Name Change Politics in Himachal Pradesh: विलियम शेक्सपियर (William Shakespeare) कहा करते थे कि नाम में क्या रखा है, लेकिन बात अगर राजनीति की हो तो नाम में ही सब कुछ रखा नजर आता है. बात चाहे राजनीति में नाम बनाने की हो या फिर नाम बदलने की. भले ही देश में नाम बदलने की राजनीति हाल ही में प्रचलन में आई हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश में नाम बदलने की राजनीति दशकों पुरानी है. हिमाचल प्रदेश में लंबे समय से सरकारें अपनी सहूलियत के हिसाब से नाम बदलती रही हैं.


हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अपने कार्यकाल के दौरान स्टेट गेस्ट हाउस पीटरहॉफ का नाम बदलकर मेघदूत रख दिया था. हालांकि, बाद में सत्ता बदलने पर वीरभद्र सिंह ने मेघदूत का नाम फिर बदल कर पीटरहॉफ ही कर दिया. इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास ओक ओवर का नाम भी शेल कुंज कर दिया था.


रिपन अस्पताल को किया गया दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल


वरिष्ठ पत्रकार अश्वनी शर्मा बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में नाम बदलने की राजनीति दशकों पुरानी है. शांता कुमार ने अपने सीएम कार्यकाल में सरकारी आवास का नाम बदलकर शेल कुंज कर दिया था. शांता कुमार की धर्मपत्नी का नाम शैलजा था. कुछ लोग यह भी मानते थे कि उन्होंने यह नाम अपनी धर्मपत्नी से मिलता-जुलता कर दिया था. इसी तरह शिमला के क्षेत्रीय अस्पताल रिपन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल किया गया और स्नोडाउन अस्पताल का नाम बदलकर इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज किया गया है. हिमाचल प्रदेश में नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर योजनाओं और संस्थानों की फेहरिस्त बहुत लंबी है.


शिमला का नाम श्यामला करने का प्रस्ताव


वरिष्ठ पत्रकार अश्वनी शर्मा बताते हैं कि साल 2018 के अक्टूबर महीने में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का नाम बदलने का प्रस्ताव सामने आया था. शिमला का नाम बदलकर श्यामला बदलने का प्रस्ताव रखा गया है. यह मांग विश्व हिंदू परिषद की ओर से उठाई गई थी. इस मांग का समर्थन हिमाचल प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य महकमा देख रहे डॉ. विपिन सिंह परमार ने भी किया था. शिमला के मशहूर कालीबाड़ी मंदिर में मां काली को पहले श्यामला देवी कहकर पुकारा जाता था.


पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह ने किया था तंज


माना जाता है कि श्यामला से ही पहले सिमला और फिर शिमला नाम अस्तित्व में आया था. प्रदेश की राजधानी का नाम बदलने को लेकर पक्ष-विपक्ष आमने-सामने आ गए थे. उस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा था कि शिमला के नाम बदलने का प्रस्ताव सरासर गलत है. उन्होंने तंज करते हुए कहा कि अब विश्व हिंदू परिषद उनका नाम भी बदलने का प्रस्ताव रख सकती है. तब क्या मेरा यानी वीरभद्र सिंह का नाम भी बदल दिया जाएगा?


डलहौजी का नाम भी बदलने की मांग


इसी तरह हिमाचल प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल डलहौजी का नाम बदलने को लेकर भी कई बार प्रस्ताव रखा गया. डलहौजी का नाम सुभाष नगर करने की मांग उठती रही है. शांता कुमार ने अपने सीएम कार्यकाल में यह नाम बदल भी दिया था, लेकिन बाद में इस नाम को आगे नहीं बढ़ाया गया. हाल ही में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल को पत्र लिखकर डलहौजी का नाम बदलकर सुभाष नगर करने की मांग की थी. गौरतलब है कि जेल में रहते हुए सुभाष चंद्र बोस का स्वास्थ्य जब बिगड़ा था, उस वक्त वह स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए डलहौजी आए थे.


रोहतांग टनल का नाम भी बदला गया


इसके अलावा समय-समय पर सरकार बदलने के बाद योजनाओं के नाम बदलना भी हमेशा ही चर्चाओं में रहता है. हिमाचल प्रदेश में बनाई गई मशहूर रोहतांग टनल का नाम भी उद्घाटन से पहले अटल टनल कर दिया गया था. देश के साथ हिमाचल प्रदेश में भी राजनीतिक सहूलियत के मुताबिक नाम बदलने की राजनीति हमेशा जोरों पर रहती है. हालांकि, यह आम जनता पर कितना प्रभाव डाल पाती है, इस बारे में कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता. जानकारों के इसे लेकर अलग-अलग मत हैं.


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