Jharkhand News: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिबू सोरेन (Shibu Soren) को 1998 के रिश्वत कांड में अभियोजन से बचाने वाले बेहद चर्चित फैसले को सोमवार को पलट दिया, लेकिन विडंबना यह रही कि उनकी ही पुत्रवधू सीता सोरेन (Sita Soren) की याचिका पर यह फैसला सुनाया गया. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 26 वर्षों के बाद पूर्व के अपने फैसले को निरस्त करते हुए घूस लेकर सदन में वोट डालने या भाषण देने वाले सांसदों को प्राप्त छूट समाप्त कर दी. 


संविधान पीठ में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सीता सोरेन के लिए एक झटका था और इसके बाद अब उन पर रिश्वत मामले में मुकदमा चलाया जा सकता है. उन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया है. हालांकि, उन्होंने उम्मीदवार को वोट नहीं दिया. 


सीता सोरेन ने SC में दी थी ये दलील
सोरेन ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि सांसदों को अभियोजन से छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधान और 1998 के उस फैसले को उनके मामले में भी लागू किया जाना चाहिए, जिसमें उनके ससुर शिबू सोरेन को जेएमएम रिश्वत घोटाले में बरी कर दिया गया था. सीता सोरेन ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार करने के झारखंड हाईकोर्ट के 17 फरवरी, 2014 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था. इस बीच पीठ ने कहा कि सदन के सदस्यों के विशेषाधिकार व्यक्तिगत रूप से सदन की सामूहिक रूप से अपनी कार्यप्रणाली को पूरा करने और अपने अधिकार एवं गरिमा की पुष्टि करने की क्षमता से कार्यात्मक संबंध रखते हैं.


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