पटना: पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जब भड़काऊ भाषण देने वाले मुस्लिम सांसद ओवैसी को बिहार में आने की इजाजत है, तब संत धीरेंद्र शास्त्री जैसे गैर-राजनीतिक व्यक्ति का विरोध क्यों किया जा रहा है. अगर सरकार ने अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shastri) का कार्यक्रम रोकने की कोशिश की गलती की, तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. रामभक्तों पर हमले करने वालों का बचाव, श्रीरामचरित मानस पर शिक्षा मंत्री की निंदात्मक टिप्पणी और अब हिंदू संत धीरेंद्र शास्त्री को जेल में डालने की जगदानंद की धमकी से जाहिर है कि महागठबंधन सरकार राजधर्म भूल कर हिंदू-विरोधी हो गई है.

जवाहर प्रसाद की गिरफ्तारी पर भड़के

नीतीश कुमार एक तरफ पूर्व सांसद आनंद मोहन सहित 27 दुर्दात अपराधियों की रिहाई के लिए कानून बदल रहे हैं, तो दूसरी ओर कुशवाहा समाज के सम्मानित नेता और पांच बार के पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद को गिरफ्तारी कर उन्हें राम भक्त होने की सजा दिलाने पर आमादा हैं. यह सरकार रामनवमी शोभायात्रा पर पथराव करने वालों को बचा रही है और उन राम भक्तों को ही फंसा रही है, जिन पर जानलेवा हमले हुए हैं. किसी को न बचाने और न फंसाने का जो दावा नीतीश कुमार करते रहे, वह उनके हाल के फैसलों से बिल्कुल झूठा साबित हो चुका है.

सीएम नीतीश पर साधा निशाना

सुशील कुमार मोदी ने कहा कि बीजेपी के पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद सासाराम में सम्राट अशोक की जयंती पर गृहमंत्री अमित शाह का कार्यक्रम कराना चाहते थे. इससे पहले वहां सरकार के इशारे पर अपराधी तत्वों को शह देकर दंगा-जैसे हालात पैदा कर दिए गए, जिससे गृहमंत्री को यात्रा रद्द करनी पड़ी. सासाराम में उपद्रव शांत होने के लगभग एक महीने बाद जवाहर प्रसाद को उनके घर से गिरफ्तार किया गया ताकि उन असली दंगाइयों को बचाया जा सके, जो आरजेडी-जेडीयू के वोट बैंक से सीधा वास्ता रखते हैं.

'नीतीश कुमार बदले की भावना से टारगेट कर रहे हैं'

बीजेपी नेता ने कहा कि जब नीतीश कुमार ने 20 दिन पहले ही कह दिया था कि दंगे में बीजेपी का हाथ था, तब उनकी पुलिस उन्हें सही साबित करने के लिए जवाहर प्रसाद की गिरफ्तारी-जैसी एकतरफा कार्रवाई ही कर सकती थी. जेडीयू का कुशवाहा खिसकने के बाद नीतीश कुमार बदले की भावना से कुशवाहा समाज को टारगेट कर रहे हैं. जवाहर प्रसाद के खिलाफ न कोई एफआईआर दर्ज हुआ था, और ना कोई आरोप था. वे शांति समिति की बैठकों में शामिल होते थे, फिर भी दंगे के एक महीने के बाद उनको गलत तरीके से गिरफ्तार कर लिया गया. 

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