Delhi News: सड़क हादसा हो या फिर घर में घटित हुई कोई बड़ी दुर्घटना, इनमें सबसे ज्यादा खतरा मस्तिष्क में चोट का रहता है. इस कारण कई बार हादसे के पीड़ित को दिव्यांगता या फिर मौत का शिकार होना पड़ता है. कई बार उचित इलाज मिलने के बाद भी रिहैबिलिटेशन केंद्रों के अभाव में घर में मरीजों की देखभाल में काफी दिक्कतें आती है. 


इसे देखते हुए राजधानी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और जीबी पंत समेत कई अस्पतालों के डॉक्टरों की टीम के साथ मिलकर न्यूरोलाजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने मस्तिष्क की चोट से पीड़ित मरीजों की घर में देखभाल के लिए एक मैन्युअल तैयार किया है. इसकी मदद से अब घर में मस्तिष्क की चोट से पीड़ित मरीजों की देखभाल करना उनके परिजनों लिए आसान हो जाएगा, बल्कि इससे मरीज जल्द ठीक भी हो सकेंगे.


न्यूरोलाजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने इस मैन्युअल की पहली कॉपी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सौंपी है. डॉक्टरों का कहना है कि हादसों में करीब 50 प्रतिशत मौतें मस्तिष्क की चोट के कारण होती है. मस्तिष्क की चोट हर तीन मिनट में एक मौत का कारण बनती है. साथ ही देश में हर साल 10 लाख लोग इस कारण दिव्यांगता के शिकार हो जाते हैं. इन हादसों का एक बड़ा कारण दोपहिया वाहन पर पीछे बैठने वाले अधिकतर लोगों का हेलमेट न पहनना है. 


क्या कहते हैं आकंड़े?
एक आंकड़े के मुताबिक देश में महज 10 प्रतिशत महिलाएं ही हेलमेट का इस्तेमाल करती हैं. इस कारण हादसा होने और मष्तिष्क में चोट का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. वहीं घर में बालकनी और छत से पांच साल तक की उम्र के बच्चों और बुजुर्गों के गिरने की घटनाएं भी काफी होती है. एम्स के न्यूरो सर्जरी के प्रोफेसर डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि एम्स ट्रॉमा सेंटर में मस्तिष्क की चोट से पीड़ित मरीजों को विश्वस्तरीय इलाज की सुविधा मिलती है. यही वजह है कि ऐसे हादसों से पीड़ितों के बचने की दर दुनिया के दूसरे हिस्सों के बराबर ही हैं. 


वहीं अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद रिहैबिलिटेशन केंद्रों के आभाव के कारण घर में मरीजों की सही से देखभाल करने में परिजनों को काफी कठिनाई होती है. मस्तिष्क की चोट से पीड़ित 80 प्रतिशत मरीज ट्रेकियोस्टोमी के साथ अस्पताल से लौटते हैं. ऐसे मरीजों की सांस की नली में ट्यूब लगी होती है. कई मरीजों को फीडिंग और दवा देने के लिए भी ट्यूब और कैथेटर लगा होता है. इसके बारे में उनके परिजनों को बता कर फीडिंग और दवा देने के तरीकों के बारे में सिखाया भी जाता है. 


इसके बावजूद मरीजों के परिजनों को उनकी देखभाल के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसी के लिए यह मैन्युअल तैयार किया गया है, जो 12 भाषओं में उपलब्ध है. साथ ही मरीजों के परिजनों की सुविधा के लिए इसमें नर्सिंग देखभाल से संबंधित स्टेप्स के फोटो भी मुहैया कराए गए हैं.



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