New Delhi: दिल्ली सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र पाल गौतम (Rajendra Pal Gautam) इन दिनों सुर्खियों में हैं. उन्होंने दिल्ली के आंबेडकर भवन में पांच अक्तूबर को आयोजित एक कार्यक्रम में बौद्ध धर्म (Buddha Dharma) अपना लिया था. इसमें उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं ली थीं. इसमें मैं चोरी नहीं करूंगा, झूठ नहीं बोलूंगा, शराब नहीं पियूंगा जैसी प्रतिज्ञाओं के अलावा यह भी शामिल था कि मैं हिंदू देवी-देवताओं को भगवान नहीं मानूंगा और उनकी पूजा नहीं करुंगा. ये वही प्रतिज्ञाएं थीं, जिन्हें डॉक्टर बीआर आंबेडकर (Dr BR Ambedkar) ने 14 अक्तूबर 156 को नागपुर में बौद्ध धर्म स्वीकार करते हुए ली थीं. गौतम की शपथ को बीजेपी (BJP) ने हिंदू (Hindu) देवी-देवताओं का अपमान और हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया. उसने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) से गौतम को बर्खास्त करने की मांग की. विवाद बढ़ता देख राजेंद्र पाल गौतम ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में इसकी दिल्ली पुलिस (Delhi Police) से शिकायत भी की गई. इन शिकायतों के आधार पर दिल्ली पुलिस ने उनसे 11 अक्तूबर को पूछताछ की. इस पूरे विवाद पर राजेंद्र पाल गौतम से एबीपी संवाददाता पूनम पनोरिया ने बातचीत की. आइए जानते हैं कि इस विवाद पर उनका क्या कहना है.


आप पर हिंदू देवी-देवताओं के अपमान और हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा है. आप इसे कैसे देखते हैं?


दरअसल विवाद कोई है ही नहीं. किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम नहीं किया गया. मैं बाबासाहेब आंबेडकर का सच्चा सिपाही हूं. मैं कट्टर देशभक्त हूं. मैं सभी की भावना और आस्था की कद्र करता हूं. पांच अक्टूबर को दिल्ली के करोलबाग स्थित रानी झांसी रोड पर अंबेडकर भवन में बुद्ध सोसाइटी ऑफ इंडिया और मिशन जय भीम की तरफ से कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इसमें बाबासाहेब आंबेडकर की ओर से 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धम्म की दीक्षा लेते हुए ली गईं 22 प्रतिज्ञाओं को दोहराया गया. यह पहली बार नहीं था जब इन प्रतिज्ञाओ को दोहराया गया, 1956 से लेकर आज तक हर साल इस तरीके के कार्यक्रमों में जब लोग बौद्ध धम्म अपनाते हैं तो इन प्रतिज्ञाओं को दोहराते हैं. देश भर में इस तरीके की प्रतिज्ञाएं बौद्ध धम्म के अनुयायियों द्वारा ली जाती हैं.


ये प्रतिज्ञाएं बीजेपी नेताओं द्वारा भी दिलवाई जाती हैं. दशहरे के दिन जब दिल्ली के आंबेडकर भवन में कार्यक्रम आयोजित किया गया था, उसी दिन नागपुर की दीक्षा भूमि में भी ऐसा ही कार्यक्रम आयोजित किया गया था. वहां भी लोगों ने यही प्रतिज्ञाएं लीं. उस कार्यक्रम में केंद्र सरकार के दो मंत्री नितिन गडकरी और रामदास अठावले मौजूद थे. उनके सामने ही लोगों ने इन 22 प्रतिज्ञाओं को दोहराया था.


केंद्र सरकार ने इन प्रतिज्ञाओं को पब्लिश कराया है. नागपुर की दीक्षाभूमि की एक शिलापट पर भी ये 22 प्रतिज्ञाएं लिखी हुई हैं. हर बार इन्हें दोहराया जाता है. बीजेपी के नेता खुद इस तरीके के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं, लेकिन इस बार गुजरात चुनाव को लेकर बीजेपी ने इस तरीके का मुद्दा उठाया है. यह विवाद राजनीति से प्रेरित है. राजेंद्र पाल गौतम ने कहा कि बीजेपी गुजरात में हार रही है. उन्होंने वहां कोई काम नहीं किया. शिक्षा, स्वास्थ्य और बुजुर्गों के लिए भी बीजेपी ने कुछ नहीं किया है. अब गुजरात की जनता आम आदमी पार्टी को बीजेपी के विकल्प के रूप में देख रही है. इससे बीजेपी घबराई हुई है.



