द्वारका की विशेष पॉक्सो अदालत ने नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में कड़े और मिसाल कायम करने वाले फैसले सुनाए हैं. अदालत ने साफ किया कि बच्चों की सुरक्षा से जुड़े मामलों में किसी भी तरह की नरमी समाज के साथ अन्याय होगी.

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द्वारका की विशेष पॉक्सो कोर्ट ने वर्ष 2017 में दर्ज एक जघन्य मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. डाबड़ी थाना क्षेत्र से जुड़े इस केस में एडिशनल सेशंस जज वैभव मेहता ने दोषी अनुज रावत को उसके जीवन की अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा दी है.

अपराध को समाज की अंतरात्मा को झकझोरने वाला- कोर्ट

अदालत ने हत्या और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत सजा तय करते हुए कहा कि नाबालिग के साथ हुआ यह अपराध बेहद क्रूर और अमानवीय है. जज ने टिप्पणी की कि ऐसे कृत्य पूरे समाज को झकझोर देते हैं और कठोर सजा ही न्याय का सही रूप है.

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अदालत में छलका माता-पिता का दर्द, मौत की सजा की मांग

सजा के दौरान कोर्ट का माहौल भावुक हो गया, जब पीड़िता के माता-पिता ने अपनी पीड़ा साझा की. उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ही उनके जीवन का सहारा थी और इस क्रूर अपराध ने उनका पूरा संसार उजाड़ दिया है. सरकारी वकील और पीड़ित परिवार ने इसे विरल से विरलतम मामला बताते हुए दोषी को फांसी देने की मांग की. वहीं बचाव पक्ष ने दोषी के छोटे बच्चों और पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देकर सजा में रियायत की अपील की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.

पीड़ित परिवार को 25.50 लाख का मुआवजा

अदालत ने सजा के साथ पीड़ित परिवार को 25.50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. इसमें हत्या के लिए 15 लाख और पॉक्सो एक्ट के तहत 10.50 लाख रुपये शामिल हैं. इसके अलावा दोषी पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है, जिसे न देने पर अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

नाबालिग से यौन उत्पीड़न के दूसरे मामले में 20 साल की कठोर सजा

एक अन्य मामले में द्वारका की विशेष पॉक्सो अदालत ने डाबड़ी थाना क्षेत्र से जुड़े यौन उत्पीड़न केस में दोषी प्रदीप राय उर्फ मोनू को 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है. अदालत ने उस पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

अभियोजन ने बताई अपराध की गंभीरता

अभियोजन पक्ष ने कोर्ट को बताया कि आरोपी की घिनौनी हरकत के कारण नाबालिग पीड़िता गर्भवती हो गई थी. सुनवाई के दौरान पीड़िता स्वयं अदालत में मौजूद रही और दोषी को अधिकतम सजा देने की मांग की. हालांकि, बचाव पक्ष ने आरोपी की उम्र, बच्चों और पत्नी की बीमारी का हवाला देते हुए सहानुभूति मांगी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़िता को हुए शारीरिक और मानसिक आघात के सामने ये तर्क महत्वहीन हैं.

पीड़िता को 15 लाख रुपये की आर्थिक सहायता

अदालत ने पीड़िता के पुनर्वास के लिए कुल 15 लाख रुपये मुआवजा तय किया है. इसमें से 2.62 लाख रुपये पहले दिए जा चुके हैं, जबकि शेष 12.38 लाख रुपये दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा दिए जाएंगे. जुर्माना न चुकाने की स्थिति में दोषी को एक महीने की अतिरिक्त जेल काटनी होगी.