Delhi News: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने  अपने एक फैसले में बुधवार को कहा कि किसी खाद्य पदार्थ (Food Item) के शाकाहारी (Vegetarian) या मांसाहारी (Non-Vegetarian) होने का पूरी तरह खुलासा होना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि थाली में परोसी जाने वाली वस्तु से हर व्यक्ति के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं.


इसी के साथ हाईकोर्ट (High Court) ने बुधवार को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) को निर्देश दिया कि वह एक खाद्य पदार्थ की सामग्री पर स्पष्ट खुलासा करने के दायित्व पर सभी संबंधित अधिकारियों को नया आदेश जारी कर अवगत कराए


सिर्फ अधिकारियों के लिए आदेश जारी होना व्यर्थ है


बता दें कि न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति डी के शर्मा की पीठ ने जनता द्वारा उपयोग की जाने वाली "सभी वस्तुओं" को शाकाहारी या मांसाहारी और " मैन्यूफैक्चरिंग प्रोसेस में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं" के रूप में लेबल करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश पारित किया.अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील से सहमति जताई कि आम लोगों की बजाय सिर्फ अधिकारियों को इस तरह का संचार जारी करना व्यर्थ है, क्योंकि इससे आम जनता के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं.


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थाली में परोसी गई वस्तु से व्यक्ति के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं


कोर्ट ने कहा कि संविधान के मुताबिक थाली में क्या परोसा गया है इससे " अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) और अनुच्छेद 25 (विवेक की स्वतंत्रता और स्वतंत्र पेशे, अभ्यास और धर्म का प्रचार) के तहत प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं. अदालत ने आगे कहा कि  खाद्य पदार्थ के शाकाहारी या मांसाहारी होने के बारे में एक पूर्ण और पूर्ण प्रकटीकरण को उपभोक्ता जागरूकता का एक हिस्सा बनाया जाना जरूरी है. ” अदालत ने कहा, किसी भी पैक्ड खाद्य पदार्थ शाकाहारी या मांसाहारी होने का पूर्ण खुलासा करने की व्यवस्था सुनिश्चित करने में अगर प्राधिकरण विफल रहता है तो इससे FSSAI के गठन का उद्देश्य भी हासिल नहीं हो सकेगा.


याचिका पर अगली सुनवाई 21 मई को होगी


बता दें कि बेंच गायों के कल्याण के लिए काम करने वाले ट्रस्ट राम गौ रक्षा दल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका के अनुसार, एफएसएसएआई द्वारा 22 दिसंबर, 2021 का एक संचार अभी भी बहुत अस्पष्ट है. इस याचिका पर कोर्ट में अगली सुनवाई की तारीख 21 मई तय की गई है.


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