राजधानी दिल्ली जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के उन चुनिंदा शहरों में शुमार है, जो विकास के मानकों में अग्रणी माने जाते हैं. लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि, देश की राजधानी और विकसित शहर होने के बावजूद यहां के लोग रोजमर्रा की जरूरत और जीवन का आधार कहे जाने वाले पानी की समस्या से एक-दो वर्ष नहीं बल्कि लंबे अरसे से जूझ रहे हैं. 

यह दिल्ली और यहां की सरकार के लिए किसी विडंबना से कम नहीं है, जिसे वर्षों से झेल रहे दिल्लीवासियों के लिए दूर करने में नाकाम नजर आ रही है और वह भी तब जब गर्मियों का मौसम नहीं है. खास तौर पर झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में पानी जैसी बुनियादी जरूरतों की हालात बेहद चिंताजनक हैं. जहां हर सुबह लाखों परिवारों के लिए पानी जुटाना एक नई जद्दोजहद बन जाता है. यह समस्या सिर्फ पानी की नहीं, बल्कि जीवन और गुजारे की चुनौती की है.

कमाई का भारी खर्च पानी पर

ग्रीनपीस और COHAS के ताजा सर्वे बताते हैं कि बड़ी संख्या में गरीब परिवारों को अपनी मासिक आय का लगभग 15 फीसदी केवल पीने के पानी पर खर्च करना पड़ता है. जब औसत महीने की कमाई कुल 6 से 10 हजार रुपये हो, तो यह रकम उनकी रसोई, दवा और बच्चों की पढ़ाई जैसी जरूरतों को सीधा प्रभावित करती है. एक महिला बताती हैं, "कभी-कभी सोचना पड़ता है कि बच्चों के दूध लें या पीने का पानी."

लंबी कतारें, कई संकट

झुग्गी बस्तियों में रहने वाले अधिकतर लोग या तो निजी वाटर सप्लायरों से महंगा पानी खरीदने को मजबूर हैं, या फिर सरकारी टैंकरों और वाटर एटीएम की अनिश्चित सेवा पर निर्भर हैं. कई बार पानी भरने के लिए घंटों लाइन में लगना आम है, जिससे लोगों के काम के घंटे और बच्चों के स्कूल का समय दोनों ही प्रभावित होते हैं. 

सरकारी आकंड़े और स्वतंत्र सर्वे दोनों इस बात की पुष्टि करते हैं कि, 34% परिवार निजी सप्लायर्स पर निर्भर हैं, 29% लोग टैंकरों से पानी लेते हैं, 21% वाटर एटीएम, 14% सबमर्सिबल और 2% पड़ोसियों से उधार पानी पाते हैं.

सरकारी वादे साबित हो रहे खोखले

दिल्ली सरकार ने 2025 में 3,000 नए वाटर एटीएम लगाने का आश्वासन दिया था, पर जून तक शहर में केवल 20 ही लग पाए, वो भी ऐसी बस्तियों में नहीं लगाए गए, जहां जरूरत सबसे अधिक थी. जहां-जहां मशीनें लगी हैं, वहां भी लोगों ने खराबी, अनियमितता और मुफ्त पानी न मिलने की शिकायतें की हैं. पानी की इस समस्या को लेकर अब दिल्ली कांग्रेस ने वर्तमान बीजेपी और पूर्व की आम आदमी पार्टी पर सीधा हमला बोला है.

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा कि दिल्ली कांग्रेस के दिल्ली में जल संकट के आरोप को ग्रीनपीस इंडिया की जल ऑडिट में दिल्ली में जलापूर्ति पर चौकाने वाले आंकड़े उजागर किए है. पिछले 11 वर्षों में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में जलापूर्ति करने में पिछली आम आदमी पार्टी और मौजूदा भाजपा की सरकार पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है.

चुनावी वादे और धरातल की हकीकत

उन्होंने कहा कि दिल्ली की बस्तियों में हर तीन में से एक व्यक्ति या तो निजी वाटर सप्लायर पर निर्भर है या फिर सरकारी टैंकर की अनियमित सप्लाई पर जीता है, जो सप्ताह में मुश्किल से एक-दो बार आता है. बाकी दिन लोग घंटों लाइन में लगते हैं, कई बार पीने लायक साफ पानी भी नहीं मिलता. उन्होंने कहा कि यह खुलासा दिल्ली की 12 बस्तियों के 500 से ज्यादा घरों पर किए सर्वे में सामने आया है.

देवेन्द्र यादव ने कहा कि शकूर बस्ती, सावदा घेवरा, दया बस्ती, चूना भट्टी, खजान बस्ती, बीआईडब्ल्यू कॉलोनी, सीमापुरी, सुंदर नगरी, लोहार बस्ती, संगम विहार कचरबीनने वालों की बस्ती, रघुबीर नगर जेजे कॉलोनी और कुसुम पुर पहाड़ी सहित कई बस्तियों में जल आडिट हुआ. उन्होंने कहा कि मानसरोवर पार्क में 200 परिवारों को पीने का पानी खरीदने के लिए 60 लाख वार्षिक खर्च करना पड़ता है, जिसे अत्यंत गंभीर स्थिति कहा जा सकता है.

पानी का वादा चुनावी भाषण तक सीमित- कांग्रेस

कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों ने हर घर तक पानी पहुंचाने का वादा केवल भाषणों तक सीमित रखा. मौजूदा हालात में आधी से ज्यादा दिल्ली निजी सप्लायरों और टैंकरों के भरोसे है, जिससे सिर्फ गरीबों का बजट चौपट नहीं होता, बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ता है.

AAP-BJP पर साधा निशाना

वर्तमान और पूर्व की सरकारों पर आक्रामक होते हुए देवेंद्र यादव ने कहा कि कांग्रेस शासन के 15 वर्षों के कार्यकाल में लाभ कमाने वाले दिल्ली जल बोर्ड को केजरीवाल सरकार ने 63000 करोड़ के कर्ज में डुबो दिया, जबकि बीजेपी की रेखा गुप्ता सरकार, दिल्ली जल बोर्ड को कर्ज से उबारने और दिल्लीवालों की पर्याप्त जल आपूर्ति के लिए कुछ करने की बजाय सिर्फ बहाने बनाकर वर्तमान छोड़ आगे की घोषणा पर ध्यान दे रही है.