Chhattisgarh News: बच्चों की स्कूलों में नियमित उपस्थिति और सुपोषण से दोस्ती के लिए सरकार की ओर से मध्यान्ह भोजन योजना का संचालन किया जाता है, लेकिन इसके लिए छत्तीसगढ़ के कोरबा में शिक्षा विभाग पिछले कई महीने से जरूरी राशि की कमी से जूझ रहा है. मानदेय रुके होने से कई स्कूलों में मध्यान्ह भोजन पकाने वाले रसाइया ने काम छोड़ दिया है. हालांकि, बच्चों की सेहत से जुड़े संवेदनशील मसले पर गंभीर कई स्कूलों ने अपनी जुगत करते हुए खुद करते हुए मध्यान्ह भोजन पकाने का जिम्मा ले लिया है. यहां तक कि कुछ स्कूलों में अपने वेतन के भरोसे हेडमास्टरों ने ही रसोई की कमान संभाल ली है.


वैसे तो मध्यान्ह भोजन योजना के तहत बच्चों की थाली की सूरत निर्धारित मेन्यू से अलग होने की शिकायत सालों पुरानी है. नई बात यह है कि शासन की ओर से मध्यान्ह भोजन के लिए दिए जाने वाला फंड बीते पांच महीने से स्कूलों तक नहीं पहुंचा है. राशि जारी नहीं होने से स्कूलों में चावल और जुगाड़ के भरोसे सब्जी-दाल परोसी जा रही है. स्कूल प्रबंधन रसोइयों का वेतनमान नहीं मिलने की वजह से सबसे ज्यादा परेशान हैं. कई स्कूलों में ठीक तरह से मध्यान भोजन तैयार भी नहीं हो पा रहा है. राशि जारी नहीं होने की वजह से इस काम में जुटे स्व सहायता समूह जैसे-तैसे भोजन तैयार कर रहे हैं.


मध्यान्ह भोजन का संचालन सभी स्कूलों में जारी- शिक्षा विभाग


शिक्षा विभाग का दावा है कि मध्यान्ह भोजन का संचालन सभी स्कूलों में निर्बाध जारी है. राशि की कमी को लेकर उनके पास अब तक कोई शिकायत या परेशानी की जानकारी नही पहुंची है, लेकिन शिक्षकों की मानें तो राशि की विवशता के चलते अंदरूनी इलाकों में तो कई जगह ठीक तरह से भोजन भी परोसा नहीं जा रहा है. मध्यान्ह भोजन की रकम केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है. प्राइमरी स्तर पर मध्यान्ह भोजन के लिए प्रति विद्यार्थी 5.69 रुपये और मिडिल स्कूल में 8.75 रुपये शासन की ओर से दिया जाता है. कोरबा जिले की बात करें तो शासकीय प्राथमिक और माध्यमिक शाला मिलाकर करीब दस हजार 41 स्कूल संचालित हैं. बजट के अभाव में ज्यादातर विद्यालयों में तय मीनू के अनुरूप मिड डे मील न मिल पाने को लेकर शिक्षकों के साथ पालकों में भी चिंता है.


चावल सरकारी लेकिन बाकी चीजों के लिए चढ़ रही उधारी


मध्यान्ह भोजन के लिए स्कूलों को चालल तो सरकार से प्राप्त हो जाता है, लेकिन नमक-शक्कर और हरी सब्जियों के अलावा पौष्टिकता के अन्य सामान कई जगह गायब हैं. सब कुछ सामान्य रखने जहां अब भी कोशिश की जा रही है, वहां स्व सहायता समूहों के सिर लंबी उधारी भी चढ़ चुकी है, जिससे जल्द राहत मिलने की उम्मीद की जा रही है. सोसायटी से मिलने वाले चावल के साथ कभी कभार सब्जी तो दाल का पानी बच्चों को परोसा जा रहा है. चावल के अलावा कुछ भी खरीदने के लिए स्कूलों के पास राशि नहीं है. ऐसे में सही तरीके से भोजन स्कूलों में नहीं मिल रहा है. सूत्रों के अनुसार जिन स्कूलों में हेडमास्टर मध्यान्ह भोजन की रसोई पका रहे हैं, उनमें पुरानी बस्ती और सीतामढ़ी स्कूल शामिल हैं, जहां वे अपनी जेब से ही राशि खर्च कर बच्चों की थाली को सेहतमंद रखने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.


'कहीं से कोई शिकायत नहीं, एक-दो दिन में आ जाएगी राशि'


इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी जीपी भारद्वाज ने बताया कि उनके पास मध्यान्ह भोजन संचालन को लेकर कहीं से कोई शिकायत नहीं आई है. सभी समूह नियमित रूप से मिड डे मील निर्बाध संचालित कर रहे हैं. मध्यान्ह भोजन योजना के तहत कुकिंग कॉस्ट और रसोइया का मानदेय एक साथ जारी होता है, जो राशि मिलने पर प्रतिमाह किया जाता है. पर अगस्त 2023 से राशि नहीं मिली है. भारत सरकार से पूरे राज्य को ही नहीं आ रहा था. कुछ दिन पूर्व ही मैंने रायपुर मुख्यालय में बात की थी. केंद्र से राज्य शासन को राशि भेज दी गई है. बताया गया कि इस सप्ताह राशि जारी हो जाएगी और यह सप्ताह पूर्ण होने में अब केवल दो दिन शेष हैं. अगले कुछ दिनों में जिलों को भी जारी हो जाए‌गी.


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