Bastar Kostha Samaj Wedding: पूरे देश में फरवरी माह में शादी का सीजन चल रहा है और हर जगह शादी बारातों की धूम मची हुई है. साथ ही शादी की खरीददारी भी जमकर हो रही है. शादी में वधू के श्रृंगार में लाखों करोड़ो रुपए के सोने के आभूषण चढ़ाए जाते हैं. वधू पक्ष के साथ ही वर पक्ष भी वधु के लिए सोने के गहनों की जमकर खरीददारी करता है, लेकिन क्या आपको मालूम है देश में ऐसा एक समाज है जो वधु को सोने के गहने चढ़ाने पर इसे समाज का अपमान समझता है.


छत्तीसगढ़ के बस्तर में सोनासी कोष्टा समाज दशकों से अपनी इस परंपरा को निभाते आ रहा है. समाज के लोग सोना पहनना तो दूर इसे छूने से भी परहेज करते है. ऐसा नहीं है कि इस समाज के लोग सोने के गहने खरीदने में सक्षम नहीं है, लेकिन इस समाज में एक ऐसी मान्यता है कि सोने के आभूषणों के उपयोग को अपने पुरखों का अपमान माना जाता है. इस समाज में लड़के की शादी तय होते ही होने वाली बहू सोने के गहने त्याग देती हैं और फिर ताउम्र इससे दूर ही रहती हैं. हालांकि चांदी के और आर्टिफिशियल गहने पहनने की आजादी उन्हें रहती है. वहीं बेटी की शादी तय होने पर पिता सोने के गहने के बिना ही उसे विदा करता है.


सोनासी गोत्र के लोग क्यों नहीं करते सोने के आभूषण का इस्तेमाल? 


दरअसल छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर संभाग के अलग-अलग जिलों में रहने वाले कोष्टा समाज के सोनासी गोत्र के लोग सोने के गहने पहनना तो दूर उसे छूने में भी परहेज करते हैं. आर्थिक दृष्टि से काफी संपन्न होने के बावजूद भी यह समाज आज भी दशकों से चली आ रही अपनी परंपराओं का कड़ाई से पालन कर रहा है. सोनासी कोष्टा समाज के अध्यक्ष सुंदरलाल देवांगन, उपाध्यक्ष अजय देवांगन और सुरेंद्र देवांगन बताते हैं कि क्योंकि सोना हमारे देवता पहनते हैं.


इसलिए हम सोने का कोई भी आभूषण नहीं पहनते हैं. सोने के आभूषणों के उपयोग को वे अपने पुरखों के परंपरा का अपमान मानते हैं. सोना उनके लिए धूल की तरह है. यही कारण है कि पुरखों की परंपराओं का आज भी पूरी ईमानदारी से वे पालन कर रहे हैं. सुंदरलाल देवांगन बताते हैं कि उनके यहां आने वाली बहू मायके में ही सोने के गहने उतारकर आती है. हालांकि उनके समाज के दूसरे गोत्र में सोने के गहने पहनने की परंपरा है, लेकिन उनके सोनासी गोत्र में यह परंपरा नहीं है, इसलिए नव वधु को ऐसा करना पड़ता है. सुंदरलाल देवांगन बताते हैं कि उनके यहां नववधू को विवाह के समय चढ़ावे में सोने के गहने देने की परंपरा ही नहीं है. सोना एक तरह से दहेज जैसी कुप्रथा को बढ़ावा देता है.


पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरा


कोष्टा समाज के सदस्य सुरेंद्र देवांगन बताते हैं कि समाज में शादी के पहले ही लड़की वालों को यह बता दिया जाता है कि बहू ना तो सोना लेकर आएगी और ना ही जीवनपर्यंत तक सोने के गहने पहनेगी. सगाई के दिन से ही लड़की सोना के आभूषण त्याग देती है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बाद में किसी प्रकार की विवाद की स्थिति पैदा ना हो. उन्होंने बताया कि कोष्टा समाज के सोनासी गोत्र में सोने के आभूषणों के उपयोग की वर्जना पीढ़ियों से चली आ रही है. 


शादी के लिए लड़की ढूंढने में होती है परेशानी


वहीं समाज के अध्यक्ष सुंदरलाल देवांगन बताते हैं कि पुरानी परंपराओं के चलते समाज में लड़कों के लिए लड़की ढूंढने में काफी परेशानी होती है, कई रिश्ते तो केवल इसी वजह से आगे नहीं बढ़ पाते हैं कि शादी होकर आने वाली बहू सोने के गहने नहीं पहन पाएगी, बावजूद इसके पुरखों की बनाए नियमों का पालन करने में समाज का कोई भी व्यक्ति पीछे नहीं हटता है.


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