Delhi News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को वन विभाग के वाक विद वाइल्डलाइफ कार्यक्रम पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इससे पहले अदालत के सामने इस मसले पर सुनवाई हुई कि दिल्ली के दक्षिणी रिज में स्थित असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य के अंदर वन विभाग को इस महीने प्रस्तावित ‘वाक विद वाइल्डलाइफ’ कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दी जाए या नहीं. ​फिलहाल, अदालत के रुख से साफ है कि वो ‘वन विभाग के वाक विद वाइल्डलाइफ’ जवाब से संतुष्ट नहीं है. 


दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य के अंदर लोगों की सुरक्षा के संबंध में अपनी चिंता दोहराई, जिसे आठ-नौ तेंदुओं के साथ-साथ लकड़बग्घे और सियार जैसे अन्य जंगली जानवरों का बसेरा माना जाता है. अदालत ने पक्षकारों के वकील को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है.


अदालत ने उठाए ये सवाल


जस्टिस जसमीत सिंह की अदालत ने इस मसले पर कहा कि हम लोगों को इससे कैसे अवगत करा सकते हैं? आपको ऐसा लगता है कि तेंदुआ छिप कर रहने वाला जानवर है. अगर नहीं तो वन विभाग के ‘वाक विद वाइल्डलाइफ’ जैसे साहसिक कार्यक्रमों को आयोजित करने की इजाजत कैसे दी जा सकती है. अगर किसी व्यक्ति को चोट पहुंची, तो क्या होगा? वहां बच्चे भी हो सकते हैं.


असोला भाटी अभयारण्य संरक्षित क्षेत्र है


न्याय मित्र अधिवक्ता गौतम नारायण और आदित्य एन प्रसाद ने दलील दी कि असोला भाटी के अंदर कोई मानवीय गतिविधि नहीं हो सकती है. यह एक संरक्षित क्षेत्र है. अदालत को सूचित किया गया कि अभयारण्य से भटका हुआ तेंदुआ, जिसे पिछले सप्ताह निकट की एक आवासीय कॉलोनी में देखा गया था, अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है.


फारेस्ट अफसर पहले करें ये काम 


जस्टिस जसमीत सिंह ने तब सरकारी वकील से यह कहते हुए निर्देश लेने को कहा कि यह अभयारण्य ‘मसाई मारा’ या ‘सेरेन्गेटी’ नहीं है. ‘मसाई मारा’ केन्या का एक खेल रिजर्व है और ‘सेरेन्गेटी’ तंजानिया का एक राष्ट्रीय उद्यान है. अदालत ने सोमवार को वन विभाग से नौ और 10 दिसंबर को कार्यक्रम आयोजित करने के प्रस्ताव पर आगे बढ़ने से पहले खुद को व्यवस्थित करने को कहा था.


Atishi ने सुल्तानपुर माजरा, त्रिलोकपुरी का किया दौरा, सीवर की समस्या देख अफसरों को दी चेतावनी, कहा- 'लापरवाही बर्दाश्त नहीं'