Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को अधिकारियों से कहा कि वे भारत में विभिन्न बिजली उत्पादन कंपनियों द्वारा ‘ओवर इनवॉइसिंग’ किए जाने के आरोपों पर 'सावधानीपूर्वक और शीघ्रता से' गौर करें. ताकि तथ्यात्मक स्थिति का पता लगाया जा सके और दोषी कंपनियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके. ‘ओवर-इनवॉइसिंग’ में वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य को बढ़ाना शामिल है. ताकि यह प्रतीत हो सके कि कंपनियां आयात पर वास्तव में जितना खर्च कर सकती हैं, उससे अधिक खर्च किया जा रहा है. ओवर-इनवॉइसिंग का उपयोग करों या सीमा शुल्क से बचने सहित कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है.


याची के आरोपों पर उठाएं जरूरी कदम


दिल्ली हाईकोर्ट ने गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) और पूर्व नौकरशाह व सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा 2017 में दायर दो याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह आदेश पारित किया. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने अपने 54 पृष्ठ के फैसले में कहा है कि अदालत इन मामलों के विचित्र तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादियों को सावधानीपूर्वक व शीघ्रता से याचिकाकर्ताओं के आरोपों पर गौर करने, वास्तविक तथ्यात्मक स्थिति का पता लगाने, दोषी कंपनियों, यदि कोई हो, के खिलाफ कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने का निर्देश देती है.


ओवर-इनवॉइसिंग की जांच की मांग


सीपीआईएल ने कई निजी बिजली कंपनियों के ‘ओवर इन्वॉइसिंग’ में शामिल होने के बारे में राजस्व आसूचना निदेशालय (डीआरआई) की रिपोर्ट की एक विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने की मांग की.


ओवर इनवॉइसिंग क्या होता है?


दरअसल, अलग-अलग तरह के कारोबार में शामिल कंपनियां अपना हित साधने के लिए ओवर-इनवॉइसिंग का इस्तेमाल करती हैं. इसके जरिए वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य को बढ़ाकर दिखाया जाता है. ताकि यह प्रतीत हो सके कि कंपनियां आयात पर वास्तव में जितना खर्च कर सकती हैं, उससे अधिक खर्च किया जा रहा है. कंपनियों द्वारा ओवर इनवॉइसिंग का उपयोग करने का मकसद सीमा शुल्क से बचने व अन्य लाभ अर्जित करना होता है. 


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