9 Years of Nirbhaya Incident: 16 दिसंबर हर तारीख की तरह यह भी एक आम तारीख रह सकती थी, लेकिन आज ही के दिन साल 2012 में हुए उस कांड ने सभी को झकझोर कर रख दिया और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिरकार हम कैसे समाज में जी रहे हैं. जहां महिलाओं के साथ उस तरीके की हैवानियत और दरिंदगी को अंजाम दिया जाता है.


16 दिसंबर साल 2012 की रात को एक ऐसी घटना घटित हुई जो आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है. उस रात एक बस में सवार 23 वर्षीय छात्रा के साथ 6 दरिंदों ने उस बर्बरता को अंजाम दिया, जिसे सोच कर ही कोई भी लड़की सिहर जाएगी. आज उस घटना को 9 साल पूरे हो चुके हैं. जिस लड़की के साथ ही घटना हुई वह आज हमारे बीच नहीं है, जिन दरिंदों ने इस घटना को अंजाम दिया उन्हें फांसी पर लटकाया जा चुका है लेकिन सवाल यह है कि इतने सालों बाद भी महिलाओं की स्थिति में क्या कुछ सुधार आया है. सड़क पर निकलने वाली एक छात्रा या महिला कितनी सुरक्षित है?


सड़कों पर लिकलने वाली बेटियां आज भी सुरक्षित नहीं


निर्भया केस के बारे में बात करते हुए कॉलेज की एक छात्रा रूही ने कहा की बलात्कार जैसी चीज के बारे में सुनकर ही डर लगता है, जब हम अपने घर से निकलते हैं तो रास्ते में यदि कोई छेड़ते हुए कुछ कहता है या टच करता है, तो वो ही एक लड़की के लिए भुलाना आसान नहीं होता, ऐसे में कोई कैसे किसी को उसकी मर्जी के बिना छू सकता है? उसके साथ हैवानियत की सभी हदें पार कर सकता है, यह सोचकर ही डर लगता है कि किस तरीके से निर्भया ने उस समय यह सब सहा होगा, उसके साथ जो कुछ भी हुआ हर लड़की ने वह महसूस किया है. 26 वर्षीय कोमल ने निर्भया केस के बारे में बात करते हुए कहा कि केवल निर्भया केस नहीं है और हर साल हम इस दिन को याद करें सिर्फ यहां तक सीमित नहीं है. महिलाओं की सुरक्षा और उनके प्रति समाज की जो जिम्मेदारी है वह आज भी पूरी नहीं हुई है, लोग आज भी नहीं समझ पाए हैं कैसे अपनी मां, बहन और बीवी के साथ-साथ घर के बाहर सभी महिलाओं की इज्जत करनी है. महिलाओं को घर से लेकर ऑफिस तक और अपने ससुराल जाने तक बार-बार यही बताया जाता है कि वह एक महिला है, उसे क्या चीज करनी है, और क्या चीज नहीं करनी है. अपनी सुरक्षा को लेकर वो चाहे कितनी भी सतर्क हो जाए, लेकिन हैवानियत को अंजाम देने वाले कहीं ना कहीं घात लगाए बैठे हुए हैं. उन्होंने कहा कि शहरों में तो भी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी महिलाएं और छोटी-छोटी बच्चियां सुरक्षित नहीं है, वह घर से निकल नहीं सकती हैं. निकलती है तो वे सुरक्षित नहीं हैं. लोग अपने बच्चों खास तौर पर अपने लड़कों को क्या शिक्षा दे रहे हैं, यह अभी तक नहीं समझ पा रहे. महिला एक्टिविस्ट योगित भयाना ने कहा कि आज भी कुछ नहीं बदला है, आज भी रोजाना कई निर्भया हैवानियत का शिकार हो रही है, ना केवल दिल्ली बल्कि यूपी-बिहार राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसी जगहों पर मामले देखने को मिलते हैं.


महिला एक्ट्रेस शारद दीक्षित ने कहा कि अपराधों पर लगाम लगाने के लिए समाज में कानून व्यवस्था और सरकार की अहम भूमिका होती है, लेकिन दिल्ली जैसा शहर इतना असुरक्षित है कि यहां पर हर एक 18 घंटे में एक बलात्कार होता है, उत्तर प्रदेश के बाद देश की राजधानी दिल्ली बलात्कार के मामलों में दूसरे नंबर पर है. और तो और अब दिल्ली सरकार शराब की दुकान खोले जाने को लेकर जो नई नीति लेकर आई है जिसके अंतर्गत रिहायशी इलाकों में भी शराब की दुकानें खोली जा रही है, जगह-जगह शराब की दुकानें खोली जा रही है जोकि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में और बढ़ोतरी करेगी.


