Bastar News: छत्तीसगढ़ राज्य गठन के 24 सालो में सुकमा जिले के अलग-अलग थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने 354 ग्रामीणों की हत्या की है, 10 फरवरी भूमकाल दिवस पर सुकमा एसपी किरण चव्हाण ने आंकड़ा जारी करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी. दरअसल बीते 24 साल में सैकड़ों की संख्या में मारे गए ग्रामीणों को श्रद्धांजलि देने पहली बार सुकमा पुलिस द्वारा 10 फरवरी भूमकाल दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया. 354 ग्रामीणों में ज्यादातर ग्रामीणों की हत्या पुलिस मुखबिरी के आरोप में हुई है.



शनिवार (10 फरवरी) को जिला मुख्यालय के पुलिस लाइन स्थित शहीद स्मारक पर सुकमा एसपी किरण चव्हाण समेत विभाग के आला अधिकारियों द्वारा जल, जंगल और जमीन की हक की लड़ाई लड़ने वाले और अंग्रेजो से लोहा लेने के लिये “भूमकाल आंदोलन” छेड़ने वाले बस्तर के आदिवासी क्रांतिकारी नेता वीर शहीद "गुंडाधुर" की संघर्ष की याद में “भूमकाल दिवस” की 114 वीं वर्षगांठ मनाया गया. उनके प्रतिमा में ससम्मान श्रद्धांजलि दी गई. और  महानायक अमर शहीद "गुण्डाधुर" के द्वारा आदिवासियों को उनके हक दिलाने के संघर्ष की वीरता के संबंध में जवानों को संबोधित किया गया. साथ ही जिले में नक्सलियों के द्वारा मुखबिरी और अन्य घटनाओं में हत्या किये गए आम ग्रामीणों को याद करते हुए  सुकमा एसपी द्वारा सलामी देते हुए 01 मिनट का मौन धारण भी किया गया.

शहीद वीर गुंडाधुर को किया गया याद
दरअसल अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए देश के कई वीर योद्धाओं ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अपने प्राणों की आहुति दी है, वहीं छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में भी आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी, यह आंदोलन बस्तर के वीर आदिवासी नायकों के बलिदान को लेकर याद किया जाता है. जिन्होंने आजादी और अपने जल, जंगल, जमीन की लड़ाई के लिए अंग्रेजों के गोला बारूद का सामना तीर धनुष और अपने पारंपरिक हथियारों से किया था. आज भी इस आंदोलन और इसके  योद्धाओं की याद में हर साल 10 फरवरी को भूमकाल दिवस मनाया जाता है.

एर्राबोर में सबसे ज्यादा ग्रामीणों की नक्सलियों ने हत्या की
बस्तर में बीते 4 दशक से फैले नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच संघर्ष जारी है, माओवादी घटनाओं में पुलिस और सुरक्षाबलों के जवान ही नहीं शहीद हुए हैं. बल्कि बड़ी संख्या में निर्दोष आदिवासी, पत्रकार और आम जनप्रतिनिधियों ने भी अपनी जान गंवाई हैं. माओवादियों ने ज्यादातर लोगों को पुलिस मुखबिर के शक में मौत के घाट उतारा है.


जिले के किस्टाराम, चिंतागुफा, दोरनापाल, जगरगुंडा, भेजी, कोंटा, एर्राबोर, गोलापल्ली, गादीरास, सुकमा, गादीरास, मरईगुड़ा, तोंगपाल, कुकानार, पोलमपल्ली, चिंतलनार, केरलापाल और फूल बगड़ी थाना क्षेत्र र्गत घटनाओं को अंजाम दिया है. सबसे ज्यादा निर्दोष आदिवासियों की हत्या एर्राबोर थाने के अंतर्गत  हुई है. यहां माओवादियों ने करीब 95 लोगों को पुलिस मुखबिर का आरोप लगाकर मौत की सजा सुनाई है.

एसपी ने ग्रामीणों से की नक्सलियों का साथ नही देने को अपील
सुकमा एसपी किरण चव्हाण ने  कहा कि नक्सलवाद अंतिम सांसे गिन रहा है. जल्द ही बस्तर को नक्सल मुक्त कर यहां शांति बहाल होगा. सन 2000 के बाद से जीतने भी आदिवासी, पत्रकार और आम नागरिक नक्सली हिंसा का शिकार हुए हैं उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. भूमकाल दिवस पर नक्सली हिंसा में जान गंवा चुके लोगों को याद कर उन्हें आज श्रद्धांजलि दी गई है.


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