पटनाः राजधानी पटना के गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की 2013 में हुई हुंकार रैली के दौरान हुए बम ब्लास्ट एक नवंबर 2021 को एनएआईए की विशेष आदालत ने 9 आतंकियों को सजा सुना दी है. कोर्ट ने चार आतंकी को फांसी की सजा सुनाई है जबकि दो आतंकियों को उम्र कैद की सजा सुनाई है. दो आतंकियों को दस साल कैद की सजा दी गई है. एक आतंकी को सात साल की सजा सुनाई गई. 27 अक्टूबर 2013 को हुए बम ब्लास्ट को लेकर उस दिन कैसे आईजी विकास वैभव और तत्कालीन एसपी विकास वैभव ने क्या कुछ अनुभव किया उसे यात्री मन के जरिए साझा किया है जिसे एक बार आपको भी पढ़ना चाहिए. फेसबुक पर लिखी विकास वैभव की बातों को पढ़ें जिसे एबीपी न्यूज उन्हीं के शब्दों में रख रहा है.


“आज यात्री मन 2013 के अक्टूबर की उस 27वीं तिथि का स्मरण कर रहा है जब रविवार का दिन था. उस समय मैं पुलिस अधीक्षक, एनआईए के दायित्व में कर्तव्यों का निष्पादन कर रहा था तथा अत्यंत महत्वपूर्ण कांडों के अन्वेषण में संलग्न था. तब बोध गया से कुछ समय पूर्व ही दिल्ली लौटा था और रविवार को अवकाश का दिन मानकर काकानगर स्थित आवास में विश्राम कर रहा था. उसी दिन पटना में हुंकार रैली आयोजित होनी निर्धारित थी जिससे संबंधित समाचारों का प्रेषण लगभग प्रत्येक मीडिया समूह द्वारा किया जा रहा था. मेरा मन तब रांची के एक गिरोह की गतिविधियों के विषय में अत्यधिक चिंतनरत रहा करता था चूंकि आतंकवादी घटनाओं के क्रियान्वयन हेतु षड्यंत्रों में उसकी संलिप्तता प्रतीत हो रही थी और 2 दिन पूर्व ही नई दिल्ली में एनआईए की पटियाला हाउस स्थित विशेष न्यायालय में उसके मुख्य षडयंत्रकारी की गिरफ्तारी हेतु वारंट निर्गत किए जाने के लिए प्रार्थना भी की गई थी.गिरफ्तारी हेतु बिहार के तथा झारखंड में संभावित स्थलों पर आसूचना संकलन के साथ प्रयास गतिमान था. मुझे तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शीघ्र ही बोध गया ब्लास्ट का पूर्ण उद्भेदन संभव हो सकेगा चूंकि कुछ समय पूर्व ही एक अत्यंत महत्वपूर्ण आतंकवादी से गिरफ्तारी के पश्चात पूछताछ में ऐसे कुछ संकेत संभावित लग रहे थे.”


“उस दिन घर पर विश्राम के पलों में अग्रतर अनुसंधान के लिए मन में योजना बना ही रहा था कि अचानक एनआईए कार्यालय से किसी वरीय पदाधिकारी का फोन आया जिन्होंने पटना में रेलवे स्टेशन पर तथा तत्पश्चात संभवतः गांधीमैदान में भी कुछ ब्लास्ट होने की सूचना दी. मन अचानक उद्वेलित हो उठा चूंकि यह भी रविवार का ही दिन था और इसके पूर्व बोध गया में सीरियल ब्लास्ट की घटना भी रविवार, 7 जुलाई, 2013 को ही घटी थी. मुझे तब बिहार के अधिकारियों से वार्ता करके और अधिक विवरण प्राप्त करने के लिए कहा गया चूंकि सभी मीडिया चैनलों में अनेक प्रकार की बातें की जा रही थीं और आधिकारिक रूप से कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा था.”


“ब्लास्ट की सूचना मिलते ही मैंने तब पटना के तत्कालीन वरीय पुलिस अधीक्षक को फोन किया था जो निश्चित ही उस समय अत्यंत व्यस्त थे परंतु अतिव्यस्तता में भी घटना की विस्तृत जानकारी मुझे देने का प्रयास कर रहे थे. मुझे यह ज्ञात हुआ कि रेलवे स्टेशन पर घटना में 1 व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी थी तथा 1 पकड़े गए संदिग्ध से पुलिस द्वारा पूछताछ की जा रही थी. वार्ता के क्रम में गिरफ्तार संदिग्ध के संदर्भ में जैसे ही मैंने सुना कि वह रांची का निवासी है, मन में बहुत कुछ स्पष्ट सा प्रतीत होने लगा और तुरंत पटना जाने की तीव्र इच्छा होने लगी. फोन पर ही गांधी मैदान में भी कुछ संभावित धमाकों की सूचना मिली जिसकी भी शीघ्र ही पुष्टि भी हो गई. तत्पश्चात फोन घनघनाने लगा और ऊहापोह की स्थिति में तुरंत तैयार होते हुए लगभग 1 ही घंटे के उपरांत कार्यालय से प्राप्त हुए निर्देशों के आलोक में दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गया जहां पटना जाने हेतु विशेष विमान प्रतीक्षारत था. आज भी कभी-कभी उन बीते दिनों का स्मरण अवश्य आता है जब लगातार अनेक दिवसों तक अत्यंत व्यस्त रहा था.”


