Rohtang Pass Trip: मैदानी इलाकों से पहाड़ों की खूबसूरत वादियों का दीदार करने के लिए पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए खुशखबरी है. जिला कुल्लू प्रशासन ने पर्यटकों के लिए रोहतांग दर्रा (Rohtang Pass) बहाल कर दिया है. आज से ही पर्यटक खूबसूरत रोहतांग दर्रे का दीदार कर सकेंगे. हालांकि बर्फबारी अधिक होने की वजह से इस बार रोहतांग दर्रा 38 दिन की देरी से बहाल हुआ है. बीते साल 5 मई को ही रोहतांग दर्रा खोल दिया गया था.


जिला प्रशासन से जारी की अधिसूचना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) के नियमों के मुताबिक, 1 हजार 200 गाड़ियां ही रोजाना रोहतांग जा सकेंगी. आज से रोहतांग दर्रा बहाल होने के बाद पर्यटन सीजन भी रफ्तार पकड़ता हुआ नजर आएगा. रोहतांग के खुलने से पर्यटन कारोबारियों ने भी राहत भरी सांस ली है. मनाली के एसडीएम रमन कुमार शर्मा और डीएसपी के.डी. शर्मा ने रविवार को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) के अधिकारियों के साथ संयुक्त निरीक्षण किया था. इस निरीक्षण में रोहतांग के हालात सामान्य पाए गए. इसके बाद जिला कुल्लू के उपायुक्त आशुतोष गर्ग (DC Kullu Ashutosh Garg) को यह रिपोर्ट सौंपी गई. इस रिपोर्ट के आधार पर उपायुक्त ने रोहतांग दर्रा बहाल करने का फैसला लिया है. यह अधिसूचना सोमवार देर शाम को जिला प्रशासन कुल्लू की तरफ से जारी की गई.


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करना होगा ऑनलाइन आवेदन 
रोहतांग दर्रे का दीदार करने के लिए पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर ऑनलाइन परमिट (Rohtang Permit) लिया जा सकता है. यह परमिट https://rohtangpermits.nic.in/ वेबसाइट पर उपलब्ध है. परमिट लेने के लिए 550 शुल्क तय किया गया है. हर रोज 800 पेट्रोल और 400 डीजल गाड़ियां ही रोहतांग दर्रे में जा सकती हैं. यह नियम नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की ओर से बनाया गया है.


क्या है रोहतांग का मतलब?
आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि रोहतांग का अर्थ 'लाशों का ढेर' होता है. दरअसल, जब रोहतांग में कोई सुविधा नहीं थी, तब अक्सर रोहतांग दर्रे को पार करने में कई लोगों की मौत हो जाती थी. इसी के चलते दर्रे का नाम रोहतांग पड़ा. हालांकि समय के साथ अब रोहतांग दर्रा सुविधाओं के साथ लैस हो रहा है. समय के साथ रोहतांग दर्रा एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हुआ. यहां केवल गर्मियों के वक्त में ही जाया जा सकता है. इससे पहले अटल टनल बनने से पहले रोहतांग दर्रा ही लाहौल-स्पीति पहुंचने का एकमात्र रास्ता था, लेकिन अटल टनल ने इस इलाके की कायापलट करने का काम कर दिखाया है. एक अन्य किस्सा यह भी है कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के सामने टनल की मांग रखने वाले उनके दोस्त अर्जुन गोपाल उर्फ टशी दावा की मौत भी रोहतांग दर्रे में फंसने की वजह से ही हुई थी. जब इस टनल का काम शुरू हुआ, तब इसका नाम रोहतांग टनल था. बाद में इसका नाम बदलकर अटल टनल किया गया.