Rajgarh Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा के आज 6 साल पूर्ण हो गए. कहते हैं कि दिग्विजय सिंह की 6 माह की इसी नर्मदा परिक्रमा के बाद सूबे की सत्ता में कांग्रेस का 15 साल का सूखा खत्म हुआ था. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करते हुए कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में सरकार बनाई थी.


अब दिग्विजय सिंह एक बार फिर चुनावी दंगल में कूदते हुए अपनी संसदीय सीट राजगढ़ में पदयात्रा कर रहे है. आज हम मध्यप्रदेश के सियासी किस्सा सीरीज में दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा और उसके बाद के राजनीतिक संघर्ष पर चर्चा करेंगे.


'9 अप्रैल मेरे लिए संकल्प पूर्ति का दिन है'
पहले जानते है कि 70 साल की उम्र में लगभग ढाई हजार किलोमीटर लंबी नर्मदा परिक्रमा को याद करते हुए दिग्विजय सिंह ने X पर अपनी पोस्ट में क्या लिखा है?


उन्होंने नर्मदा परिक्रमा का एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा कि,"नर्मदे हर....6 साल पहले आज ही के दिन हमने अपनी नर्मदा परिक्रमा पूर्ण की थी. 6 महीने मां नर्मदा की गोद में खुद को सौंपकर मैंने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के स्थानीय लोगों का अपार स्नेह प्राप्त किया. 9 अप्रैल मेरे लिए संकल्प पूर्ति का दिन है. मां नर्मदा को प्रणाम करते हुए हमारी परिक्रमा पर बना वीडियो शेयर कर रहा हूं."






परिक्रमा वासियों का किया धन्यवाद
दिग्विजय ने आगे लिखा कि,"आज के दिन मैं उन सभी परिक्रमा वासियों का भी धन्यवाद और आभार प्रस्तुत करना चाहता हूं , जिन्होंने 6 महीने तक अपना घर-बार छोड़कर हमारे साथ कंकड़-पत्थर, रेत और पहाड़ पर पैदल चलना चुना और हमारे ह्रदय के क़रीब से जुड़े. मां नर्मदा सभी के संकल्प पूर्ण करें. संयोग से आज से नवरात्रि की भी शुरुआत हो रही है. सभी देश, प्रदेश और राजगढ़ वासियों को हमारी शुभकामनाएं."


2018 में ढाई हजार किलोमीटर की पदयात्रा की थी
दरअसल, मध्य प्रदेश में पवित्र नदी नर्मदा के प्रति लोगों में खूब श्रद्धा है. लोग नर्मदा जी के पदयात्रा करके खुद को धन्य मानते हैं. साल 2018 में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 70 साल की उम्र में अपनी पत्नी अमृता राय के नर्मदा जी के दोनों छोर को नापते हुए लगभग ढाई हजार किलोमीटर की पदयात्रा की थी. जैसा कि उन्होंने बताया, उनकी नर्मदा की परिक्रमा 9 अप्रैल 2018 को पूर्ण हुई. इस दौरान राज्य में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी भी तेज हो चली थी. 


दिग्विजय सिंह चुनाव के पहले ही नर्मदा परिक्रमा के बहाने मध्य प्रदेश के आम मतदाताओं से जीवंत संबंध बना चुके थे. इसके बाद नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की राजनीति की केंद्र में आ गई और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी भव्य सरकारी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़े.


15 साल के सूखे को खत्म कर दिया
मध्य प्रदेश में नवंबर 2018 में विधानसभा के चुनाव हुए.कमलनाथ, दिग्विजय सिंह तथा ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी ने सूबे की सत्ता में कांग्रेस के 15 साल के सूखे को खत्म कर दिया. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उमा भारती की अगुवाई में बंपर जीत के साथ दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की 10 साल पुरानी सरकार को सत्ता को बेदखल कर दिया था.