आप कहते हैं कि आप बाबा साहेब के रास्ते पर चलने वाले आदमी हैं. किसी की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते. सभी धर्मों के प्रति आपकी आस्था है. ऐसे में आपने इस विवाद के बाद मंत्री पद से इस्तीफा क्यों दे दिया? 


मैंने दो चीजों से आहत होकर मैंने अपने पद से इस्तीफा दिया, पहली चीज ये कि आज हम देख रहे हैं कि हमारे समाज में कहीं किसी शख्स के मूंछ रखने पर उसकी हत्या कर दी जा रही है या फिर घड़ा छूने पर उसकी मारपीट कर हत्या कर दी जाती है. मंदिर में प्रवेश करने पर भी लोगों की हत्या कर दी जाती है. बहन बेटियों के साथ बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी जाती है. इन हत्याओं को लेकर ना तो प्रधानमंत्री बोलते हैं न गृहमंत्री, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट. ये लोग सख्ती से इस सवाल को उठाते भी नहीं हैं. यहां तक कि कोई राजनीतिक पार्टी भी इन मुद्दों के खिलाफ आवाज नहीं उठाती है. कई पार्टियां जाति और धर्म देखकर मुद्दे उठाती हैं और राजनीति करती हैं. इन चीजों से आहत होकर मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.


दूसरी बात यह कि आंबेडकर भवन में आयोजित कार्यक्रम में बौद्ध धम्म की 22 प्रतिज्ञाएं ली गईं, जो हर साल ली जाती हैं. यह हमारा निजी मामला है. एक निजी कार्यक्रम था. इसकी जानकारी आम आदमी पार्टी या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को नहीं थी. मैं एक मंत्री या आम आदमी पार्टी के नेता के तौर पर इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ था. मैं बचपन से ही बाबासाहेब आंबेडकर की शिक्षा और उनके दिखाए गए मार्ग को फॉलो कर रहा हूं. उसी को ध्यान में रखते हुए मैं इस कार्यक्रम में शामिल हुआ था. मैं अक्सर इस तरीके के कार्यक्रमों में शामिल होता हूं. लेकिन कुछ लोगों ने गंदी राजनीति करते हुए मेरी पार्टी पर लांछन लगाए. इससे आहत होकर मैंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मैं छुआछूत मुक्त भारत अभियान को लेकर सड़क पर उतर चुका हूं.


अगर आप बाबा साहेब के विचारों पर चल रहे थे तो पार्टी ने आपका साथ क्यों नहीं दिया? क्यों आपकी पार्टी ने आपका स्टैंड नहीं लिया?


मुझे लगता है गुजरात चुनाव को लेकर जो परिस्थितियां बनी हुई है, उसे देखते हुए मेरी पार्टी ने जो फैसला लिया वह पूरी तरीके से उचित है, क्योंकि राजनीति भावनाओं से नहीं दिमाग से की जाती है. मेरी पार्टी गुजरात में दिमाग से काम कर रही है. हमें पूर्ण विश्वास है कि गुजरात में हम बीजेपी को हराएंगे.


इस्तीफा देने से पहले क्या आपकी मुख्यमंत्री से कोई बातचीत हुई थी? क्या आपकी पार्टी ने आप को मंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा?


मैं पेशे से एक वकील हूं. मैं अपने फैसले स्वयं लेता हूं, हालांकि कई राजनीतिक फैसलों पर मैं मुख्यमंत्री की सलाह जरूर लेता हूं. मैं सब की सलाह लेता हूं, लेकिन यदि किसी काम में मेरी आत्मसंतुष्टि नहीं है तो वह मैं काम नहीं करता. मुझे लगा कि यही सही समय है अपने पद से इस्तीफा देने का और लोगों के लिए काम करने का इसीलिए मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.


आपको मंत्री पद से हटाए जाने को लेकर कांग्रेस केजरीवाल सरकार पर पक्षपात का आरोप लगा रही है. उसका कहना है कि केजरीवाल ने एक दलित मंत्री की कुर्बानी ले ली है. इस पर आपका क्या कहना है?


