पटना: बिहार के शिक्षा मंत्री और आरजेडी के कद्दावर नेता प्रो. चंद्रशेखर (Chandrashekhar) रामचरितमानस (Ramcharitmanas) पर लगातार टिप्पणी करते हैं और सुर्खियों में रहते हैं. बीजेपी के खिलाफ लगातार हमलावर रहते हैं. अब उनके अपने बड़े भाई और दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड इतिहास के प्रोफेसर डॉ. रामचंद्र प्रसाद यादव (Dr. Ramchandra Prasad Yadav) ने शुक्रवार (30 जून) को बीजेपी जॉइन कर लिया. बापू सभागार में बीजेपी की सदस्यता ली.


'चंद्रशेखर को इतिहास की जानकारी नहीं'


एबीपी न्यूज़ से बातचीत में रामचंद्र प्रसाद ने अपने भाई चंद्रशेखर को लेकर कहा कि यह कोई जरूरी नहीं कि राजनीति में विचार मिले. वह आरजेडी में है, लेकिन मेरा विचार बीजेपी से मिलता है. प्रधानमंत्री के किए गए कामों से हम प्रभावित हैं. वहीं अपने छोटे भाई शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के रामचरितमानस को लेकर दिए गए बयानों पर उन्होंने बड़ी बात कह दी. रामचंद्र ने बताया कि उनके भाई चंद्रशेखर ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से मात्र एक साल तक इतिहास की पढ़ाई की. वह पॉलिटिकल साइंस का प्रोफेसर रहा है. इतिहास के बारे में उसे बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. 


रामचंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि अगर रामचरितमानस के श्लोक की कुछ पंक्तियों के बारे में वह कहता है तो फिर पूरी जानकारी रख कर बोलना चाहिए. हम अच्छी तरह से जानते हैं कि वह बिना अवधि जाने ही बात करता है. किस अवधि में कब श्लोक को लिखा गया है यह उसको जानकारी नहीं है, लेकिन राजनीति है कोई कुछ भी बोल देता है.


'पार्टी का जो आदेश होगा वो करेंगे'


बातचीत में अपने बारे में बताते हुए आगे कहा कि हम दोनों भाई साथ रहते हैं. हम लोगों का खानपान गांव में एक साथ हैं. जमीन-जायदाद का काम भी एक साथ होता है लेकिन विचारों के मामले में हम दोनों अलग हैं. हमने उसे कहा भी है कि बिना अवधि जाने क्यों बोलते हो? रामचंद्र ने कहा कि अब हम बीजेपी में आ गए हैं. पार्टी का जो भी आदेश होगा वह हम करेंगे.


रामचंद्र ने कहा कि अगर भाई के बयान के खिलाफ हमें राजनीति करनी पड़ी तो उसमें भी पीछे नहीं हटेंगे. उनके बयानों का सीधा-सीधा जवाब देंगे क्योंकि मुझे मालूम है कि वह जो बयान देते हैं वह कितना सही होता है. लालू यादव सामाजिक न्याय की बात करते हैं तो तुलसीदास से बड़ा सामाजिक पुरोधा कोई नहीं था. सामाजिक न्याय के जन्मदाता तुलसीदास ही थे. जो नहीं जानते हैं उन्हें इतिहास पढ़ना चाहिए. उस समय तुलसीदास ने सभी धर्मों को एकजुट करके रखा था.


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