नर्मदा परिक्रमा भी बड़ा कारण थी
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे बताते हैं कि 15 साल बाद मिली सत्ता में पावर को लेकर कांग्रेस नेताओं में शुरू से ही मतभेद होने लगे थे. भोपाल में सत्ता का केंद्र मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बन गए, जबकि कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका अदा करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को साइड लाइन कर दिया गया. इस दौरान यह प्रचारित किया गया कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा भी बड़ा कारण थी.


भोपाल से बड़ी हार का सामना करना पड़ा
लेकिन, असल झगड़ा साल 2019 की गर्मियों में हुए लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हुआ जब भोपाल से दिग्विजय सिंह और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद का चुनाव हार गए. दिग्विजय सिंह को मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह के खिलाफ राजधानी भोपाल से बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह गुना सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके ही एक पुराने समर्थक केपी यादव ने चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ज्वाइन करते हुए पटखनी दे दी.


इस बीच बीजेपी ने मध्य प्रदेश में अपना 'ऑपरेशन लोटस' शुरू कर दिया. मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया, जब कांग्रेस हाईकमान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा की टिकट नहीं दी.कमलनाथ-दिग्विजय से ज्योतिरादित्य सिंधिया की बढ़ती तल्खी का फायदा उठाते हुए फरवरी 2020 में बीजेपी ने सूबे की सत्ता में तख्तापलट कर दिया.


22 विधायकों का साथ लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी का दामन थाम लिया.इसके बाद दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा के प्रताप से 15 साल बाद मिली कांग्रेस की सत्ता 15 महीने में ही देर हो गई. शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.


दिग्विजय सिंह का मुकाबला रोडमल नागर से है
हालांकि, सत्ता जाने के बावजूद भी दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे, जिसके चलते कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें राज्यसभा का दूसरा कार्यकाल भी दे दिया. एक बार तमाम ना नुकर के बावजूद आलाकमान के निर्देश पर दिग्विजय सिंह को अपनी परंपरागत राजगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़ना पड़ रहा है. यहां उनका मुकाबला दो बार के सांसद बीजेपी के रोडमल नागर से है. 


33 साल बाद पुनः चुनाव मैदान में उतरे हैं
चुनाव प्रचार के लिए इस बार भी दिग्विजय सिंह ने 'नर्मदा परिक्रमा' की तरह अपना पदयात्रा वाला दांव चला है.अपने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में दिग्विजय सिंह प्रतिदिन 25 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए एक बार फिर राजगढ़ के मतदाताओं से ही जीवंत संवाद बनाने का प्रयास कर रहे हैं. दिग्विजय सिंह अपना गढ़ बचाने के लिए 33 साल बाद पुनः चुनाव मैदान में उतरे हैं. उन्होंने इस सीट पर पिछला चुनाव 1991 में लड़ा था.


पहली बार दिग्विजय सिंह 1984 में लोकसभा चुनाव लड़े थे
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र की पहचान राघोगढ़ के राजा व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह 'दिग्गी राजा' के गढ़ के रूप में होती है. साल 1984 से लेकर 2014 के चुनाव तक अधिकांश मौकों पर राघोगढ़ राजपरिवार या उनके उतारे हुए प्रत्याशी का ही कब्जा रहा है. पहली बार दिग्विजय सिंह स्वयं 1984 में लोकसभा चुनाव लड़े थे. दो बार दिग्विजय सिंह खुद सांसद चुने गए, तो पांच बार उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह जीतकर लोकसभा में पहुंचे.


2009 के चुनाव में दिग्विजय सिंह के खास सिपहसालार नारायण सिंह आमलाबे भी लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुए थे.हालांकि, उस चुनाव में उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर उतरे लक्ष्मण सिंह को हराया था.राजगढ़ सीट पर साल 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के रोडमल नागर जीतने में कामयाब हुए.


ये भी पढ़ें: Jabalpur News: अफसर चुनाव में व्यस्त और बाबू खा रहे रिश्वत! लोकायुक्त ने जबलपुर में दो कर्मचारियों को रंगे हाथों पकड़ा