यह मेरा फैसला है. मैंने अपने परिवार में माताजी, पत्नी और बच्चों से बात की और मैंने यह फैसला किया कि यह सही समय है. मैं छुआछूत और जातिवाद को खत्म करने के लिए मैं अपने पद से इस्तीफा दे रहा हूं. मैं देश से जातिवाद को खत्म करूंगा. इसके लिए मैं पूरे देश का भ्रमण करूंगा.


क्या आपको लगता है कि देश से छुआछूत, जातिवाद को खत्म करने के लिए धर्म को खत्म कर देना उचित है? 


जो लोग ऐसा कह रहे हैं मैं उन लोगों को यह चैलेंज करना चाहता हूं कि वह जातिवाद और छुआछूत ख़त्म करने का देश में आंदोलन चलाएं. मैं अपने सभी शब्द वापस ले लूंगा. जो लोग धर्म के अनुयायी बन रहे हैं, वह जातिवाद और छुआछूत को खत्म करने के लिए संकल्प लें, उसके लिए आंदोलन चलाएं. मैं उन लोगों के साथ खड़ा हूं. मैं किसी धर्म के खिलाफ नहीं हूं, मैं केवल जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ हूं.


दिल्ली के आंबेडकर भवन में आयोजित कार्यक्रम में आपने लोगों को प्रतिज्ञाएं दिलाई कि मैं अपने पुराने धर्म को नहीं मानूंगा, हिंदू-देवी देवताओं की पूजा नहीं करूंगा, उन्हें ईश्वर नहीं मानूंगा. यह कहां तक सही है? 22 प्रतिज्ञाएं आखिर हैं क्या?


जब कोई हिंदू बौद्ध धम्म की दीक्षा लेता है तो वह यह दोहराता है कि वह अपने पुराने धर्म, मान्यताओं को नहीं मानेगा. वह बौद्ध के मार्ग पर चलेगा. यह एक प्रतिज्ञा है. इसके साथ ही अन्य प्रतिज्ञाएं इस प्रकार हैं. मैं हिंसा नहीं करूंगा, मैं नशा नहीं करूंगा, मैं व्यभिचार नहीं करूंगा, झूठ नहीं बोलूंगा, चोरी नहीं करूंगा, मानव का सम्मान करूँगा, सबकी हक अधिकारों की इज्जत करूंगा, सबके प्रति करुणा भाव रखूंगा, आपस में लोगों के साथ प्यार से रहूंगा प्यार फैलाने की कोशिश करूंगा. इस तरीके की 22 प्रतिज्ञाएं हैं, जो बौद्ध धम्म की दीक्षा लेने वाले लोगों द्वारा दोहराई जाती हैं.


क्या आप सभी 22 प्रतिज्ञाओं को फॉलो करते हैं,मानते हैं?


मैं अपने जीवन में ज्यादा से ज्यादा इन प्रतिज्ञाओं को फॉलो करता हूं और मानता हूं. बाकी मैं भी इंसान हूं भगवान नहीं हूं मुझसे भी गलतियां होती हैं लेकिन मैं अपने जीवन में रोजाना नए-नए सुधार की कोशिश करता हूं.


आपने कहा था, ''मैं गद्दार साबित नहीं होना चाहता था'', इससे आपका क्या मतलब है?


डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने जीवन में काफी कष्ट सहे. उन्होंने अपने चार बच्चों को खो दिया, अपनी पत्नी को खो दिया. अपने समाज के लोगों को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया. समाज के तमाम लोगों को फिर से मानवता का दर्जा दिलाया, संविधान का दर्जा दिलाया. उन्हें यह उम्मीद थी कि अब उनके इस संघर्ष को उनके समाज पढ़े-लिखे लोग आगे लेकर जाएंगे. लेकिन 18 मार्च 1956 को आगरा में उन्होंने यह कहा था कि उन्हें उनके पढ़े लिखे लोगों ने ही धोखा दिया. इसलिए मैंने यह कहा कि मैं बाबा साहेब आंबेडकर के मूवमेंट को आगे लेकर जाऊंगा. मैं उनके इस सपने को पूरा करूंगा,  इसीलिए मैंने कहा था मैं गद्दार साबित नहीं होना चाहता.


