Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में धर्मांतरण का मुद्दा गरमाया हुआ है. एक तरफ जहां लगातार आदिवासी समाज के लोग अपने मूल धर्म को छोड़ धर्मांतरण करने से सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों में काफी नाराजगी है. वहीं दूसरी तरफ धर्मांतरित परिवार में किसी के मौत के बाद गांव के कब्रिस्तान में और अब निजी भूमि पर भी शव दफनाने को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने इसका विरोध किया है.


आदिवासी समाज के पदाधिकारियों का कहना है कि हाल ही में बस्तर जिले के तोकापाल ब्लॉक के छिंदबहार गांव में धर्मांतरित परिवार में एक व्यक्ति की मौत के बाद हाईकोर्ट ने उस परिवार के निजी जमीन पर शव दफनाने  का आदेश पारित किया था. इसके बाद पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में निजी जमीन में मृत व्यक्ति का शव दफनाया गया, जिसको लेकर आदिवासी समाज और छिंदबहार गांव के ग्रामीणों में काफी नाराजगी है.


उनका कहना है कि लगातार बस्तर में धर्मांतरण के मामले बढ़ते ही जा रहे है और जिससे मूल आदिवासी धर्म की रूढ़िवादी परंपरा और आदिवासी संस्कृति पर खतरा मंडरा रहा है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद धर्मांतरित परिवार में मौत के बाद उनकी निजी जमीन में शव को दफनाने से पूरा गांव का गांव मरघट बनता जा रहा है. समाज प्रमुखों ने आरोप लगाया है कि विशेष धर्म के लोगों के द्वारा सैकड़ों साल पुरानी आदिवासी परंपराओं को समाप्त करने की साजिश रची जा रही है. प्रलोभन देकर आदिवासी समाज के लोगों का मंतातरित किया जा रहा है.


इसको लेकर समाज ने चिंता जाहिर करते हुए आने वाले दिनों में समाज के द्वारा हाईकोर्ट में आवेदन लगाकर और पिटीशन दायर करने की बात कही है, ताकि आने वाले समय में निजी जमीनों में धर्मांतरित परिवार में मृत्यु होने वाले व्यक्तियों को शव दफनाने की इजाजत नहीं मिल सके. इन परिवार के लोगों द्वारा अपने मूल धर्म में वापस लौटने के बाद ही गांव के सार्वजनिक कब्रिस्तान में उनकी हिन्दू रीति-रिवाज और विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाए.


दरअसल, बस्तर जिले के छिंदबहार गांव में कुछ दिन पहले विशेष धर्म को अपनाने वाले एक आदिवासी परिवार में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. मौत के बाद शव को सार्वजनिक कब्रिस्तान में दफन करने के लिए परिवारवालों ने आदिवासी समाज के लोगों से मांग की थी, लेकिन मूल आदिवासी धर्म के लोगों ने और छिंदबहार के स्थानीय ग्रामीणों ने शव को सार्वजनिक कब्रिस्तान में दफनाने से साफ मना कर दिया. इसके बाद मंतातरित परिवार के लोगों ने हाईकोर्ट में पिटीशन दायर कर शव दफनाने की मांग की थी. 


हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हालांकि, 24 घंटे के भीतर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए धर्मांतरित परिवार के मृत व्यक्ति को उसके निजी जमीन पर शव दफनाने की आदेश दिए. इसके बाद पुलिस की मौजूदगी में ईसाई समुदाय के रीति रिवाज से निजी जमीन पर मृत व्यक्ति के शव को दफनाया गया. हाईकोर्ट के इस फैसले से नाराज सर्व आदिवासी समाज और छिंदबहार के ग्रामीणों ने मंगलवार को बस्तर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा. इस दौरान सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख और पूर्व विधायक राजाराम तोड़ेम और कांकेर लोकसभा के बीजेपी प्रत्याशी भोजराज नाग मौजूद रहे. 


आदिवासी समाज प्रमुखों ने फैसला लिया कि अब धर्मांतरित परिवार के लोगों को उनके निजी जमीन में भी शव दफनाने नहीं दिया जाएगा. उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को लेकर एक आवेदन देने और पिटीशन दायर करने की  बात कही है. आदिवासी समाज प्रमुख राजाराम तोड़ेम और बीजेपी प्रत्याशी भोजराज नाग का कहना है कि बस्तर एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है और यहां पांचवी अनुसूची और पेसा कानून लागू है. पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि बस्तर के भोले-भाले आदिवासियों को लालच देकर उनका धर्मांतरण किया जा रहा है और आदिवासी अपने मूल धर्म और रूढ़िवादी परंपरा को छोड़कर ईसाई धर्म को अपना रहे हैं. 


'संस्कृति और रूढ़िवादी परंपरा खतरे में'
इससे आने वाले समय में आदिवासियों के कल्चर, संस्कृति और रूढ़िवादी परंपरा खतरे में पड़ सकती है. समाज के प्रमुखों ने आरोप लगाया है कि कुछ बाहरी लोगों के द्वारा साजिश के तहत धर्मांतरण को अंजाम दिया जा रहा है. बस्तर संभाग के कई जिलों में मूल धर्म के आदिवासी धर्मांतरण कर रहे हैं, जिसे रोकने के लिए आदिवासी समाज के प्रमुखों के द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है. जिन आदिवासी परिवारों ने लालच में आकर धर्मांतरण किया है उनके पास विशेष धर्म में शामिल होने का कोई रिकॉर्ड नहीं है ना ही किसी तरह का कोई रजिस्ट्रेशन है. 


वह सब बहकावे में आकर अपने मूल धर्म को छोड़कर लालच में मतांतरण कर रहे हैं, जिसका आदिवासी समाज पुरजोर विरोध कर रही है. वहीं अब धर्म परिवर्तन करने वाले परिवार में किसी की मौत होने के बाद उसके शव को उन्हीं के निजी जमीन पर दफनाया जा रहा है, जो कि सरासर गलत है. समाज के प्रमुखों का कहना है कि अगर ऐसे ही निजी भूमि में शव को दफनाने दिया जाएगा तो पूरा गांव का गांव मरघट बन जाएगा. समाज के लोगों की मांग है कि जिन्होंने भी धर्मांतरण किया है वह वापस अपने मूल धर्म में लौट जाए और आदिवासी रीति रिवाज से शव का अंतिम संस्कार करें. 


इसको लेकर समाज की तरफ से कोई विरोध नहीं है या फिर धर्मांतरण करने वाले आदिवासी परिवार के लोगों को  आरक्षण से वंचित किया जाए. इधर बीजेपी प्रत्याशी भोजराज नाग का कहना है कि धर्मांतरण करने वाले लोगों के पास ईसाई धर्म मे शामिल होने से सम्बंधित ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है और ना ही कोई रजिस्ट्रेशन है. बाहरी लोगों के द्वारा आदिवासी समाज के भोले-भाले लोगों का धर्मांतरण किया जा रहा है और आदिवासी समाज के सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को खत्म करने की साजिश रची जा रही है, जिसका सर्व आदिवासी समाज पुरजोर विरोध कर रहा है.



ये भी पढ़ें: Chhattisgarh: कोरिया में 7 साल बाद भी नहीं बन सका ‘शादीघर’ भूमि पूजन के बाद जगह को लेकर विवाद