मध्यप्रदेश के राजगढ़ में बंदर की मौत के बाद बैंड बाजे के साथ मृत्यु भोज का आयोजन किया गया. खिलचीपुर के दिरावरी गांव में मंगलवार (18 नवंबर) को इस भोज के आयोजन में करीब 35 KM तक दूर गांव से लोग शामिल हुए. भोज में करीब 4 हजार लोगों ने खाना खाया. यह बंदर की मृत्यु से दुखी ग्रामीणों ने चंदा कर इस मृत्यु भोज का आयोजन किया. इसके लिए ग्रामीणों ने आसपास के करीब सैकड़ों गांव सहित अपने रिश्तेदारों को फोन पर निमंत्रण देकर इस आयोजन में बुलाया था.
दरअसल, राजगढ़ जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर स्थित दिरावरी गांव में बंदर की बारहवीं पर मंगलवार को मंदिर के पास ही बड़ा मृत्यु भोज रखा गया. इस आयोजन के लिए गांव वालों ने बाहर से हलवाई को बुलवाया, जिसने सुबह भट्टी जलाकर खुले परिसर में बड़े कड़ाहों में पूड़ी, कढ़ी , सेव और नुकती बनाने का काम शुरू किया. बंदर के इस मृत्युभोज का आयोजन धूमधाम से करने के लिए ग्रामीणों ने बाहर से बैंड-बाजे भी बुलवाए. जिस पर पूरे समय हनुमान जी के भजन बजते रहे.
भोज के लिए इकट्ठा हुआ 1 लाख का चंदा
ग्रामीणों का कहना था, “यह बंदर नहीं, हनुमानजी का रूप था, इसलिए मृत्यु भोज भी पूरे मान-सम्मान से किया.” भोज के लिए ग्रामीणों ने करीब 1 लाख रुपए का चंदा इकट्ठा किया. जिससे 5 क्विंटल आटा, 40 किलो सेव, 100 लीटर छाछ की कढ़ी की सामग्री, 180 लीटर तेल और 1 क्विंटल शक्कर से खाना बना. लगभग 4 हजार दोने, 4 हजार पत्तल मंगवाई गई. आसपास के गांवों और रिश्तेदारों को फोन से निमंत्रण भेजा गया था. जिसमें कई लोग 30–35 किलोमीटर दूर से पहुंचकर भोज में शामिल हुए.
7 नवंबर को हुई थी बंदर की मौत
बता दें कि, गांव में 7 नवंबर को बंदर की मौत हो गई थी. बंदर सुबह जंगल की ओर से गांव में आ गया था. वह उछल-कूद कर रहा था. तभी वह गांव के बाहर से निकल रही हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गया और घायल होकर नीचे गिर पड़ा. गांव वालों ने उसे भोजन पानी दिया, लेकिन देर शाम को उसने दम तोड़ दिया.
बैंड-बाजे के साथ निकाली गई थी बंदर की अंतिम यात्रा
8 नवंबर को पूरा गांव मंदरि के पास इकट्ठा हुआ. यहां बंदर के लिए डोल बनाकर अर्थी सजाई गई. इसके बाद अंतिम यात्रा मुक्तिधाम के लिए रवाना हुई. आगे डीजे चला, वहीं, पीछे गांव के लोग अंतिम यात्रा के साथ पूरे गांव से होते हुए मुक्तिधाम तक पहुचे. जहा इंसानों की तरह ही शान्ति धाम में विधि-विधान से बंदर का अंतिम संस्कार किया गया था.
शिप्रा नदी में विसर्जित की गई थीं बंदर की अस्थियां
ग्यारवें दिन सोमवार को गांव के पटेल बिरम सिंह सौंधिया खुद पांच पंचों के साथ अस्थियां लेकर उज्जैन गए और पंडित के द्वारा विधि विधान से बंदर की अस्थियों को शिप्रा में विसर्जित की गई थीं. पटेल ने बंदर के लिए अपनी दाढ़ी भी बनवाई और एक परिवार के सदस्य की तरह ग्यारहवीं का कार्यक्रम संपन्न किया. ग्रामीणों का मानना है कि बंदर हनुमानजी का ही रूप हैं.
4 हजार से ज्यादा लोगों ने खाना खाया
5 क्विंटल आटा, 40 किलो नमकीन (सेव) 100 लीटर छाछ की कड़ी, 180 लीटर तेल, 1 क्विंटल शक्कर, से बना भोजन और 4 हजार दोने- 4 हजार पत्तल लगे. 35 KM दूर तक के गांवों में निमंत्रण दिया. गांव के बाहर खुले परिसर में मृत्यु भोज का आयोजन किया गया. जहां खाने में नुक्ती, सेव, पुड़ी और कढ़ी बनी. 4 हजार से ज्यादा लोगों ने खाना खाया. इस दौरान जहां भोजन चल रहा था, वहां बैंड बाजे बुलवाए गए थे, जिस पर हनुमान जी के भजन चल रहे थे.