MP News: मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के लोगों की प्यास बुझाने के लिए चंबल नदी से पानी निकालने का रास्ता साफ हो गया है. तीन साल की रिसर्च के बाद जबलपुर के राज्य वन अनुसंधान संस्थान (SFRI) के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में इसके लिए क्लीयरेंस दे दी है. वैज्ञानिकों ने कहा कि चंबल नदी से 2050 तक पानी निकाला जाए तो भी नदी के जल जीवों और घड़ियालों को कोई नुकसान नहीं होगा.


पहले से चलती आ रही है मांग
दरअसल, सालों से मुरैना में चंबल नदी से पानी लाने की मांग होती रही है. माधवराव सिंधिया (Madhavrao Scindia) के समय कांग्रेस के नेताओं ने कलश में चंबल का पानी लेकर ग्वालियर आए थे. चंबल का पानी मुरैना और ग्वालियर दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए माधवराव सिंधिया के बाद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसकी मांग करते रहे हैं. चुनावों के वक्त यह आवाज जोर-शोर से उठती रही है, लेकिन प्रोजेक्ट के रास्ते में बाधा खड़ी करते हुए कभी राजघाट (मुरैना) में पानी न होने की बात उठाई जाती रही, तो कभी घड़ियाल और डाल्फिन का मुद्दा बाधा बनता रहा.


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रिपोर्ट शासन को सौपीं गई
चम्बल नदी में छोटे-बड़े मिलाकर 669 घड़ियाल, 329 मगर, 21 डॉल्फिन और 61 प्रजाति के कछुए हैं. इसकी सुरक्षा की चिंता की वजह से ही प्रोजेक्ट में बाधा आ रही थी. जबलपुर के राज्य वन अनुसंधान संस्थान की वाइल्ड लाइफ विंग की प्रभारी और प्रोजेक्ट की प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. अंजना राजपूत ने बताया कि मुरैना जिले में पानी की सप्लाई के लिए इंटेक वेल बनाया जाना है. प्रोजेक्ट के तहत उनकी टीम को यह रिपोर्ट देनी थी कि यदि साल 2050 तक चंबल नदी से पानी निकाला जाता है तो नदी में रहने वाले जलीय जीव-जंतुओं पर कोई विपरीत प्रभाव तो नहीं पड़ेगा. इसके लिए साल 2018 के नवंबर महीने से स्टडी शुरू की गई थी. जिसकी रिपोर्ट फाइनल कर शासन को सौंप दी गई है.


जुटाया गया 40 सालों का डाटा
डॉ. अंजना राजपूत ने बताया कि हमने इसके लिए चंबल नदी का पिछला 40 वर्षों का डाटा एकत्र किया है. इसमें इंटेक वेल के एक किलोमीटर में स्टडी करते हुए यह भी जानकारी जुटाई गई कि इसका जलस्तर कितना निम्न रहा है. साथ ही 30 किलोमीटर के दायरे में इस स्टडी को पूरा किया गया. जिसमें यहां के घड़ियाल, मगर, डॉलफिन और दुर्लभ प्रजातियों के कछुओं की भी जानकारी जुटाई गई है. स्टडी के मुताबिक यहां से पानी निकालने पर जल जीवों पर किसी प्रकार का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा.