Babulal Marandi Defection Case: झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो (Rabindra Nath Mahato) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) के खिलाफ दलबदल के आरोपों से जुड़े एक मामले की सुनवाई मंगलवार को पूरी कर ली और फैसला सुरक्षित रख लिया. सूत्रों ने संकेत दिया कि मरांडी झारखंड विधानसभा की अपनी सदस्यता गंवा सकते हैं. सूत्रों के अनुसार, महतो की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने गवाहों से जिरह का अनुरोध करने की अनुमति मांगने वाली मरांडी के वकील की अर्जी खारिज कर दी. मरांडी के वकील ये साबित करना चाहते थे कि झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का बीजेपी में विलय दलदबल रोधी कानून में निर्धारित प्रावधानों के तहत कानूनन किया गया है. 


2020 में दर्ज किए गए थे आरोप 
मरांडी के खिलाफ आरोप दिसंबर 2020 में दर्ज किए गए थे. इससे पहले, उन्होंने उसी साल फरवरी में अपनी पार्टी, झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का विलय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में बीजेपी में कर दिया था और उन्हें (मरांडी को) सर्वसम्मति से बीजेपी विधायक दल का नेता चुना गया था.


दायर की गईं शिकायतें
विधानसभा अध्यक्ष ने दलबदल रोधी कानून के तहत स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की थी. इस संबंध में शिकायतें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के पूर्व विधायक राजकुमार यादव, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक भूषण तिर्की, कांग्रेस विधायक दीपिका पांडे और झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के पूर्व विधायक प्रदीप यादव ने दायर की थीं.


ये भी जानें 
मरांडी ने अपनी पार्टी के 2 विधायकों, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को निलंबित करने के बाद 17 फरवरी, 2020 को झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का बीजेपी में विलय कर लिया था. प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने बाद में पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया था. बीजेपी ने यादव और बंधु तिर्की को अयोग्य ठहराने की मांग की थी, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई की एक अदालत द्वारा 3 साल कैद की सजा सुनाए जाने के बाद अयोग्य घोषित कर दिया गया था. सीबीआई की एक अदालत के फैसले के बाद, अप्रैल में तिर्की को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत झारखंड विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था.


बाबूलाल मरांडी की अर्जी खारिज
इससे पहले, विधानसभा अध्यक्ष महतो ने मई में बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी की वो अर्जी खारिज कर दी थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दलबदल के आरोपों को खारिज करने और दलबदल रोधी कानून के तहत कार्यवाही इस आधार पर रद्द करने की मांग की थी कि वो देर से दायर किए गए. मरांडी के वकील आरएन सहाय ने पहले कहा था कि उनके (मरांडी के) खिलाफ याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं क्योंकि उन्हें झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के बीजेपी में विलय के 10 महीने बाद दायर किया गया था और याचिकाओं को खारिज कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में भी इसके लिए 45 दिनों की समय सीमा दी गई है. 


राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग
इस साल फरवरी में बीजेपी के एक प्रतिनिधिमंडल ने झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस से संपर्क किया था और 81 सदस्यीय राज्य विधानसभा में मरांडी को विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त किए जाने में उनके हस्तक्षेप की मांग की थी. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद दीपक प्रकाश के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से कहा था कि आदिवासी राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे बीजेपी विधायक दल के नेता मरांडी को 2 साल बाद भी विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं दिया गया है. उन्होंने आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष ने नवंबर-दिसंबर 2019 में राज्य विधानसभा के चुनाव के बाद से नियुक्ति पर झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार के इशारे पर फैसला नहीं लिया. 


ये भी पढ़ें:


Seema Patra Profile: जानें कौन है मेड पर बेइंतहा जुल्म करने वाली BJP की निलंबित नेता सीमा पात्रा


Jharkhand: मेड को टॉर्चर करने का किया विरोध तो सीमा पात्रा ने अपने ही बेटे पर किए जुल्म, पागलखाने में करा दिया भर्ती