बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. सूबे की सियासत जाति के इर्द-गिर्द घूमती है. जगदेव प्रसाद की विरासत पर कई दल दावा ठोकते हैं. उनके नाम का सहारा लेकर सियासी दल पिछड़ा समाज को साधने की कोशिश करते हैं. चुनावी वर्ष है. आज 5 सितम्बर है. इसी दिन 1974 में उनकी मौत हो गई थी.
बिहार के एकमात्र नेता, जिन्हें शहीद कहा जाता है
5 सितंबर को बिहार में उनके शहादत दिवस पर ही राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा परिसीमन सुधार रैली कर रहे हैं. शक्ति प्रदर्शन करेंगे. कुशवाहा समाज को एक बड़ा मैसेज देने की कोशिश है. बिहार में कुशवाहा समाज की आबादी 4.27% है. बता दें जगदेव प्रसाद बिहार के एकमात्र नेता हैं, जिन्हें शहीद कहा जाता है. समाजवादी विचारधारा के बड़े नेताओं में इनकी गिनती होती है.
शहीद जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को जहानाबाद में हुआ था और उनकी मौत 5 सितम्बर 1974 को हुई थी. शोषित वर्गों के अधिकार के आन्दोलन के दौरान जगदेव बाबू की मौत पुलिस की गोली से हुई थी. उनकी शिक्षा बिहार में हुई तथा वे अर्थशास्त्र और साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएट थे. उनको बिहार का लेनिन कहा जाता था क्योंकि समाज के गरीब और वंचित वर्ग के उत्थान और उनके हक के लिए लंबी लड़ाई उन्होंने लड़ी थी.
दलितों, पिछड़ों और अकलियतों की एकता के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे. 70 के दशक में बिहार में पिछड़ा वर्ग के एक बड़े नेता के रुप में उनकी पहचान बन गयी थी. बिहार के जहानाबाद जिले में जन्मे जगदेव प्रसाद की सोच पिछड़ावाद पर आधारित थी. उनका नारा था- ‘‘सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है, दस का शासन नब्बे पर नहीं चलेगा नहीं चलेगा’’. इसी नारे ने जगदेव प्रसाद की राजनीति को काफी धार दिया.
गैर-कांग्रेसी सरकार बनाने में उनका बड़ा योगदान
जानकारों का मानना है कि बिहार में जगदेव बाबू ने जाति के वर्चस्व को तोड़ा और शोषित वर्ग को अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया. जगदेव बाबू सोशलिस्ट पार्टी के बिहार में सचिव थे. पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाने में उनका बड़ा योगदान था. उनके पुत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि खुद को उनका असली उत्तराधिकारी बताते हैं. पिछले महीने बिहार बीजेपी में शामिल हुए हैं.
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