Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट में एक शादीशुदा महिला ने अपने शादी से पहले वाला सरनेम इस्तेमाल किए जाने को लेकर याचिका दाखिल की है. महिला और उसके पति की तलाक की प्रक्रिया चल रही है. इस महिला ने कोर्ट में यह तर्क दिया है कि सरकार की ओर से सरनेम के इस्तेमाल को लेकर जो नोटिफिकेशन दिया गया है वह लैंगिक भेदभाव पर आधारित है और साथ ही यह उनकी निजता का भी हनन है. 


सरकारी नोटिफिकेशन के मुताबिक एक महिला अगर अपने शादी से पहले का सरनेम इस्तेमाल करना चाहती है तो उसे तलाक की डिक्री पेश करनी होगी या पति से नॉन-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना होगा. उधर, हाईकोर्ट के कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा ने इस याचिका को लेकर पब्लिकेशन विभाग, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय को नोटिस भेजा है. यह नोटिस नाम में बदलाव के संबंध में भेजा गया है और केंद्र सरकार से कहा गया है कि चार सप्ताह में इस मामले में जवाब दिया जाए.


महिला ने समानता के अधिकार का दिया हवाला
महिला ने बताया था कि शादी के बाद उसने अपने पति का सरनेम लगाया था लेकिन अब वह उससे अलग रह रही है और वह अब पहले वाला सरनेम लगाना चाहती है लेकिन इससे संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन हो जाएगा. महिला का तर्क है कि किसी व्यक्ति की उसकी इच्छा के अनुरूप नाम रखा जाना उसकी पहचान और अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण पहलू है.


महिला की याचिका में कहा गया है कि सरकारी नोटिफिकेशन के मुताबिक उसे तलाक की डिक्री और पति से नॉन-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट की कॉपी देनी होगी. इसके साथ ही आईडी प्रूफ और मोबाइल नंबर उपलब्ध कराना होगा. साथ ही जब तक आखिरी आदेश नहीं आता तब तक नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकती है. जो कि कानून के समक्ष समानता के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है जो समानता का अधिकार संविधान देता है.


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