचा न मिली. उसे नया चुनाव चिह्न भी मिल गया है. वहीं खैरे, ठाकरे गुट के साथ हैं.


मराठवाड़ा की सीट जहां 1989 में शिवसेना की हुई एंट्री
औरंगाबाद महाराष्ट्र का औद्योगिक केंद्र है.  महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर भी है. इस निर्वाचन क्षेत्र में ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के कन्नड़, गंगापुर, वैजापुर और शहरी विधानसभा क्षेत्र के मध्य, पश्चिम और पूर्व औरंगाबाद शामिल हैं. लोकसभा क्षेत्र में 30,52,724 मतदाता हैं, जिनमें 16,00,169 पुरुष, 14,52,415 महिलाएं हैं. जबकि थर्ड जेंडर के 140 मतदाता शामिल हैं. औरंगाबाद शुरुआत में कांग्रेस का गढ़ था और इसने यहां आजादी के बाद के कई चुनाव जीते. हालांकि 1980 के दशक के अंत में और 90 के दशक में शिवसेना ने यहां एंट्री की और फिर यहां की बड़ी पार्टी बन गई.


पहली बार कौन बना यहां से सांसद 
यह सीट मुंबई के बाद अविभाजित शिवसेना का दूसरा गढ़ थी. यही वजह थी कि इसकी छह विधानसभा सीट 2019 के चुनाव में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन ने जीता था. कांग्रेस के सुरेश चंद्र यहां के पहले सांसद थे. जबकि स्वतंत्रता सेनानी स्वामी रामानंद औरंगाबाद के दूसरे सांसद थे जो कि कांग्रेस नेता था. यह सीट 1971 तक कांग्रेस के पास रही. हालांकि 1977 में जनता पार्टी के बापूसाहेब ने कांग्रेस के प्रत्याशी को हरा दिया था. इसके बाद 1984 में इंडियन कांग्रेस (सोशलिस्ट) के प्रत्याशी ने यहां से जीत हासिल की. 1989 में शिवसेना ने पहली बार यहां जीत हासिल की.


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