Jharkhand News: झारखंड में सफेद बालू का काला कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है. 18 हजार का बालू 28 हजार रुपये में बिक रहा है. बेहद हैरान करने वाली बात है कि, राज्य के 608 बालू घाटों में से सिर्फ 17 घाटों से ही वैध तरीके से बालू का उठाव हो रहा है. इसलिए प्रेदश में ऐसी स्थिति बनी है. रांची सहित राज्य के अधिकतर जिलों में एक भी घाट की बंदोबस्ती न होने से पिछले पांच सालों से बिना टेंडर के ही बालू का खनन और परिवहन हो रहा है. पिछले साल विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष ने बालू के अवैध कारोबार को लेकर सरकार को घेरा था. जिससे सदन में जमकर हंगामा भी हुआ था. तब प्रभारी मंत्री बादल पत्रलेख ने तीन माह में सभी बालू घाटों की बंदोबस्ती करने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक एक भी घाट की बंदोबस्ती नहीं हुई.
मिली जानकारी के अनुसार अब 10 जून से फिर बालू खनन पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रोक लगाएगी. इससे फिर बालू को लेकर बवाल होना तय माना जाना रहा है. ऐस में लोगों को मुंहमांगी कीमत पर बालू खरीदना होगा. पिछले साल भी किल्लत होने पर बिहार बंगाल से बालू मंगाना पड़ा था. तब 18 हजार रुपये वाला बालू 48 हजार में बिका था. बता दें कि, बालू घाटों की बंदोबस्ती से पहले सभी जिलों का डिस्ट्रिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) तैयार करना जरूरी था. इस रिपोर्ट को इनवायरमेंट ईपैक्ट असेस्मेंट कमेटी (सिया) को भेजना था, ताकि पर्यावरण स्वीकृति ली जा सके. पर्यावरण स्वीकृति के बाद ही किसी भी घाट का टेंडर किया जा सकता है.
डीएसआर बनाने में हुई देरीवहीं जिले के अधिकारियों ने डीएसआर बनाने में ही देरी कर दी. इस वजह से अभी तक कई जिलों का डीएसआर सिया को नहीं भेजी गई. रांची जिले के सभी घाटों का डिस्ट्रिक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करके पोर्टल पर अपलोड कर दिया गया है. जिला खनन पदाधिकारी ने अब इस रिपोर्ट पर आम लोगों से आपत्ति-सुझाव मांगा है. मतलब रांची में टेंडर की प्रक्रिया पूरी करने में अभी तीन से चार माह का समय लगेगा. इसके अलावा गढ़वा, लातेहार सहित कुछ जिलों में डीएसआर तैयार करके सिया से पर्यावरण स्वीकृति लेने के बाद माइंस डेवलपर सह ऑपरेटर (एमडीओ) नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू की गई है. इसमें भी एक माह का समय लगेगा.
धड़ल्ले से चल रहा अवैध खननवहीं जब तक एमडीओ की नियुक्ति होगी तब तक बालू उत्खनन पर एनजीटी की रोक लग जाएगी. बालू की किल्लत की वजह से रियल इस्टेट सेक्टर तो पहले से प्रभावित है. साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी और ग्रामीण के तहत बनने वाले घरों का निर्माण भी धीमा हो गया है. क्योंकि, इस योजना के लाभुकों को 3000 रुपये प्रति टबों (140 सीएफटी) में मिलने वाला बालू 4,500 रुपए में खरीदना पड़ रहा है. स्मार्ट सिटी की योजनाएं और लाइट हाउस की रफ्तार धीमी पड़ गईं है. इसके अलावा शहरों में 200 से अधिक पीसीसी रोड, नाली निर्माण पर भी असर पड़ेगा. जानकारी के अनुसार, रांची सहित राज्यभर में अवैध बालू का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। बालू कारोबारियों के अनुसार राज्यभर में रोजाना 700 से 800 हाईवा अवैध बालू की खरीद-बिक्री होती है. औसतन 28,000 रुपए प्रति हाईवा की दर से बालू की बिक्री होती है तो भी प्रति माह करीब 60 करोड़ रुपये का अवैध धंधा चल रहा है.