पांच अक्टूबर को आंबेडकर भवन में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसमें कि 10 हजार से ज्यादा लोगों ने धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धम्म की दीक्षा ली. इसकी प्लानिंग कैसे की गई. इसमें कितने दिन का वक्त लगा, इतने लोगों को कैसे तैयार किया.


हमने जातिगत भेदभाव से प्रताड़ित लोगों से अपील की थी कि वो पांच अक्टूबर को दिल्ली के आंबेडकर भवन में आए बौद्ध धम्म की दीक्षा लें. यह कार्यक्रम हर साल आयोजित किया जाता है. इसी कड़ी में पांच अक्टूबर को दशहरे के दिन भी यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था. लोग अपनी मर्जी से इस कार्यक्रम में आए और बौद्ध धम्म की दीक्षा ली. लोग बढ़-चढ़कर इस कार्यक्रम में आए क्योंकि वो आए दिन हो रही घटनाओं से आहत हैं. जातिगत भेदभाव को वह देख रहे हैं. वह देख रहे हैं कि इस सवाल पर न तो कोई नेता बोलता है और न सरकार. इसके लिए वह घटनाएं और हमारा समाज जिम्मेदार है, जिन लोगों ने जातियां बनाई हैं, वही लोग जातिगत भेदभाव और छुआछूत को खत्म करें. आगे आएं तभी यह खत्म होगा.


क्या बौद्ध धम्म अपनाने से छुआछूत और जातिगत भेदभाव खत्म हो जाएगा? क्या धर्म परिवर्तन से सामाजिक बुराइयां खत्म हो जाएंगी?


बौद्ध कोई धर्म नहीं है, वह एक धम्म है यानि 'न्याय'. यह क्षमता, स्वतंत्रता, बंधुतता, न्याय, करुणा और मित्रता की भावना से चलता है. इसमें सबके कल्याण की भावना है. यह मानवता और शांति का संदेश देता है. इसे पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है. लेकिन भारत में इस चीज से कुछ लोगों को आपत्ति है जबकि यही चीज भारत को बचाएगी, क्योंकि जिस तरीके से बीजेपी देश में जातिगत भेदभाव और उसकी राजनीति कर रही है. वह लोगों के लिए बेहद खतरनाक है. क्योंकि राजनीति और सत्ता के लिए बीजेपी जाति धर्म का इस्तेमाल करती है. इससे उसे सत्ता तो मिल जाएगी, लेकिन देश टूट जाएगा. मेरे लिए देश ज्यादा जरूरी है.


एक तरफ जहां कुछ लोग आपपर सवाल खड़े कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आपकी सराहना कर रहे हैं. वो आपको ऐसा नेता मान रहे हैं जिसने बाबासाहेब आंबेडकर की राह पर चलते हुए मंत्री पद तक त्याग दिया. अब तो आंबेडकरवाद पर चलते हुए मंत्री पद तो चला गया, आगे की रणनीति क्या है?


मंत्री पद बहुत छोटी बात है, मैं बाबासाहेब आंबेडकर को याद करता हूं, जब उन्होंने भारत कि संसद में हिंदू कोड बिल लेकर आए, एक पत्नी को दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं था यदि उसके पति की मृत्यु हो जाए तो वह दूसरी शादी नहीं कर सकती थी. यदि किसी महिला का पति उसे मारता-पीटता था, उसके साथ क्रूर व्यवहार करता था, तो महिला को तलाक का अधिकार नहीं था. यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को छोड़ दे, तो पत्नी को अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता लेने का अधिकार तक नहीं था. अगर किसी महिला को बच्चे नहीं होते थे तो उसे बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं था. महिलाओं को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था. इन कुरीतियों के खिलाफ बाबा साहब आंबेडकर हिंदू कोड बिल लेकर आए. उस समय संसद में उनका सभी ने विरोध किया. ऐसे में बाबासाहेब आंबेडकर ने सोचा कि यदि मैं अपने लोगों को न्याय ही नहीं दिलवा पाऊंगा, तो मैं ऐसे मंत्री पद से क्या करूंगा. तब उन्होंने सन 1951 में अपने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था. ठीक उसी प्रकार की अनुभूति आज मैं कर रहा हूं, मैं अपने आप को गौरवशाली समझता हूं कि मुझे बाबासाहेब आंबेडकर के लक्ष्य और उनके कदमों पर चलने का मौका मिला है.


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