Delhi Latest News: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद के दौरान अदालत की गरिमा भंग करने वाले पति को फटकार लगाते हुए साफ शब्दों में कहा कि न्यायालयों को आरोप-प्रत्यारोप और दुर्व्यवहार का मंच नहीं बनने दिया जा सकता. जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने कहा कि हम कोर्ट रूम में व्यक्तिगत बदले की भावना और आक्रोश का प्रदर्शन बर्दाश्त नहीं करेंगे.

क्या है पूरा मामला ? 

मामला उस याचिका से जुड़ा था जिसमें एक पत्नी ने अपने पति के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही चलाने और छह महीने की सज़ा देने की मांग की थी. आरोप था कि पति ने अदालत की कार्यवाही के दौरान जानबूझकर अपमानजनक टिप्पणियां कीं और न्यायिक आदेशों की अवहेलना की. पत्नी के वकील ने अदालत को बताया कि पति के व्यवधानकारी व्यवहार के चलते फ़ैमिली कोर्ट के जज को खुद को इस केस से अलग करना पड़ा. 29 जुलाई 2024 को दिल्ली हाई कोर्ट ने पाया कि पति ने न केवल हाई कोर्ट बल्कि फ़ैमिली कोर्ट में भी गंभीर दुर्व्यवहार किया और अदालत के आदेशों का उल्लंघन किया.

वकील बनें सुलह के मार्गदर्शक, लड़ाई के हथियार नहीं - कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने वकीलों की भूमिका पर भी सख्त टिप्पणी करते हुए कहा मामला चाहे कितना भी संवेदनशील क्यों न हो वकीलों की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने मुवक्किलों को शांति और समाधान की राह दिखाएं न कि उन्हें एक-दूसरे पर हमले के लिए उकसाएं. कोर्ट ने यह भी कहा कि matrimonial disputes बेहद भावनात्मक और तनावपूर्ण हो सकते हैं लेकिन अदालत की मर्यादा तोड़ने का कोई बहाना नहीं हो सकता. न्यायालयों में गाली-गलौज, अपमानजनक भाषा और अवज्ञा का कोई स्थान नहीं है.

माफ़ी के बदले मिली राहत, लेकिन शर्तों के साथ

हालांकि, पिछली सुनवाई में पति ने अपने व्यवहार पर खेद व्यक्त किया और कोर्ट को भरोसा दिलाया कि वह पत्नी को 15 लाख रुपये की राशि देगा. इस माफ़ी को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने अवमानना नोटिस रद्द कर दिया, लेकिन साथ ही उसे निर्देश दिया कि वह पत्नी के वकील से कोर्ट में सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगे और पत्नी को 1 लाख रुपये का हर्जाना दे.

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