छत्तीसगढ़ के बस्तर को वनों का द्वीप कहा जाता है. आदिवासियों के जीवन का मुख्य आय का स्त्रोत भी यहां के वनों से मिलने वाली वनोपज है. खासकर बस्तर में इमली के पैदावार बहुतायत में होती है, यही वजह है कि बस्तर एशिया की सबसे बड़ी इमली की मंडी है. दुनिया के 12 देशों में बस्तरिया ईमली की ही डिमांड है, हर साल 10 अरब से ज्यादा का कारोबार इस इमली से होता है. बावजूद इसके इस इमली का संग्रहण करने वाले ग्रामीणों के जीवन में कोई सुधार नहीं आ रहा है. समर्थन मूल्य नहीं बढ़ाए जाने से ग्रामीणों में नाराजगी भी है.


वहीं वन  विभाग का कहना है कि कोशिश की जाती है कि इमली का संग्रहण ज्यादा से ज्यादा विभाग के द्वारा हो सके लेकिन बीच में बिचौलियों की वजह से ग्रामीणों को जो उचित दाम मिलना है वह नहीं मिल पाता है.


अरबों रुपये का होता है कारोबार


कहा जाता है कि विश्व बाजार में थाईलैंड की मीठी इमली की धाक है, लेकिन बस्तर की गुड़हा इमली इसे चुनौती दे रही है, वन विभाग बस्तर के गुड़हा इमली के पैकेजिंग और मार्केटिंग भी कर रहा है और सरकारी संस्थानों के माध्यम से इसे बेच भी रहा है,. दरअसल महिला स्व सहायता समूह और  ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोग और उनके परिवार के सभी सदस्य इमली के सीजन में इसका संग्रहण करते हैं.




जिसके बाद वन विभाग इनसे इमली खरीदता है और इस इमली को देश विदेशों में निर्यात कर वन विभाग को लाख नहीं करोड़ नहीं बल्कि अरबों रुपये की आय होती है, लेकिन इस इमली को विभाग को बेचने वाले ग्रामीणों को सही मूल्य नहीं मिल पाता. जानकारी के मुताबिक इमली के पेड़ से औसतन 3 से 4 क्विंटल इमली मिल जाती है. इसका संग्रहण कर ग्रामीण विभाग को बेचते हैं और बस्तर से थाईलैंड,अफगानिस्तान  श्रीलंका सहित 10 से ज्यादा देशों में सीधे पहुंचती है. इमली को सीधे विदेश तक ट्रासंपोर्ट करने  की व्यवस्था भी की गई है.




इसके जरिए विभाग के अधिकारियों का मानना था कि इमली का संग्रहण करने वाले ग्रामीणों की आय बढ़ेगी साथ ही ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा, लेकिन इमली संग्रहण करने वाले  ग्रामीणों का कहना है कि उनकी आय में कोई वृद्धि नहीं हुई है और आज भी उनसे 25 रुपये बीज इमली प्रति किलो और  40 रुपये प्रति किलो बीज निकालकर ईमली खरीदी जाती है,बल्कि मार्केट में इसकी कीमत 80 से 100 रुपये प्रति किलो होती है.


वहीं विभाग और इन ग्रामीणों के बीच बड़ी संख्या में बिचोली भी सक्रिय होते हैं, जो ग्रामीणों को पैसों का लालच देकर ओने पौने दामो में किलो की दर से इमली खरीद लेते हैं ,और इसे बेचकर उन्हें अच्छी कमाई भी होती है, लेकिन ग्रामीणों के जीवन में इस इमली के संग्रहण से कोई सुधार नहीं हो रहा है,हालांकि ग्रामीण लंबे समय से कह रहे हैं कि जिस दर से इमली खरीदा जाता है उसके दर को बढ़ाया जाए और समर्थन मूल्य में भी वृद्धि की जाए ,लेकिन विभाग अभी भी पुराने समर्थन मूल्य में ग्रामीणों से ईमली खरीदता है और उसके बाद उसे पैकेजिंग कर दूसरे राज्यों में और राज्यों से विदेशों तक में बेचा जाता है.


समर्थन मूल्य बढ़ाने पर किया जा रहा विचार


इधर वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बस्तर के गुढ़हा इमली काफी मीठी होती है इसकी सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी डिमांड है, इसलिए इसकी पैदावार के लिए विभाग गांव गांव में बीज उपलब्ध कराती है, ताकि ज्यादा से ज्यादा गुढ़हा इमली के पौधे बस्तर में लगाया जा सके, विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीणों को इमली बेचकर अच्छी कमाई हो इसके लिए विभाग समय-समय पर समर्थन मूल्य में वृद्धि करती है और आने वाले समय में उसे बढ़ाने पर भी विचार किया जा सकता है, फिलहाल अब तक इसके लिए कोई फैसला नहीं लिया गया है.


इसे भी पढ़ें:


कविता की मेहनत देख गदगद हुए पीएम मोदी, पीठ थपथपा कर दी शाबाशी, क्या है छत्तीसगढ़ की इस बेटी की कहानी