निर्भया की मां बेटी को करती हैं याद


कहते हैं कि एक बेटी सबसे ज्यादा करीब अपनी मां के करीब होती है और यदि उस बेटी को कोई तकलीफ होती है तो मां को सबसे पहले पता चलता है. निर्भया की मां जो आज भी उसके जाने का गम नहीं भुला पाई हैं. आशा देवी ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि आज 9 साल पूरे हो गए हैं लेकिन यादें अभी भी हैं. हर वक्त उसकी याद आती है, कोई भी खुशी का मौका तो हम उसे याद करते हैं, उसका जन्मदिन 10 मई को होता है उस दिन हम उसके पसंद की चीज अपने घर में बनाते हैं दूध से बनी हुई चीजें खासतौर पर खीर उसे बेहद पसंद थी. उन्होंने बताया कि अपनी पढ़ाई के लिए वह 5 साल हमसे दूर रही थी, देहरादून में पढ़ाई करती थी और छुट्टियों में घर आती थी और जब भी घर आती थी तो उसकी पसंद की चीजें बनाते थे. उसके लिए नए कपड़े खरीदते थे और उसे खूब प्यार करते थे लेकिन वो दिन हम कभी नहीं भूल पाएंगे.


वकील सीमा कुशवाहा ने ये कहा


निर्भया केस में अहम भूमिका निभाने वाली वकील सीमा कुशवाहा ने कहा कि 20 मार्च 2020 को जब चार अपराधियों को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया तो हमारे लिए एक सुकून जरूर रहा, लेकिन आज भी हम वहीं खड़े हैं, आज भी बच्चियों और महिलाओं के साथ दिन प्रतिदिन अपराध हो रहे हैं. वह एक वकील हैं और उनके सामने रोजाना कई ऐसे मामले आते हैं. कई ऐसी बच्चियां जो डर के साए में जी रही हैं. उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा बुरे हालात तब होते हैं कि जब एक बच्ची के साथ इस तरीके की घटना होती है लेकिन उसे उसके परिवार समाज और कानून से भी मदद नहीं मिलती. निर्भया के बाद कई ऐसे मामले हुए. हाल ही में हुई घटनाओं की बात करें तो हाथरस, दिल्ली कैंट की घटना, बिहार में 3 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और फिर उसकी हत्या जैसे ना जाने कितने अनगिनत मामले हैं. हाथरस के मामले को लेकर उन्होंने कहा कि 1 साल होने जा रहा है लेकिन अभी भी इस मामले में कुछ निकल कर सामने नहीं आया है. हाथरस केस की सुनवाई के लिए लखनऊ कोर्ट जा रही सीमा कुशवाहा ने बताया कि कानून व्यवस्था को मजबूत करने की आवश्यकता है, जल्द से जल्द सुनवाई हो, बिना डरे बिना घबराए पीड़िता अपनी बात रख सके यह जरूरी है. बदलाव एक यह हुआ है कि अब बच्चियों ने बोलना सीख लिया है, अपने लिए लड़ना चाहती हैं लेकिन अभी भी उन्हें स्ट्रगल करना पड़ता है.


वकील एसपी सिंह ने यह कहा


निर्भया के मामले में 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन 11 मार्च 2013 में मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली. और एक आरोपी जिसके प्रमाण पत्र के आधार पर वह नाबालिक था इसीलिए उसे 3 साल बाल सुधार गृह में भेजने के बाद रिहा कर दिया गया. वहीं बाकी बचे चार आरोपी मुकेश सिंह, विनय शर्मा, पवन गुप्ता, अक्षय ठाकुर को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 20 मार्च 2020 के दिन सुबह 5:30 बजे फांसी पर लटका दिया गया. हालांकि इन आरोपियों के वकील ए पी सिंह अभी भी इस फांसी को सही नहीं मानते हैं. एबीपी न्यूज़ से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह एक सरकारी हत्या थी. उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि समाज में एक मैसेज देने के लिए और गैंगरेप, बलात्कार जैसी घटनाओं और महिलाओं के प्रति होते अपराधों को खत्म करने के लिए समाज में एक बदलाव लाना होगा और इन आरोपियों की फांसी एक उदाहरण बनेगी, लेकिन क्या आज वह बदलाव हुए हैं, गैंगरेप और रेप के मामले खत्म हो गए हैं, क्या समाज में बदलाव आया है? निर्भया केस के बाद कई कानून बनाए गए, पॉक्सो एक्ट बनाया गया लेकिन क्या उसके बाद महिलाएं सुरक्षित हैं, जागरूक हैं, ऐसा नहीं है. क्योंकि ना केवल सड़कों पर बल्कि परिवार में भी महिलाएं और बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं. इसके लिए जरूरी है कि हम अपने घर से शुरुआत करें, अपने बच्चों को जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों को एक समान शिक्षा दी जाए, उन्हें जागरूक बनाया जाए, लड़कों को लड़कियों की सुरक्षा और इज्जत करना सिखाया जाए और लड़कियों को जागरूक किया जाए. उन्होंने कहा कि महिलाएं घरों के साथ-साथ ऑफिस यहां तक कि राजनीतिक दल, संसद, सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट आदि जगहों पर भी सुरक्षित नहीं हैं. वहां पर भी महिलाओं की कई शिकायतें आती हैं. स्टाफ में ही महिलाओं को कई चीजें झेलनी पड़ती हैं जो सरासर गलत है.


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