Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ का बस्तर वन संपदाओं से परिपूर्ण है. बस्तर के वनों में पाए जाने वाली वनोपज यहां के आदिवासी ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य साधन है, खासकर आदिवासी महिलाएं इस वनोपज के माध्यम से सशक्त और आत्मनिर्भर बन रही है. बस्तर में पाए जाने वाले नोपज में से रेशम सबसे कीमती और मुख्य आजीविका का साधन है. बस्तर में रेशम से धागाकरण का काम कई सालों से चला आ रहा है. अच्छी क्वालिटी के रेशम उत्पादन की वजह से बस्तर के रेशम की डिमांड सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दिल्ली तक है.


महिलाओं की अच्छी आय का साधन बना रेशम का धागाकरण
वहीं धागाकरण के काम में बस्तर जिले के साथ ही पूरे बस्तर संभाग की सैकड़ो महिलाओं को रोजगार मिला है और इससे हर महीने इन्हें अच्छी आय भी हो रही है. रेशम से धागाकरण करने के काम में महिलाओं को 7 से 8 हजार रुपये हर महीने की आय हो जाती है. यही वजह है कि अब विभाग इन महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराने और आय बढ़ाने के लिए रेशम का उत्पादन कर रहा है.


टसर रैली कोसा और टसर डाबा कोसा का बड़े पैमाने पर उत्पादन
बस्तर जिले में रेशम उत्पादन के कारोबार में 20 गांवों की महिलाओं के समूहों को रोजगार दिया गया है. जिससे वे आर्थिक तौर पर सशक्त बन रही है. बस्तर में खासकर टसर रैली कोसा और टसर डाबा कोसा का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है. इन दोनों प्रजाति के कोसा की भारी डिमांड होती है.


इससे धागाकरण का काम कर एक तरफ जहां महिलाओं को अच्छी खासी आय होती है. वहीं दूसरी तरफ इसके धागा की काफी डिमांड होती है. इससे तैयार होने वाली साड़ियां की डिमांड सबसे ज्यादा होती है. टसर वन कोसा सिल्क कहलाता है, जिसका राज्य के वनांचल में बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है.


सालभर में लाख रुपये कमा रही महिलाएं
रेशम विभाग के अंतर्गत धागाकरण का काम कर रही महिलाओं का कहना है कि धागाकरण का काम करने से उन्हें आर्थिक लाभ हुआ है. उनका कहना है कि रेशम धागाकरण कार्य महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभा रही है. जिससे वो अपने और परिवार के सपनो को भी पूरा करने में सक्षम हुई है.


धागा निकालने वाली महिलाएं विभाग की इस सहयोग से बेहद खुश है उनका कहना है कि वे मटके के साथ-साथ नई स्पिनिंग मशीन मिल जाने से उससे भी धागा निकालने का काम कर रही हैं, जिससे उनका काम बहुत आसान हो गया है, इससे समय की बचत हो रही है साथ ही आमदनी भी बढ़ गई है.


जिले में 50 से ज्यादा महिला स्व सहायता समूह हो रही संचालित
रेशम विभाग के उप संचालक जयपाल बरिहा का कहना है कि बस्तर जिले के अंतर्गत 50 से ज्यादा महिला स्व सहायता समूह है जो कोसा से धागाकरण का काम कर रही है. इन सभी महिलाओं को विभाग की ओर से हर महीने धागाकरण का काम मिले इसकी पूरी कोशिश की जाती है. खासकर सीजन के वक्त एक महिला को एक महीने में 7 से 8 हजार रुपये की आय धागाकरण से होती है. ये पैसा उनके खाते में ट्रांसफर किया जाता है. 


धागाकरण का काम करके कई महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हुई है और यहां से कमाए हुए पैसे से स्कूटी भी खरीद रही है. इसके साथ ही अपने परिवार का पालन पोषण भी कर रही है. पिछले 2 सालों में इन स्व सहायता समूह की महिलाओं को लाखों रुपये की आय हुई है. वहीं रेशम का उत्पादन बढ़ने से धागाकरण का काम भी लगातार मिल रहा है, बस्तर की टसर रैली कोसा और टसर डाबा कोसा की डिमांड काफी ज्यादा है, यही वजह है कि बस्तर की यह दोनों प्रजाति की कोसा यहां की आदिवासी महिलाओं के लिए आय का मुख्य स्रोत बनी हुई है. 


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