MP News: एक ऐसी बच्ची जो ना बोल सकती है ना सुन सकती है ना ही देख सकती है, लेकिन अपने हौसले और जज्बे से सराबोर डीप ब्लाइंड युवती एमपी बोर्ड में 10th क्लास के एक्जाम देने के लिए तैयार है. इंदौर के ट्रांसपोर्ट कारोबारी प्रीतपाल सिंह की 30 वर्षीय बेटी गुरदीप जो को बोल नहीं सकती सुन नहीं सकती और देख भी नहीं सकती है. गुरदीप प्रदेश की पहली बच्ची होगी जो डीप ब्लाइंड है, लेकिन दसवीं क्लास की एग्जाम देने के लिए तैयार है.


आनंद मूक बाघिर संस्थान प्रभारी डॉ मोनिका पुरोहित ने बताया कि आम तौर पर मुखबधिर बच्चों के लिए साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन गुरदीप डीप ब्लाइंड है, ऐसे में उसकी पढ़ाई के लिए हमें अलग से तैयारी करनी पढ़ी. इतना ही नहीं गुरदीप आम बच्चों की किताब से ही पढ़ाई कर रही है. लेकिन उसको समझाने के लिए किताबें ब्रेल लिपि में दिल्ली से स्पेशल मंगवाई गई हैं. 


कलेक्टर से भी की मुलाकात
डॉ मोनिका ने आगे बताया कि गुरदीप को पढ़ाने के लिए उंगलियों हथेलियों के स्पर्श से अर्थ समझाया जाता है. हथेलियों उंगलियों को अलग जगह से दबाया जाता है साथ ही शब्द के हिसाब से उंगलियों को मोड़ा भी जाता है. कई बार दो तीन बार दबाकर शब्द के वाक्य बनाए जाते है. गुरदीप भी ठीक ऐसा ही करती है अगर उसने सही बताया तो ठीक नहीं तो फिर से समझाया जाता है. गुरदीप अब प्रदेश की पहली बच्ची है जो एक्जाम में बैठेगी इसके लिए परिवार के द्वारा इंदौर कलेक्टर इलैया राजा टी से भी मुलाकात की. उन्होंने भी परिवार को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया है. 


साथ ही आनंद मूकबधिर संस्था के प्रभारी ज्ञानेंद्र पुरोहित ने शासन को एक पत्र भी लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है की गुरदीप की केयर टेकर उसकी छोटी बहन हरदीप रहेगी. वहीं गुरदीप की परीक्षा में मदद करने के लिए लैंग्वेज स्पेशल डॉ मोनिका पुरोहित रहेगी. परीक्षा में केयर टेकर बनने वाली छोटी बहन हरप्रीत ने बताया की वह गुरदीप का सबसे बड़ा सहारा है. वह हर पल अपनी बहन के साथ रहती है. बहन को सुविधा हो इस लिए हरदीप ने भी स्पेशल साइन लैंग्वेज सिख ली है. गुरदीप को किसी भी तरह का काम हो तो वह हथेली और उंगलियों को दबाकर छोटी बहन का बता देती है.


डॉक्टर की लापरवाही से झेल रही मार
बता दें की गुरदीप का जन्म 10 फरवरी 1991 में हुआ था दो जुड़वा बहनों में गुरदीप बड़ी थी. दूसरी बच्ची की मौत हो गई. जन्म लेने के साथ ही दोनों बच्चियों को तबियत खराब हो गई एक की मौत के बाद गुरदीप को इंक्यूवेटर में रखा गया था. गुरदीप की उससे जान तो बच गई लेकिन डॉक्टर की एक बड़ी लापरवाही के कारण उसकी आंखों की रोशनी चली गई. जब यह बात डॉक्टर को बताई गई तो कहा इंक्यूवेटर में रखने से पहले गुरदीप की आंखों पर रूई नहीं लगाई गई जिससे कारण अब वह कभी देख भी नहीं सकती. जिसके बाद मुंबई ले जाकर भी गुरदीप को दिखाया पर कही से कोई फायदा नहीं हुआ.


पिता प्रीतपाल सिंह ने ऐसी ही हालत में बेटी का पालन पोषण शुरू किया, लेकिन जब बच्ची को खिलाते समय आवाज दी जाती थी तो बच्ची का कोई रिएक्शन नहीं आता था. पिता को शक होने पर एक बार फिर डॉक्टर को दिखाया जब डॉक्टर की रिपोर्ट आई तो माता पिता के पैरो से जमीन खिसक गई. उन्हें पता चला कि इंक्यूवेटर में रखने से पहले बच्ची के कानों पर भी रूई लगाई जानी थी जो नहीं लगाई अस्पताल ने भी गलती मानी रिश्तेदारों ने भी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही, लेकिन प्रीतपाल सिंह ने यह सोच कर मन को समझाया की पैसे मिल भी जाएंगे पर बेटी ठीक तो नहीं हो सकेगी. फिर परिवार ने बेटी को पढ़ाने का मन बनाया और उसे मुंबई के हेलन केलर स्कूल में एडमिशन करवाया. यहां सातवी कक्षा तक पढ़ाने के बाद इंदौर के आनंद मूकबधिर संस्थान के पास लाया गया. यहां आठवी की एग्जाम दिलवाई गई अब गुरदीप 10वीं क्लास की एक्जाम देगी.


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