Jharkhand News: राजधानी रांची में डॉक्टरों की लापरवाही का बड़ा मामला सामने आया है. दरअसल रांची के 15 वर्षीय अली खान का पैर टूट गया था. जिसके बाद परिजन उसे रांची के सदर अस्पताल ले गए. मरीज की मां के अनुसार जब वो बच्चे को अस्पताल लेकर पहुंचे तो सदर अस्पताल के डॉ. एस अली ने कहा कि बच्चे का ऑपरेशन करना होगा मगर अस्पताल में काफी भीड़ होने के कारण ऑपरेशन में काफी वक्त लग जाएगा. वही मामले को लेकर बच्चे का परिजनों का कहना है कि डॉक्टरों ने बच्चे का सही समय पर इलाज नहीं किया जिससे उसकी मौत हो गई.
कुछ दिन पहले ही अस्पताल को किया गया अपग्रेड
आपको बता दें कि करोड़ों रुपए की लागत से रांची के सदर अस्पताल को कुछ वक्त पहले ही सरकार ने अपग्रेड किया है और नई इमारत का उद्घाटन भी कुछ समय पूर्व ही स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने किया था. मगर बच्चे की मां की माने तो डॉक्टर ने उनसे यह भी कहा कि अस्पताल की मशीन खराब पड़ी है. कोलकाता से इंजीनियर के आने के बाद ही मशीन बन पाएगी. वहीं इस मामले को लेकर डॉ. एस अली का कहना है कि अन्य डॉक्टरों द्वारा मरीज के परिजनों को बरगलाया गया है. डॉक्टर की सलाह के बाद परिजन आयुष्मान योजना के तहत ही एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचे थे. जहां पर डॉ. एस अली को ही बच्चे का ऑपरेशन करना था. वही बच्चे की माता ने डॉ. अली पर आरोप लगाते हुए कहा है कि दो बार बच्चे को एनेस्थीसिया दिया गया जिसके बाद बच्चा कोमा में चला गया मरीज के परिजनों को बच्चे से मिलने से रोक दिया गया. जिसके बाद काफी मशक्कत के बाद जब वे अपनी बेटे से मिलने पहुंची तो उसका शरीर ठंडा पड़ने लगा था जिसके बाद अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा मरीज को रिम्स भेजने का दबाब बनाया जाने लगा और कहा गया कि जल्द से जल्द उसे रिम्स ले जाया जाए वहां जो भी खर्च आएगा वह अस्पताल प्रबंधक खर्च करेगा.
डॉक्टर ने कहा सारे आरोप बेबुनियाद है
जब आधी रात को बच्चे को रिम्स ले जाया गया तो इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो गई, उसका पोस्टमार्टम किया गया है. परिजन बच्चे का शव लेकर विनायका अस्पताल पहुंचे ओर नारेबाजी भी की. मगर पुलिस प्रशासन ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया और बच्चों के परिजनों ने कहा कि डॉक्टरों की लापरवाही के कारण उनके बच्चे की जान चली गई. उधर डॉ. एस अली ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सरासर गलत बताया है. उनका कहना है कि बच्चे की मौत का कारण शपाइनल शॉक है मगर सवाल यह उठता है कि जिन्हें हम भगवान का दूसरा रूप मानते है अगर वही जान बचाने के बजाय ऐसे लापरवाही बरतेंगे तो लोग इन डॉक्टरों पर कितना विश्वास कर पाएंगे.
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