Singrauli News: मध्य प्रदेश के सिंगरौली (Singrauli) जिले में कोयला खदानों (Coal Mines) की अधिकता के चलते 11 बिजली संयंत्र (Power Plants) हैं. इन बिजलीघरों से हर साल लगभग 3 करोड़ मिट्रिक टन राख (ash) निकलती है, जिसमें से 30 फीसदी राख का इस्तेमाल हो ही नहीं पाता है. बिजली संयत्रों से निकलने वाले धुएं और राख के कारण सिंगरौली में टीबी, दमा जैसी गंभीर बीमारियों से जिंदगियां राख हो रही हैं. राख और धुएं की वजह से यहां की जमीन पर खेती तक नहीं होती. यह राख और धुआं यहां के लोगों की जिंदगी लील रहा है. 


सिंगरौली काला सोना यानी कोयले का गहना है. कोयला उत्पादन के चलते इस जिले में 11 बिजली संयंत्र हैं.  बिजली संयंत्र अधिक होने की वजह से सिंगरौली को ऊर्जाधानी के नाम से भी जाना जाता है. यह सब पढ़ने और सुनने में तो अच्छा लगेगा लेकिन लेकिन यहां बिजली की चमक के पीछे जीवन का घना अंधेरा छिपा हुआ है. सच यह है कि ऊर्जाधानी नामक शहर राख की दीवारों के बीच कैद है. उस कोयले की राख से जिससे बिजली बनकर राज्य और देश की कई बस्तियों को रौशन करती है. इसके बदले में इस इलाके की बस्तियां, गांव और खेत के आस-पास राख के पहाड़ खड़े हो गए हैं. 


बिजलीघरों से निकलने वाली राख से परेशान लोग
सिंगरौली जिला मुख्यालय बैढन से करीब 5 किलोमीटर के दायरे में बसे बलियरी, गहीगढ़, चन्दावल, जैसे अन्य इलाके के लोग बिजलीघरों से निकलने वाली राख से खासा परेशान हैं. एबीपी न्यूज की टीम ने एशिया के सबसे बड़े पावर प्लांट एनटीपीसी के बलियरी में स्थित राखड़ बांध और इस राख बांध से प्रभावित उसके आस-पास के इलाके में जाकर पड़ताल की.


नारकीय जीवन जीने को मजबूर लोग
राखड़ बांध से राख लेकर जाने वाले भारी वाहनों से भी राख का गुबार उड़ता है. हल्की सी हवा चलती है तो डैम से राख उड़कर इलाके के लोगों के घर और किचन तक पहुंच जाती है. बलियरी इलाके के स्थानीय रहवासी राजेश शाह ने बताया कि इलाके के लोग राखड़ डैम के चलते नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. इन दिनों आंधी चलने पर आसपास के इलाके में महज 10 फिट की दूरी में देखना मुश्किल हो जाता है. इलाके के लोग घरों में कैद है इसकी वजह राख है. 


राख से हो रहीं गंभीर बीमारियां 
बलियरी इलाके के 70 वर्षीय सकील अहमद बताते हैं कि राख के कारण शरीर में बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है. आंख में डस्ट चली जाती है, जब खाना खाते हैं तब उसमें भी राख आ जाती है. बाहर की हवा अब सांस लेने के लायक भी नहीं बची है. घर परिवार के लोग इसी राख की वजह से दमा, अस्थमा, एलर्जी जैसे गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं. वहीं, इसी इलाके की निवासी सीतापति बताती हैं कि बांध की राख हवा में उड़कर घर में आ जाती है. खाना, पानी में भी राख चली जाता है. अब तो हमें इसी माहौल में जीने की आदत हो गई है.


'सुविधाएं देने का किया था वादा, लेकिन मिला कुछ भी नहीं'
इलाके के स्थानीय लोग बताते हैं कि जब NTPC का यहां राख बांध स्थापित हो रहा था, तब अफसरों ने इलाके के विकास का सपना दिखाया था, राखड़ बांध बनकर तैयार तो हो गया लेकिन यहां के लोग राख की वजह से घर में कैद होने व पलायन करने को मजबूर हो गये हैं.


'नौकरी का सपना दिखाकर छीन लीं जमीनें'
सिंगरौली जिले के स्थानीय रहवासियों का एक दर्द और भी है. उद्योगपतियों ने नौकरी देने का सब्जबाग दिखाकर उनकी जमीनें ले लीं पर बाद में नौकरियां नहीं दीं. रिलायंस पावर प्लांट शासन को अपनी दस एकड़ जमीन देने वाले भगवान दास शाह बताते हैं कि 2007- 2008 में उनकी जमीन का रिलायंस पावर प्लांट ने अधिग्रहण किया था, 2012 में उन्हें लिखित आश्वासन दिया गया कि उन्हें कंपनी में स्थायी नौकरी दी जायेगी लेकिन 10 वर्ष बाद भी कंपनी में उन्हें नौकरी नहीं मिली. 10 वर्षों से लगातार वे डीएम की जनसुनवाई के चक्कर लगा रहे है लेकिन उन्हें झूठे आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिलता. 


ऐसा यहां सभी पावर प्लांट के मालिकों ने किया है. कइयों का मामला कोर्ट में चल रहा है.  खैराही गांव के अंजनी पाण्डेय कहते हैं कि कहीं जा नहीं सकते इसलिये एस्सार पावर प्लांट के पास अपनी जमीन पर घर बना रखा है लेकिन कम्पनियां अपनी पावर प्लांट की राख को घर के पास डम्प करा रही हैं जिससे जीना मुहाल हो गया है.


रिपोर्ट- देवेंद्र पाण्डेय


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