बिहटा: बिहार की राजधानी पटना जिले के पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र के दुल्हिन बाजार प्रखंड के उलार गांव स्थित 12 सूर्य पीठों में से एक अति वैभवशाली और विश्व प्रसिद्ध द्वापरकालीन पौराणिक उलार्क सूर्य मंदिर (अब उलार) की महिमा अपरंपार है. यहां छठव्रती अपने मन में जो भी आस लेकर आस्था और विश्वास के साथ छठ व्रत करती हैं, भगवान भास्कर और छठी मईया उनकी सभी मनोवांक्षित मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.



उलार्क सूर्य मंदिर में हर वर्ष छठ पर्व में बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं और छठ पूजा करते हैं. लेकिन इस वर्ष कोरोना की वजह से चैती और अब कार्तिक छठ में भी लोगों का आना काफी हो गया है. इससे मंदिर के आसपास प्रति वर्ष लगने वाले छठ पूजा मेला और व्यवसाय से जुड़े हजारों लोगों की रोजगार ठप हो गई है. इस कारण चारों तरफ उदासी और मायूसी की माहौल है.


पौराणिक मान्यता है कि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण पुत्र राजा शाम्ब को एक ऋषि के श्राप से पूरे शरीर कुष्ठ व्याधि हो गई थी, जिससे छुटकारा पाने के राजा शाम्ब ऋषि नारद की शरण में गाए और ऋषि की श्राप की सारी बातें बताकर कुष्ठ रोग से छुटकारा पाने की उपाय बताने की आग्रह किया. तब भगवान नारद जी ने शाम्ब को कुष्ठ रोग से निजात पाने के लिए एक बहुत ही कष्टकारी और कठिन उपाय बताते हुए कहा की बारह वर्ष बारह अलग-अलग स्थानों पर 12 सूर्य पीठों और तलाब की स्थापना कर वहां सूर्य उपासना करें.


राजा शाम्ब ने नारद जी से उपाय जानने के बाद कोणार्ण, देवार्क, पंडार्क के साथ 12 सूर्य पीठों में से एक उलार्क सूर्य मंदिर जो अब उलार धाम के नाम से प्रसिद्ध हो गया है की स्थापना कर कठिन सूर्य उपासना कर अपने कुष्ठ व्याधि (रोग) से मुक्ति पाई थी.


उलार धाम सूर्य मंदिर के महंथ बाबा अवध बिहारी दास बताते हैं कि मुगलकाल मे मुगल शासकों ने इस मंदिर को कई बार ध्वस्त कर इसे नेस्तनाबूद करने का प्रयास किया. लेकिन कई सौ वर्षों बाद 19वीं सदी में ईश्वरीय कृपा से एक सिद्ध पुरुष संत अलबेला बाबा का अचानक उलार गांव में आगमन हुआ और उन्होंने मंदिर के बचे हुए अवशेष से ध्वस्त हो चुकी इस महिमामई सूर्य मंदिर के जिर्णोउद्धार की ठानी और आसपास दर्जनों गांवों के ग्रामीणों को संगठित कर फिर से उलार सूर्य मंदिर को नए सिरे से बनाकर इसका जिर्णोउद्धार किया.


मंदिर को लेकर मान्यता है कि मनोकामना पूर्ण होने के बाद भी लोग मन्नते उतारने (पूरी करने) आते है. जैसे संतान (पुत्र) की कामना पूरी होने के बाद अपने बच्चो की मुंडन करा कर महिलाओं अपनी आँचल पर नेटूआ की नाच नचवाते हैं और खुश होकर यथाशक्ति दान्य पुण्य भी करती हैं.