“जब से पटना में विशेष एनआईए न्यायालय द्वारा ब्लास्ट के 9 आरोपियों को दोषी पाए जाने की सूचना मिली, मन पुनः बीते पलों का स्मरण करने लगा है. सर्वाधिक स्मरण अनुसंधान की बड़ी टीम में पर्यवेक्षण के दायित्वों में सम्मिलित रहे दो वरीय अधिकारी यथा एनआईए के तत्कालीन आईजी स्वर्गीय संजीव कुमार सिंह जी तथा तत्कालीन डीआईजी स्वर्गीय अनुराग तनखा जी का आ रहा है जिनके कुशल मार्गदर्शन में ही टीम सभी वैधानिक कार्यों को सम्पन्न कर सकी और न्यायिक प्रक्रिया के उचित परिणाम को प्राप्त करने में सक्षम हो सकी. पटना ब्लास्ट केस में परिणाम आने पर अनुराग तनखा सर का स्मरण सबसे अधिक इसीलिए भी आ रहा है चूंकि इसके अनुसंधान को प्रभावी बनाने के लिए उन्होंने न केवल अत्यधिक परिश्रम किया था परंतु कुछ नया करने का भी प्रयास किया था जो सामान्यतः भारत में अनुसंधान में देखा नहीं जाता. मुझे स्मरण आ रहा है कि आरोपियों के पकड़े जाने के बाद क्राइम सीन रीकंस्टक्रस्न के लिए कैसे उन्होंने यह योजना बनाई थी कि जिस प्रकार के बैग में बम लाए गए थे वैसे ही बैग खरीदे जाएँ और उन्हीं बैगों के साथ आरोपियों के साथ स्टेशन से उसी प्रकार गांधी मैदान तक एनआईए की अलग-अलग टीमें कैमरे के साथ रिकार्डिंग करती हुई चले. इस योजना को कोई पसंद नहीं कर रहा था चूंकि सब कह रहे थे कि यह परिश्रम अनावश्यक होगा चूंकि न्यायालय में इसे साक्ष्य के रूप में महत्व नहीं मिलेगा. तब उन्होंने कहा था कि हमें समझना चाहिए कि हम राष्ट्र की प्रीमियर एजेंसी हैं और हमें कोई कार्य केवल यही सोचकर नहीं करना चाहिए कि वर्तमान में वैधानिक प्रावधान क्या हैं. उनका मानना था कि सभी साक्ष्यों को वैज्ञानिक विधि से संधारित करना चाहिए और जब अनेक केसों के अनुसंधान में ऐसी विधियों का प्रयोग एनआईए करेगी तो संभव है कि भविष्य में न्यायालय ही ऐसे साक्ष्यों के महत्व को इंगित कर कानून में आवश्यक संसोधन की बात करने लगे. अंततः वह जैसा चाहते थे वैसा ही हुआ और जब सुबह-सुबह एनआईए की अनेक टीमें कैमरों के साथ गांधीमैदान में घुसने लगी तो वहां मार्निग वॉक और खेलने के लिए प्रतिदिन एकत्रित होने वाले लोगों में खलबली मच गई थी.”


“सबकुछ तुरंत हुआ था और अत्यंत गोपनीय तरीके से हुआ था जिससे खलबली तो जरूर मची परंतु जब तक मीडिया के लोग पहुंचते एनआईए अपना काम कर चुकी थी. वह यहीं तक नहीं रुके बल्कि बम बनाने की सब सामग्रियों को भी उन्होंने मंगवाया और सीएफएसएल के एक्सपर्ट वैज्ञानिक के समक्ष उन्होंने कैमरे के समक्ष डेटोनेटर और बम उन आरोपियों से बनवाया जिसका भी प्रतिवेदन विस्तार से बना. इन सब बातों से जब तत्कालीन आइजी संजीव सर अवगत होते थे तो अत्यंत प्रसन्न होते थे और मनोबल बढ़ाते थे. आज मन यही सोच रहा है कि यदि वे दोनों पदाधिकारी जीवित रहे होते तो उनकी प्रतिक्रिया क्या रहती. भले ही दोनों पदाधिकारी आज परिणामों को सुनने हेतु उपस्थित नहीं हैं परंतु जितना परिश्रम उनके द्वारा किया गया था वह अविस्मरणीय है और मन निश्चित ही श्रद्धांजलिपूर्वक नमन कर रहा है.”


- आलेखः विकास वैभव, आईजी