दिल्ली हाईकोर्ट ने रेलवे विभाग को जमकर फटकार लगाई क्योंकि उसने अपने ही मेडल जीतने वाले बॉक्सर को उसका हक देने के बजाय सालों तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगवाए गए. खिलाड़ी रेलवे में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी कर रहा था और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत चुका है.

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दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस नवीन चावला और मधु जैन की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जो खिलाड़ी देश और संस्था का नाम रोशन करते हैं उनके साथ इस तरह का बर्ताव बेहद निराशाजनक है. उन्हें सम्मान और प्रोत्साहन देने की जगह वर्षों तक मुकदमे में उलझा दिया गया. यह न सिर्फ असंवेदनशीलता है बल्कि नीतिगत उद्देश्यों के भी खिलाफ है. वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने रेलवे विभाग पर 20 हजार का जुर्माना भी लगाया.

पूरे मामले पर एक नजर

दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका के मुताबिक यह मामला तब शुरू हुआ जब रेलवे ने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें खिलाड़ी को उसकी उपलब्धियों के आधार पर वेतन वृद्धि देने का आदेश दिया गया था. खिलाड़ी को 2005 में नौकरी के समय 17 एडवांस इंक्रीमेंट मिले थे.

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वहीं 2007 में उसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में दो मेडल जीते थे. उस समय की नीति के अनुसार ऐसे खिलाड़ियों को अतिरिक्त इंक्रीमेंट दिए जाने चाहिए थे. लेकिन रेलवे ने 2010 की नई नीति का हवाला देकर खिलाड़ी का दावा ठुकरा दिया. जिसमें सिर्फ पांच अतिरिक्त इंक्रीमेंट की सीमा तय थी. हाईकोर्ट ने साफ कहा कि नई नीति पुरानी परिपत्रों को केवल आगे के लिए लागू करती है पहले से लंबित मामलों पर नहीं. खिलाड़ी का हक 2007 में ही तय हो चुका था.

दिल्ली हाई कोर्ट का अहम आदेश 

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि रेलवे खुद जानता था कि खिलाड़ी उनकी ओर से प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहा था. ऐसे में देरी का बहाना नहीं चल सकता. वहीं मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने रेलवे को नसीहत देते हुए कहा कि भविष्य में ऐसे खिलाड़ियों को सम्मान और न्याय मिलना चाहिए. उन्हें अपने हक के लिए अदालतों के चक्कर न लगाने पड़ें.